आज के मारीच, रावण और हिन्दू दंपति

राम और सीता कहने की इच्छा तो थी मगर हिम्मत नहीं इसलिए केवल हिन्दू दंपति कह रहा हूँ. अस्तु.

आज advertising का इस्तेमाल करते वामी मारीच, उपभोक्तावाद के तहत स्त्री को ललचाते हैं.

उसे एहसास कराते हैं कि फलां फलां प्रॉडक्ट जो उसके भाभी / देवरानी / सहेली या पड़ोसन के पास है वो अगर उसके पास उस प्रॉडक्ट के मुक़ाबले का या उससे महंगा प्रॉडक्ट जब तक नहीं है, उसकी जिंदगी झंड है.

तो ये अपने पति को उस प्रॉडक्ट के लिए पैसे कमाने दौड़ाती है.

अब आज के युग में मृग का शिकार हिन्दू के लिए तो गुनाह हो गया तो पति केवल दौड़ते रहता है और थक जाता है.

अपनी मृगनयनी की बाकी जरूरतों के लिए उसके पास समय और ऊर्जा कम पड़ने लगती है, दोनों में दूरियाँ बढ़ने लगती हैं.

कोई लक्ष्मण भी नहीं होता आज, तब जालीदार टोपी जेब में छुपाकर, कलाई पे कलावा बांध कर रावण का बाइक पर आगमन होता है.

लंका की रानी बनने का प्रलोभन तब भी सीता को दिया था आज भी प्रलोभन भले अलग हैं लेकिन प्रलोभन हैं तो सही.

और तब जो ना मानी वो सीता थी, आज की कहानी अलग है. रावण उसे ‘मेरी मर्जी’, माय बॉडी माय चॉइस के मंत्र सिखाता है और पति के जीवन की लंका लग जाती है.

लगता है आज के मारीच और रावण के वध की ज़िम्मेदारी समाज पर है. वध आवश्यक है इसमें कोई दो राय नहीं.

Comments

comments

LEAVE A REPLY