लेख में नीचे प्रदर्शित चित्र है, चित्रकूट के समीप बिरसिंगपुर में पृथ्वी से प्रकट हुए शिव लिंग का.
लोक कथाओं में प्रचलित है कि ये औरंगज़ेब के काल में एक महिला को दिखे, उसकी रसोई में चूल्हे के नीचे स्वतः प्रकट हो गए थे.
औरंगज़ेब के सैनिकों को भनक लगते ही इसे खण्डित करने का प्रयास किया गया.
कहते हैं कि सैनिकों ने जैसे ही इस शिव लिंग पर प्रहार किया इसमें से रक्त बहने लगा था.
तद्पश्चात सैनिक भयाक्रांत होकर भाग खड़े हुए, फ़िर गाँव वालों ने इसकी प्राण प्रतिष्ठा करवाई.
वहीं ऊपर प्रदर्शित चित्र है ‘बसावन मामा’ का जिन्हें बरम अर्थात ब्रह्म कहा जाता है.
लगभग सात सौ साल पहले हुए एक ब्राह्मण की गाथा है जो रोज़ पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान लगाया करते थे.
ये थे तो किसी दूसरे राज्य के, पर ध्यान लगाने अन्य दूसरे राज्य जाते थे.
उस राज्य के सैनिकों को जब पता पड़ा तो उन्होंने इस ब्राह्मण को परेशान करना चालू कर दिया.
ब्राह्मण परेशान होकर एक रोज़ राजा के पास गया और विनती की कि राजन मैं निरपराध ब्राह्मण केवल ध्यान लगाता हूँ कृपया मुझे राज्य में आकर ध्यान लगाने की अनुमति दी जाए, और अन्य कोई प्रयोजन नहीं बस इस पीपल के पेड़ के नीचे मुझे दैवीय शक्ति का आभास होता है.
राजा ने सुनते ही अपने सैनिकों को इन्हें परेशान ना करने को कह दिया, पर सैनिक तो ठहरे सैनिक, उन्होंने उपहास उड़ाना बंद ना किया.
एक रोज़ किसी चिढ़ में उन्होंने पेड़ ही कटवा दिया जिससे ब्राह्मण बेहद आहत हुआ और फूट फूट कर रोया. जब सैनिक वहाँ पहुँचे तो उन्हीं की तलवार से सैनिकों का वध कर डाला.
कहते हैं कि जब राजा को ये पता पड़ा तो वो स्वयं उस ब्राह्मण देवता के पास आया पर क्रोधी ब्राह्मण ने उसके पूरे वंश को श्राप दे दिया और कहा कि तेरे वंश में कोई नहीं बचेगा.
ऐसा हुआ भी, एक-एक करके राजा के वंश में मौतें होती गयीं… गाँव बंजर हो चला था एक दम श्मशान सा, जो भी उस ब्राह्मण के पास जाता श्राप का भागी बनता.
राजा की एक बहन भी हुआ करती थी. उसे जब ये पता पड़ा तो वो गाँव आई पर क्रोधी ब्राह्मण के पास कैसे जाए और अपने घर को श्राप से मुक्त करवाये, ये नहीं सूझ रहा था.
तब उसने उस ब्राह्मण के पास अपने इकलौते बेटे को भेजा और कहा कि जैसे ही ब्राह्मण दिखे तो उसे मामा कहकर पुकारने लगना.
बेटे ने ऐसा ही किया. ब्राह्मण ने मामा शब्द सुनते ही अपने क्रोध को शांत किया. तभी दुःखी मन से राजा की वो बहन जा पहुँची और ब्राह्मण से श्राप मुक्ति की भीख मांगने लगी.
चूँकि रिश्ता अब भाई-बहन का बन चुका था तो ‘बसावन मामा’ को श्राप से मुक्त करना ही था, पर उसके लिए उन्हें अपने प्राण त्यागने पड़ते, जो उन्होंने सहर्ष स्वीकार करते हुए उसी जगह जहाँ कभी पीपल का पेड़ हुआ करता था, अपने प्राण त्याग दिए.
प्राण त्यागने से पूर्व वे कह गए थे कि मेरी समाधि यहीं बना देना जहां पीपल का पेड़ था, उनके ध्यानस्थ होने के पश्चात उनकी समाधि के ठीक बगल से एक बार पुनः एक पीपल का पेड़ उग आया.

कहते हैं कि ये पीपल का पेड़ बसावन मामा के जीवित होने का प्रमाण है, जिससे उस गाँव में एक बार फ़िर सुख समृद्धि लौट आई थी. तबसे यह चबूतरा ‘बसावन मामा’ का चबूतरा कहलाता है.
यहाँ लोगों की हर छोटी बड़ी मनोकामना पूर्ण होती है, क्योंकि औरतें इन्हें अपना भाई मानती हैं और ये अपनी बहनों की मनोकामना अवश्य पूरी करते हैं जैसे उस राजा की बहन की की थी.
भारत वर्ष में हर गाँव की अपनी महिमा है, हर चार ढग पे एक लोककथा और आश्चर्य चकित कर देने वाली बात मिलेगी.
कितना कुछ है हमारे पास ‘इतिहास’ और ‘इतिहासकारों’ को देने के लिए मगर अफसोस की हम अपनी जड़ों से कटते कटते आज इस स्थिति में पहुँच गए कि अस्तित्व पर ही बात आ टिकी.
ख़ैर यदि आपके आस पास भी कोई ऐसे स्थल या लोककथाएं प्रचलित हैं तो उन्हें साझा करिए, जानने दीजिये नई पीढ़ी, को काम आएगी उसके. उसे हिन्दू होने पर गौरव का भान कराएगी, कि वह कितनी रहस्यमयी व ऐतिहासिक परंपरा का ध्वज वाहक है.