प्रायः देखा जाता है की पिक्चर की रिलीज़ के बाद उसके अच्छे या ख़राब होने की ख़बरें आती हैं. “पद्मावती” इस नियम का अपवाद है.
फिल्म की असल कहानी और उसमें हुए चरित्रों के चित्रण से मैं पूर्णतयः परिचित नहीं हूँ. और इस कारण से मैं अभी तक इस पर टिपण्णी नहीं करना चाहता था.
स्पष्टतः, हमारे राजपूत समाज में इस पिक्चर के बारे में काफी रोष व्याप्त है. मुझे लगता है कि इस रोष का स्रोत अपने इतिहास और आदर्शों में गौरव है, जिसकी गरिमा के बचाव के लिए कोई भी राजपूत किसी भी सीमा तक जा सकता है.
यह गौरव सर्वथा उपयुक्त है. परन्तु हमें विश्वस्त होना चाहिए कि इस गौरव के चलते कहीं किसी निर्दोष को अपने रोष का पात्र तो नहीं बना रहे. अपने सामर्थ्य का अनुचित प्रयोग हमारे समाज के महान मूल्यों को क्षति पहुँचायेगा.
साथ ही “पद्मावती” की टीम को आगे बढ़ कर राजपूत समाज की चिन्ताओं का निवारण करना चाहिए. क्या यह इतना कठिन है?
रानी पद्मावती सिर्फ राजपूत समाज में ही नहीं, पूरे विश्व में एक आदर्श हैं, कि किस प्रकार सम्मान का संरक्षण जीवन से भी बढ़ कर होता है.
यदि ऐसे महाचरित्र का चित्रण वैसे ही हुआ है जिस सम्मान की वह योग्य है, मुझे नहीं लगता इसमें किसी को आपत्ति होगी, अपितु उसका समर्थन ही होगा.
बाकी मैं दोनों पक्षों के विवेक पर छोड़ता हूँ.
– General V K Singh Facebook Post