कल रात चीन में आयोजित विश्व सुंदरी का खिताब हमारी भारत सुंदरी मानुषी छिल्लर ने जीत लिया है. हम सबको भारतीय सौंदर्य व बुद्धिमता के इस परचम के लिये खुश होना बनता है.
मुझे इन सौन्दर्य प्रतियोगिताएं के मानदण्ड जितने भी समझ में आते हैं वह यह कि यहाँ प्रतिभाओं का सम्मान नहीं विदेशी सौंदर्य प्रसाधनों का व सामग्रियों का बड़ी ही कुशलता से किया गया प्रचार मात्र है.
आपको अगर ध्यान हो तो,1966 में रीता फारिया के मिस वर्ल्ड खिताब जीतने बाद जब देश में एक लंबा अकाल 1994 में ऐश्वर्या राय ने तोड़ा तो कैसे भारतीय विज्ञापनों में विदेशी सौंदर्य प्रसाधनों व घरेलू सामान ने हमारे घरों में अपनी घुसपैठ बना ली थी.
2000 में प्रियंका चोपड़ा यह ख़िताब लाई तो भारतीय बाजार पूरी तरह विदेशी सौदर्य प्रतिमानों व सजावट से परिपूर्ण हो चुका था. फिर इन आयोजकों का व्यवसायिक दिमाग अन्य देशों की तरफ गया, पूरे सत्रह साल बाद, अब यह 2017 में मानुषी छिल्लर इस अन्तराष्ट्रीय सौंदर्य के मानदंडों को पार कर हमारे लिये बहुमूल्य रत्नों से जड़ा क्राउन लेकर आई है.
यह दरअसल अंतराष्ट्रीय मार्केटिंग का सोची समझी गयी रणनीति का हिस्सा होता है. जब विगत 17 सालों से भारत हो या कोई अन्य देश को, जब यह खिताब नहीं मिलता है, विदेशी वस्तुओं का मार्केट जिस भी देश मे उम्मीद के मुताबिक नहीं या कमतर होने लगता है तो यह स्पॉन्सर्स व आयोजक समिति सब मिलकर अपने प्रोडक्ट्स व सुंदरता के मानक को ज्यादा लचीला व सर्वव्यापी बनाने के लिये जानबूझकर इन ख़िताबो से वंचित देशों को तमगे बांटने लगते हैं.
कल लास्ट राउंड में पूछे गए टॉप 5 प्रश्नों में… सबसे आसान प्रश्न भारत, इंग्लैंड व मैक्सिको के हिस्से में आया था…
फ्रांस व केन्या की सुंदरियां तो ढंग से जवाब भी न दे पाई थी, शायद उन्हें इन प्रश्नों की उम्मीद न थी. जो प्रश्न भारत सुंदरी से पूछा गया था, उसे तो मुझ जैसी साधारण घरेलू महिला ने ही बता दिया था कि कौन सा पेशा सबसे ज्यादा सेलेरी प्राप्त करने वाला है..
जाहिर है… माँ !
वही बोला गया… खिताब हाथ में.
यह सोची समझी रणनीति व अंतरराष्ट्रीय व्यवसायिकता का हिस्सा है. खैर, भारतीय बच्ची को उसकी प्रतिभा व सौंदर्य के लिय असीम बधाई.
जल्द ही सामाजिक कार्यों को छोड़कर, फ़िल्म में प्रयासरत रहने को भी अग्रिम शुभकामनाएं.
– मंजुला बिष्ट