मेरा यह प्रेम कायर नहीं और बलहीन भी नहीं
क्या यह व्याकुल होकर आँखों में
आंसू की बूँद ही बनाता रहेगा?
आनंद में पागल हो वह
तेरे साथ जागना चाहता है
न कि मन्द मधुर शोभा से अलसाना…
तू जब भीषण स्वरूप धारण करके तांडव करता है,
तो तीव्र ताल के आघात से वह डांवाडोल होने लगता है,
लज्जा से भागने लगता है…
इस रोद्र मनोहर प्रेम का ही मैं वरण कर पाऊँ
क्षुद आशाओं का प्रेम-स्वर्ग रसातल में पहुँच जाए….
– रवीन्द्रनाथ ठाकुर (गीतांजली)