मोदी सरकार ने पिछले साढ़े 3 सालों में कुछ भी नहीं किया, यह तो आपको राहुल जी ने बता ही दिया होगा.
मोदी जी कभी प्रधानमंत्री नहीं बन सकते, मोदी को गुजरात के बाहर कोई नहीं जानता और मणिशंकर अय्यर कांग्रेस कार्यालय के बाहर मोदी जी को चाय का स्टॉल लगाने की अनुमति देने वाले थे, यह भी आपने बहुत पहले ही सुना होगा.
दूसरी तरफ सोशल मीडिया के कई राष्ट्रवादी वीरों के पोस्ट पढ़कर आपको यह भी पता चल गया होगा कि चुनाव जीतने के बाद मोदी जी सेक्युलर हो गए हैं, उनके दिमाग में वैश्विक नेता बनने का फितूर सवार हो गया है, वो देश की चिंता करने के बजाय दुनिया में अपनी छवि चमकाने में ज्यादा ध्यान दे रहे हैं, उनसे कुछ होने वाला नहीं है, और 2014 में लोगों ने उन्हें वोट देकर गलती की थी.
लेकिन मैं इतना ज्ञानी नहीं हूं, और न मैंने 2014 में मोदी को खरीदने के लिए वोट दिया था. मैंने वोट देश में परिवर्तन लाने के लिए दिया था और मुझे वह परिवर्तन होता हुआ दिख रहा है.
इसलिए मैं मोदी सरकार के काम से संतुष्ट हूं और 2019 में ज़रूरत पड़ी, तो आधी दुनिया की दूरी नापकर भी वोट देने भारत अवश्य आऊंगा. वैसे मेरा अनुमान है कि तब तक विदेश से भी वोट डालने की सुविधा उपलब्ध हो जाएगी. खैर, उसकी बात फिर कभी.
आज बात सूर्य की करना चाहता हूं. भारत में लोग लड़ने-भिड़ने के बहाने ढूंढते ही रहते हैं. धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्र, आरक्षण, राजनीति, गाड़ी को ओवरटेक करने, गेट के बाहर गाड़ी खड़ी करने, मोहल्ले में कचरा फेंकने न फेंकने, नल पर पानी भरने या न भरने देने जैसे किसी भी मुद्दे पर भारत के लोग लड़ लेते हैं.
इसलिए अचरज नहीं है कि सूर्य नमस्कार और योग के मुद्दे पर भी लड़ते रहते हैं, भले ही पूरी दुनिया आज अच्छा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पाने के लिए योग के पीछे भाग रही हो.
जिस नरेन्द्र मोदी को गुजरात के बाहर कोई नहीं जानता और जिसे मणिशंकर अय्यर ने प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब देखने के बजाय कांग्रेस कार्यालय के बाहर चाय बेचने की सलाह दी थी, उसी मोदी ने 2015 में संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रस्ताव दिया कि 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाए, और 177 देशों ने निर्विरोध वह प्रस्ताव न सिर्फ मान लिया बल्कि उसके सह-प्रायोजक भी बने. यह संयुक्त राष्ट्र के इतिहास की अभूतपूर्व घटना थी!
लेकिन मैं आज योग की नहीं, सूर्य की बात करने वाला हूं, तो आइए सूर्य की ही बात करें.
जून 2015 में ही अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की शुरुआत हुई और इसी वर्ष दिसंबर में पेरिस में एक अंतरराष्ट्रीय जलवायु सम्मेलन हुआ. इन दोनों बातों का वैसे तो कोई सीधा संबंध नहीं है, लेकिन फिर भी मैं इनका उल्लेख कर रहा हूं क्योंकि मोदी जी का इन दोनों बातों से गहरा संबंध भी है और दोनों में उनका नेतृत्व भी है.
योग दिवस के बारे में तो सबको पता है, इसलिए उस बारे में ज़्यादा बोलने की ज़रूरत नहीं. पेरिस सम्मेलन के बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है, और मैं आज इसी की बात करने वाला हूं.
विश्व में लगातार बढ़ रहे प्रदूषण, उसके कारण हो रहे जलवायु परिवर्तन, मौसम के बदलाव, महासागरों के बढ़ते जलस्तर, ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव, कोयले और अन्य पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों से होने वाले दुष्प्रभाव, वैकल्पिक ऊर्जा को बढ़ावा देने की आवश्यकता आदि मुद्दों पर चर्चा करने के लिए नवंबर 2015 में 196 देशों के प्रतिनिधि पेरिस में एकत्रित हुए.
चर्चा के बाद सहमति बनी कि सभी देश मिलकर जलवायु में सुधार के लिए प्रयास करेंगे, तापमान घटाने के उपायों के लिए योगदान करेंगे और पेट्रोल, डीज़ल, कोयला जैसे स्त्रोतों की बजाय ऊर्जा के स्वच्छ स्त्रोतों का उपयोग बढ़ाने के लिए काम करेंगे.
हर देश ने अपने-अपने लक्ष्य तय किये और उनके बारे में जानकारी भी दी. जैसे किसी देश ने तय किया कि अगले 10 वर्षों में पेट्रोल-डीज़ल के वाहनों का उपयोग बंद करके ई-वाहनों का उपयोग करेंगे. इसी तरह हर देश ने कुछ न कुछ तय किया है.
भारत की इस सम्मेलन में बहुत बड़ी भूमिका रही. इसी सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक नए अंतरराष्ट्रीय संगठन की स्थापना की घोषणा की. इस संगठन का नाम अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन है. फ्रांस भी इसमें सहयोगी है.
यह संगठन सौर ऊर्जा का उपयोग बढ़ाने, इस क्षेत्र में नई तकनीकों के विकास एवं अनुसंधान के लिए कार्य करने और सौर ऊर्जा साधनों की लागत को कम करने के उद्देश्य से कार्य करेगा. स्वाभाविक है कि सौर ऊर्जा के माध्यम से अगर सस्ते में बिजली की व्यवस्था हो जाए, तो इसका सबसे ज्यादा लाभ गरीबों को ही मिलेगा.
वैसे तो विश्व के सभी देश इसमें शामिल हो सकते हैं, लेकिन मुख्य रूप से यह संगठन भौगोलिक कर्क रेखा से मकर रेखा के बीच स्थित सभी देशों के लिए है और इस संगठन में सबसे ज्यादा अधिकार भी इन्हीं देशों को दिए गए हैं.
मोदी जी ने इन देशों को ‘सूर्यपुत्र’ की संज्ञा दी है क्योंकि इन देशों में साल के लगभग 300 दिनों के दौरान सूरज की रौशनी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहती है. नरेन्द्र मोदी द्वारा स्थापित इस संगठन में आज 121 देश शामिल हैं और भारत के नेतृत्व में सब मिलकर सौर ऊर्जा के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं.
यहां तक कि इस संगठन का मुख्यालय भी भारत में ही है. आप क्या सोचते हैं ये मुझे पता नहीं, लेकिन मुझे इस बात पर बहुत गर्व होता है कि मेरा देश आज इस तरह के कई कामों में दुनिया को सही दिशा दिखा रहा है.
लेकिन बात सिर्फ इतनी-सी नहीं है. सोशल मीडिया के कई महान राष्ट्रवादी धुरंधरों को यह भ्रम भी है कि मोदी जी तो अमरीका यात्राओं के दौरान मिलने वाले स्वागत सत्कार के बहकावे में फंस गए हैं और सारी नीतियां अमरीका को खुश करने के लिए बनाते हैं.
ऐसे लोगों को शायद अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है, अन्यथा उन्हें इतना तो अवश्य ही पता होता कि इस गठबंधन की स्थापना से सबसे ज्यादा तकलीफ़ अमरीका को ही हुई है और इसका सबसे ज्यादा विरोध भी अमरीका ही कर रहा है क्योंकि अगर दुनिया के विकासशील और गरीब देश ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर हो गए, तो स्वाभाविक रूप से वे विकसित और शक्तिशाली भी बन जाएंगे.
दूसरा, अगर ये देश खुद ही नई तकनीकें विकसित कर लेंगे, तो अमरीकी कंपनियों के बिज़नेस का क्या होगा? यहां तक कि अमरीका ने विश्व व्यापार संगठन में यह शिकायत भी दर्ज करवाई है कि भारत के राष्ट्रीय सौर मिशन पर रोक लगे क्योंकि इससे अमरीकी कंपनियों को नुकसान हो रहा है.
वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन ने भी फैसला अमरीका के पक्ष में दिया है. लेकिन जिस तरह 76 दिनों तक युद्ध जैसी परिस्थिति का सामना करने के बावजूद मोदी सरकार चीन के आगे नहीं झुकी, उसी तरह इस मामले में भी अमरीका के दबाव के आगे झुकने की बजाय सरकार ने दोबारा इस पर अपील की है.
डब्ल्यूटीओ के नियमों के अनुसार कोई भी देश अपने देश की कंपनियों और दूसरे देश की कंपनियों के बीच भेदभाव नहीं कर सकता. शायद आपको अब समझ आ गया होगा कि दीवाली में चीनी सामान न खरीदने की अपील जनता से करने की बजाय भारत सरकार चीनी सामान पर ही प्रतिबंध क्यों नहीं लगा देती? वास्तव में सरकार ऐसा नहीं कर सकती, लोग ही कर सकते हैं, लेकिन उस पर बात फिर कभी.
भारत सन 2022 तक अपनी सौर ऊर्जा की क्षमता में और 100 गीगावॉट बढ़ाने के लिए संकल्पित है. वास्तव में यह क्षमता विश्व में इस क्षेत्र के शीर्ष 5 देशों के कुल उत्पादन से भी ज्यादा है! अगर भारत ने यह लक्ष्य पा लिया तो भारत इस क्षेत्र में भी नंबर 1 बन जाएगा.
इससे कई देशों को तकलीफ होना स्वाभाविक है. लेकिन बात सिर्फ नंबर 1 बनने की नहीं है. अगर भारत ने सौर ऊर्जा के उपयोग की नई तकनीकें विकसित कर लीं और इस क्षेत्र में सबसे आगे निकल गया, तो स्वाभाविक रूप से इस सौर गठबंधन के अन्य 120 देश भारत से ही सहयोग लेना चाहेंगे और इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की ताकत कई गुना बढ़ जाएगी. असली तकलीफ इस बात की है!
आप नरेन्द्र मोदी को सिर्फ गुजरात का नेता मानते हैं या सिर्फ चाय बेचने लायक मानते हैं, ये आपकी बुद्धि पर निर्भर है. आप मोदी को अमरीका एजेंट मानते हैं या अंबानी का, ये भी आपकी बुद्धि पर निर्भर है. आप सोशल मीडिया पर मोदी को राजनीति सिखाना चाहते हैं या कूटनीति, यह भी आपकी बुद्धि पर निर्भर है. मुझे उस पर कोई टिप्पणी नहीं करनी है.
लेकिन मेरी बुद्धि यह समझने में सक्षम है कि अगर एक तरफ आलू की फैक्ट्री व सेल्फी से रोजगार जैसी मूर्खतापूर्ण बातें हो रही हों और दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन व अंतरराष्ट्रीय योग दिवस जैसे कामों के द्वारा मेरे देश को विश्व में शक्तिशाली बनाने के लिए प्रयास हो रहे हों, तो मुझे किस तरफ खड़ा होना चाहिए. आप किस तरफ खड़े होना चाहते हैं, ये आपकी इच्छा है.
आपने 2014 में मोदी को किस काम के लिए वोट दिया था, ये मैं नहीं जानता. लेकिन मैंने मोदीजी को जिन कामों के लिए वोट दिया था, वे मुझे सही दिशा में बढ़ते हुए दिख रहे हैं.
इसीलिए मैंने ऊपर कहा कि अगर ज़रूरत पड़ी, तो 2019 में आधी दुनिया की दूरी नापकर भी मतदान करने भारत अवश्य आऊंगा. आप किसके पक्ष में योगदान करना चाहते हैं, ये तो आप ही बता सकते हैं. सादर!