तुमने मुझे प्यार किया या नहीं
नहीं जानती
जानना भी नहीं चाहती
हाँ, जलते, बुझते, टिमटिमाते दिये जैसे एक ख़्वाब में रहना बहुत सुहाता है मुझे
मन हमेशा आनंदित रहता है इस ख़्याल भर से ही
कि प्रेम तो था
बेपनाह था, अथाह था
है भी, रहेगा भी
और क्या चाहिए
प्रेम न तो कोई लेन देन है, न ही कोई व्यवहार
यह तो उस ख़ुदा की कोई अनमोल कृति है
जिसकी झोली में चाहे वो डाल देता है
हाँ, इतना ज़रूर है
तुम्हारे आने से मेरा अपने अधूरेपन से सामना हुआ
और तुम्हारे जाने से अपनी पूर्णता से
अपनी आत्मा के साथी के लिए भटकन अपने लिए भटकन ही तो थी
तुम आते-जाते नहीं तो वो भटकन अगले जन्म तक जाती
न जाने कितने जन्मों की थी
तुम आते – जाते नहीं तो मैं कैसे महसूस करती
मैं ही अर्धनारिश्वर हूँ
तुम आते – जाते नहीं तो कैसे प्रेम से भरती मैं
कैसे आनंद से हो जाती लबालब
कैसे फूटता संगीत मेरी रूह के इकतारे पे
प्रेमी भी मैं ख़ुद, प्रेमिका भी, प्रेम भी
पर तुम मेरे म्यूज़, तुम्हारे बिना कैसे संभव होता यह सब
तो ‘मैं‘ का होना भी ज़रूरी था
‘तुम‘ का भी
‘सिर्फ़ मैं‘ हो जाने के लिए
‘तुम‘ का बेहद शुक्रिया तो बनता है
ज़र्रे को आफ़ताब बनाने के लिए…