बात 2015 की है. पहले मुझे थाइरोइड हुआ, फिर दांत का दर्द … ऊपर से बेरोज़गारी का आलम… मेरे मुंह से निकला – हे प्रभु मेरी कृपा कहाँ रुकी हुई है?
ये सवाल लेकर आखिरकार हम ध्यान बाबा के दरबार में पहुंचे… और उन्हें कोटि कोटि प्रणाम किया…
पहले तो ध्यान बाबा ने आँखें बंद करके गुजश्ता दिनों का चक्कर लगाया और वहां से एक उपाय पाया… कहने लगे बताओ लौंग लता खाया है कभी…
मैंने कहा नहीं बाबा, बाबा ने कहा खाना भी मत लेकिन खिलाओ…. उदयन के बच्चों के लिए जो सहयोग राशि देने का वादा करके, वादे को लौंग लता समझ कर डकार गयी उसे पूरा करो… आपकी कृपा वहीं रुकी हुई है…
ध्यान बाबा के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम करते हुए उनके उपाय पर अमल करने के लिए ज़िंदगी का महत्वपूर्ण दिन चुना… 15 मई … बड़े बेटे ज्योतिर्मय का पांचवा जन्मदिवस… और बेरोजगारी के आलम में अपने सामर्थ्य अनुसार एक छोटी सी राशि उनको भिजवाई…
बाबाजी का कहना है दो बेटियों के बाद वही आदत बनी रही इसलिए बेटे के निर्माण में कुछ प्रोडक्शन defect रह गया और ज्योतिर्मय के चेहरे पर बेटियों वाली मासूमियत आ गयी है…
लेकिन चूंकि गीत बाबू के जन्म से पहले बेटे को जन्म देने की प्रैक्टिस हो गयी थी इसलिए गीत बाबू Boys are always boys मार्का ही निकले…
चित्र में बीच में उदयन स्कूल के सुरेश टोकनी में बैठे हुए और आसपास पानी के टब में बैठे हुए ज्योतिर्मय जब 3 और 4 साल के थे.. बच्चे चाहे अपने हो या मुसहर के बच्चे सब प्यारे होते हैं…
मन्नतों वाला बेटा
औलादें तो सभी की मन्नतों वाली होती है… लेकिन कोई- कोई ऐसा भी होता है जिसके लिए नियति खुद मन्नत मांगती है और जब ऐसी मन्नत पूरी होती है तो किसी एक माँ की कोख नहीं पूरी प्रकृति की कोख पल्लवित होती है….
ज्योतिर्मय एक ऐसा ही मन्नतों वाला बेटा है… जैसा कि मैं अक्सर किया करती हूँ… अतीत की कोई बात छेड़कर उसकी कहानी फिर कभी सुनाने का वादा कर वर्तमान में चल रही कहानी पहले प्रस्तुत कर देती हूँ… क्या किया जाए, जीवन का हर पल, हर क्षण इतना अधिक एक दूसरे से जुड़ा हुआ है कि कई बार मैं इसलिए कोई घटना लिखना शुरू नहीं कर पाती हूँ क्योंकि उसके पहले के हिस्से को बताए बिना उसके बाद का किस्सा सुनाना निरर्थक सा लगता है… और वो पहले का किस्सा और उसके पहले वाले किस्से से सम्बंधित होता है… इसलिए ज्योतिर्मय के जन्म की कहानी फिर कभी, फिलहाल अभी-अभी महीने भर की बीमारी को झेलकर स्वस्थ हुए ज्योतिर्मय की कहानी सुनिए…
हम शुरू करते हैं ज्योतिर्मय के नए युनिफोर्म में स्कूल जाने के दिन से … जनाब घर लौटकर आए तो बहुत उदास और उनींदे से लगे…. पहले सोचा थकान होगी या बोर हो रहे होंगे.. उस दिन बाजू वाले आँगन में अपने पिता के साथ बागवानी करते हुए भी उनका मन नहीं लग रहा था…. लेकिन रात होते होते हल्का सा बुखार चढ़ा…
पहले 2 दिन तो घर में जो बुखार की एलोपेथिक दवाई रखी थी वो पिलाते रहे, यह सोचकर कि यदि बदलते मौसम की वजह से बुखार चढ़ा होगा तो उतर जाएगा…. जब दो दिन में बुखार नहीं उतरा तो दादाजी का आदेश आया – “आप लोगों को हर बात के लिए कहना क्यों पड़ता है, बच्चे को आज ही डॉक्टर के पास लेकर जाइए”.
उनकी शेर जैसी भारी आवाज़ के आदेश पर मैं बकरी की तरह मिमयाते हुए “जी” भर कह कर रह गयी…
तो भई ये है डॉक्टर के पास पहला चक्कर- डॉक्टर को 150 रुपये फीस देने और 350 की दवाई खाने के बाद भी जब अगले तीन दिन तक बुखार नहीं उतरा, तो फिर डॉक्टर के यहाँ दूसरा चक्कर- डॉक्टर साहब का कहना है – चूंकि ठण्ड लगकर बुखार आ रहा है तो मलेरिया हो सकता है अब आप मलेरिया की दवाई दीजिये, वायरल समझकर तीन दिन तक एंटीबायोटिक देने के बाद भी जब बुखार नहीं उतरा फिर 100 रुपये खर्च कर अगले तीन दिन तक मलेरिया की दवाई दी गयी….
बच्चे का बुखार 103-104 तक पहुँच चुका था और मलेरिया की दवाई भी बेअसर…
फिर डॉक्टर के पास तीसरा चक्कर… डॉक्टर का कहना है मलेरिया की दवाई भी असर नहीं कर रही मतलब पक्का अब तो टाइफाइड है आप खून की जांच करवाइए…
– हे भगवान बीमारी में बच्चा वैसे ही आधा हो गया है, ऊपर से खून निकलवाकर जांच करवाएं!!!!
उस एलोपेथिक डॉक्टर को वहीं राम राम करके हम होम्योपेथिक डॉक्टर की शरण में गए.. उनको दिए 200 रुपये फीस…
आप लोग सोच रहे होंगे बच्चे की जान से प्यारे क्या रुपये हैं जो ये बच्चे की बीमारी के साथ-साथ पैसों का हिसाब बता रही है…
ना, माँ चाहे अमीर हो या गरीब हो, बच्चे की जान से प्यारे नहीं होते रुपये, लेकिन माँ के पास रुपये हों तो…
हम तो समर्थ हैं… कर लेते हैं बच्चों की बीमारी पर हजारों रुपये खर्च… मैं तो उस गरीब माँ के बच्चे की बीमारी का खर्च जोड़ रही हूँ जिसकी महीने की कुल कमाई ही बच्चे की बीमारी में खर्च होते रुपयों जितनी होती हैं…. उनके बच्चों को तो ये भारी भरकम बीमारियों से ग्रस्त होने का भी हक नहीं है…. जब इतने अनुभवी और महंगे डॉक्टर बच्चे की बीमारी नहीं पकड़ पाए और मामूली से बुखार को टाइफाइड तक खींच कर ले आए तो सरकारी अस्पताल के डॉक्टर और वहां की चिकित्सा व्यवस्था से क्या हम वाकिफ नहीं?
होम्योपेथिक डॉक्टर ने जो दवाई दी उससे दो दिन में ही ज्योतिर्मय को आराम मिल गया लेकिन तीसरे दिन फिर वही 103 बुखार..
डॉक्टर साहब को फोन लगाया तो उन्होंने आश्वासन दिया दवाई देते रहिये… टाइफाइड कर दिया गया है तो कम से कम 21 दिन लगेंगे बुखार पूरी तरह से ख़त्म होने में… 21 दिन!!! मैं तो सोच सोच कर ही घबरा रही थी… लेकिन इस बात का शुक्र भी मानते रहे कि एलोपेथिक के चक्कर से मुक्ति मिली क्योंकि उन्हीं दिनों अखबार में उस एलोपेथिक डॉक्टर का नाम पढ़ा कि उनकी लापरवाही से एक बच्चे की मौत हो जाने से बच्चे के माता पिता ने उन पर केस कर दिया है….
चूंकि ज्योतिर्मय और गीत दोनों बेटों का जन्म से ही इलाज वही डॉक्टर करते आ रहे हैं इसलिए ये भी नहीं कह सकते कि डॉक्टर लापरवाह है… लेकिन हाँ डॉक्टर फिर भी डॉक्टर है भगवान नहीं… इधर ज्योतिर्मय ने खाना खाना बिलकुल छोड़ दिया… दिन भर बुखार और खाना न खाने की कमजोरी में भी उस बच्चे की ऊर्जा में कहीं कोई कमी नहीं आई थी … चाहे बच्चा मन्नतों वाला हो, पूरी प्रकृति को उसकी रक्षा करते हुए आप देख रहे हो… और ये माँ, माँ जीवन शैफाली हो तब भी ऐसी स्थिति में मुझ जैसी माँ भी एक साधारण माँ हो जाती है… और अपने साधारण से बच्चे के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार …
चूंकि टाइफाइड (मोतीझरा) साबित हो गया था इसलिए होम्योपेथिक दवाई चालू रखते हुए उसे झड़वाने के लिए हम पहुंचे डॉक्टर अली की शरण में…
एक बार पहले भी डॉक्टर अली के बारे में बता चुकी हूँ … एक पढ़े लिखे MBBS डॉक्टर, AIIMS के सदस्य लेकिन लोग उन्हें बाबाजी कहते हैं, वो एलोपेथिक इलाज नहीं करते, उन्हें कुछ ऊपरी शक्तियों का आशीर्वाद प्राप्त हैं…. रमजान के महीने में रोजा और दोनों नवरात्रि पर नौ दिन का उपवास रखने वाले डॉक्टर अली के दरबार में सुबह शाम इतनी भीड़ रहती हैं कि समय पर न पहुँचो तो दो दो घंटे बाद नंबर आता है. और इस बीच देश-विदेश से फोन आते रहते हैं सो अलग…
फोन पर ही वो बीच-बीच में वहां के समय के अनुसार कुछ उपाय बताते जाते हैं… ज्योतिर्मय और गीत पर उन्हें ज़रा विशेष स्नेह हैं इसलिए अधिक भीड़ होने पर इशारे से दोनों को आगे बुला लेते हैं…. वो दोनों भी इतने घुल मिल गए हैं उनसे कि घर आकर उनके जैसी टोपी पहन एक हाथ में मोरपंख की जगह कोई भी झाडू पकड़ उनका अभिनय करने लगते हैं…
6 साल पहले की इंदौर वाली शैफाली को कोई इन पीर फ़कीर और बाबाओं की बात करता हुआ सुन ले तो उसके पैर के नीचे से धरती खिसक जाए… ये खुद को अत्याधुनिक समझने वाली और अक्सर इन बाबाओं का मज़ाक उड़ाने वाली खुद बाबाओं के चक्कर लगा रही है… तो मैं यही कहूंगी… जादू उसी को दिखाई देता है जो इस जादू में यकीन करता है…
बहुत सारे उपाय बताते हुए लगातार पांच दिन तक उनके दरबार में ज्योतिर्मय को झड़वाने जाने का हुक्म मिला… उन्हीं दिनों एक शाम डॉक्टर अली के पास से लौट रहे थे कि रास्ते में रेल फाटक बंद मिला… स्वामी ध्यान विनय ने कहा चलो ब्रिज पर से घूमकर चलते हैं… मैंने सोचा इतनी भीड़ में बाइक पीछे लेने में उन्हें तकलीफ होगी तो मैं गाडी से उतर गयी… मेरी गोद में छोटे नवाब गीत बाबू बैठे थे, वो भी उतर गए…
ध्यान बाबा ने गाड़ी मोड़ी, मैंने पूछा- बैठ जाएं?… उन्होंने कहा- हां…
मैंने बेटे को सीट पर बिठाया और खुद बैठने लगी … इतने में स्वामीजी ने गाड़ी आगे बढ़ा दी… मैंने कहा अभी मैं बैठी नहीं हूँ… लेकिन हेलमेट पहने होने के कारण उन तक मेरी आवाज़ शायद नहीं पहुँच पाई … मुझे लगा भीड़ से निकलकर शायद गाडी खड़ी कर देंगे.. लेकिन कहाँ… जनाब तो चले जा रहे हैं… छोटा बेटा भी मुड़कर देख रहा है कि पापा गाड़ी आगे बढ़ा रहे हैं लेकिन शैफाली मम्मा तो बैठी ही नहीं है….
मैं वहीं बीच सड़क पर खड़े होकर उन्हें जाते देख रही थी… सिर्फ 6 सेकण्ड लगे होंगे उन्हें मेरी आँखों से ओझल होने में लेकिन इन 6 सेकंड्स में मेरी दुनिया 6 साल पीछे चली गयी, जब इंदौर में बेटियों का साथ था, डिप्रेशन के उन दिनों में सबकुछ होते हुए भी मैं कई बार सड़क पर अपनी गाड़ी चलाते हुए अचानक बेसुध सी खड़ी हो जाती थी… और कोई न कोई वाहन मुझे पीछे से टक्कर मार जाता और मैं सड़क पर गिर पड़ती… तब मुझे होश आता कि मैं कहाँ हूँ… या कभी कभी गाड़ी चलाते हुए इतनी आगे निकल जाती कि होश ही नहीं रहता था कि घर पीछे छूट गया है…. उन 6 सेकंड्स में मेरी पूरी दुनिया जैसे गोल घूम गयी ……. 6 साल पीछे की दुनिया की केवल कल्पना मात्र से मेरा वजूद ढह कर मिट्टी हो गया था… मैं कहीं नहीं थी… मेरी दुनिया कहीं नहीं थी…
6 साल में पहली बार ऐसा हुआ होगा कि वो मुझे छोड़कर, (अनजाने में ही सही) आगे बढ़ गए हो……..
अचानक मैं अपनी अवस्था से बाहर आई… सड़क किनारे खड़ी होकर पर्स से अपना मोबाइल निकाला और ध्यान बाबा को फोन लगाया …. कभी-कभी इस आधुनिकता के शुक्रगुज़ार भी हो जाते हैं हम….
इस बीच उन्होंने बातों बातों में बेटे से मज़ाक में पूछ लिया था… देखो ज़रा मम्मा बैठी कि नहीं… बेटे ने भी सच बता दिया कि नहीं बैठी, उन्हें लगा मज़ाक कर रहा होगा बेटा. लेकिन जब सर घुमाकर देखने पर इन्हें मैं नज़र नहीं आई तो जनाब का दिल भी कुछ सेकंड्स के लिए हाथ में आ गया….
एक दूसरे को ढूंढकर जब मिले तो मैंने हँसते हुए कहा- क्यों लौटकर आए… मन में तो सोच रहे होंगे चलो बला टली … रोज़ रोज़ की चिक चिक से छुटकारा मिला…
कहने लगे आज 1st अप्रैल नहीं होता तो आपको छोड़कर चला भी जाता, आज छोड़कर जाता तो आप समझती अप्रैल फूल बना रहा हूँ….
दोनों रास्ते भर बच्चों को चिढ़ाते हुए घर पहुंचे कि देखो आज तो मम्मा ने हमें अप्रैल फूल बना दिया … लेकिन दोनों उन पलों को सोचते हुए भी न सोचने का अभिनय करते रहे कि यदि कभी सच में ऐसा हुआ कि जीवन की गाड़ी में ये शैफाली समय पर बैठ न पाई तो क्या होगा …
और दोनों इस असंभव सी स्थिति की संभावना को नकारते हुए आगे बढ़ गए……….
पांच दिनों तक डॉक्टर अली से झड़वाने के बाद और होम्योपेथिक दवाई का चालू रखने के बाद भी ज्योतिर्मय को जब तब 102 – 103 बुखार चढ़ जाता डॉक्टर साहब ने कह दिया था… बुखार आना एकदम से बंद हो जाना भी ठीक नहीं होता, केवल चावल का परहेज़ कीजिए … बाकि बच्चा जो मांगे कम तेल घी में बनाकर खिलाइए…. … खाने के नाम पर केवल मैगी पर आश्रित थे ज्योतिर्मय… इसलिए आटा नूडल्स से लेकर माधुरी दीक्षित के विज्ञापन वाली ओट्स वाली मैगी तक खिला दी ताकि मैदा कम से कम जाए पेट में… इस बीच बड़ी मम्मा ने घर में भी आटे के नूडल्स बनाकर उसमें सब्जियां मिलाकर खिलाकर देख लिए…
दिन-ब-दिन उनका खाना और कम होता जा रहा था…. इस बीच मैंने फेसबुक से अवकाश ले लिया… ताकि पूरा ध्यान केवल बच्चे पर रहे… वो जब तक कुछ खा नहीं लेता था मेरे गले से चाय तक नहीं उतरती … कई बार उसके कुछ खा लेने के बाद ही कुछ खाती… बच्चों को खाना खिलाने की ज़िम्मेदारी सामान्यत: बड़ी मम्मा की होती हैं… नखरैल बच्चों को कहानियों में उलझाते हुए कैसे उनकी नापसंदगी का खाना खिलाया जाए इस बात में तो वो एक्सपर्ट है लेकिन इस बार उनकी भी सारी तरकीबें फेल हो रही थी… पोते की गिरती हालत को देखकर शेर से व्यक्तित्व वाले दादाजी के कंधे भी झुके जा रहे थे…
कभी बहुत पहले सुना था कि यदि बीमार व्यक्ति के पैर के अंगूठे को धोकर उस जल को कोई पी ले तो वो बीमारी उस व्यक्ति को मिल जाती है…. ज्योतिर्मय की गिरती हालत ने मुझे भावनात्मक रूप से कमज़ोर कर दिया था… तो मैंने ये भी कर डाला…. ध्यान बाबा को आज की तारीख तक ये बात नहीं पता…. वो भी इसे पढ़ते हुए ही आज जानेंगे…
इसे होम्योपेथी दवाई का असर कह लें, डॉक्टर अली का इलाज, उस टोटके का असर, या माँ की ममता… अगले दिन से ज्योतिर्मय को बुखार आना बंद हो गया…
बुखार कम होने के बावजूद खाने पीने को लेकर उनकी अरुचि जारी थी… ऐसे में बच्चों के साथ बच्चों वाली तरकीब अपनाना पड़ती है…. कहीं पढ़ा था घर में दो बच्चे हो तो माँ को, माँ का कम रेफरी का रोल अधिक निभाना पड़ता है…. तो आधा समय तो दोनों नवाबों के झगड़े और मुक्कालात से निपटने में ही निकल जाता है…
बीमारी में ज्योतिर्मय जी उतने ताकतवर नहीं रहे थे लेकिन आज भी गीत बाबू उनके कॉम्पिटिटर तो हैं ही सही. तो ज्योतिर्मय के दूध के कप में दूध लाया जाता और उन्हें दिखाते हुए गीत बाबू से कहा जाता अब मिकी भैया ने तो दूध पीना छोड़ दिया है अब आप ही उनके कप में पी लो … तो मिकी बाबू इसलिए दूध गटक जाते कि कहीं चिकी बाबू को उनका दूध न मिल जाए…
कुछ खाना भी इसी तरकीब से खिलाया जाता… हमारे गीत बाबू इस मामले में बिंदास है…. कोई चीज़ ना मिले तो कहने लगते हैं… “अरे यारों…. कोई बात नहीं मुझे चाहिए भी नहीं”. चार साल के गीत बाबू को बड़ी मम्मा पाडो कहती हैं और मैं छोटी-सी गुडगुड या कान्हा कहती हूँ… और वो खुद कहते हैं कि मुझे हीरो गीत नायक पुकारा जाए…. क्योंकि नायक का अर्थ भी तो हीरो होता है ना!
ज्योतिर्मय के बारे में जैसे मैंने पहले ही कह दिया था कि औलादें तो सभी की मन्नतों वाली होती है… लेकिन कोई- कोई ऐसा भी होता है जिसके लिए नियति खुद मन्नत मांगती है और जब ऐसी मन्नत पूरी होती है तो किसी एक माँ की कोख नहीं पूरी प्रकृति की कोख पल्लवित होती है…. ज्योतिर्मय एक ऐसा ही मन्नतों वाला बेटा है… इसलिए बड़ी मम्मा के इस लाडो को मैं जादू ही कहती हूँ. और इस बात का उन्हें पूरी तरह यकीन भी है कि वो एक जादूगर हैं और उन्हें भगवान ने विशेष रूप से बनाया है… इसलिए उनकी बातें कुछ इस तरह की होती है–
आपको पता है मेरी दो आँखों के अलावा भी बहुत सारी आँखें हैं इसलिए जब मैं सो जाता हूँ और ये दोनों आँखें बंद हो जाती हैं तब मेरी बाकी की आँखें खुल जाती है…. और मुझे सबकुछ दिखाई देता है.. तभी तो मैं जब कोई सपना देखता हूँ तो सपने में खुद को भी देख पाता हूँ….
कभी हम उनसे कह दे किचन में मत आओ बघार लग रहा है मिर्ची आँख में उड़ जाएगी तो झट से जवाब आता है मिर्ची के कोई पंख थोड़ी ना है जो उड़कर मेरे आँख में आ जाएगी…
अगला वार – शैफाली मम्मा मैं बड़ा कब होऊंगा …
जब आप खूब पढोगे, लिखोगे, खूब खाना खाओगे तब…
नहीं मुझे पता है जब मेरा जन्मदिन आता है तो मैं एक बार थोडा सा बड़ा हो जाता हूँ और फिर हर जन्मदिन पर थोडा थोडा बड़ा होता हूँ
– एक और लीजिये…. चिकी बाबू पैर में कुछ काला सा लगाकर आ गए हैं …. हम उनसे कुछ पूछे उसके पहले ही ज्योतिर्मय जी बोल पड़े लगता है चिकी कालानर लगा कर आ गया है…
कालानर???
कल आप जो लाई थीं वो वाइटनर है जिसे लिखे हुए पर लगाकर आप उसे सफ़ेद कर रही थी… चिकी ने काला कर लिया मतलब कालानर लगा दिया है…
और सबसे ज्यादा अचंभित करनेवाला तो ये है..
बड़ी मम्मा मेरे हाथ देखो कितनी जाली आ गयी है इसमें…
बड़ी मम्मा ने भी अभिनय करते हुए कह दिया हाँ लाडो कैसे बन गयी इतनी सारी जाली तुम्हारे हाथ में.?
– ज्योतिर्मय उवाच- मैं जब मम्मा के पेट में बन रहा था तभी मेरे हाथ में जाली भी बन रही थी….
सब अचंभित…. सब चुप!!!!!
एक दिन कहने लगे पता है ना शक्ति का रंग लाल होता है. और ये शक्ति हमारी नाभि में होती है!!!
ज्योतिर्मय अब पूरी तरह स्वस्थ है लेकिन किसी ज़माने में जिसे मैं गोल गपाड़ा कहती थी वो इतना दुबला हो गया है कि गोदी में उठाने पर वो खुद कहते हैं मुझे आपके हाथ चुभ रहे हैं… कमजोरी के कारण बहुत अधिक आक्रामक हो गए हैं…. जब तब गीत बाबू को बिना बात के पीट देते हैं… उनके पिताजी तो रोज़ उनके घूंसे के शिकार होते हैं… दिन भर शैफाली मम्मा, शैफाली मम्मा कहते हुए बस मुझे खोजते रहते हैं… मैं एक पल के लिए भी उनकी आँखों से ओझल हुई तो पूरा घर सर पर उठा लेते हैं…. रात को सोते हुए मेरा हाथ इतना कस कर पकड़ लेते हैं कि कहीं उनके सोने के बाद मैं उनसे दूर न हो जाऊं… आँख खुलते ही सबसे पहले शैफाली मम्मा नज़र आना चाहिए…
एक दिन फिर इतने अधिक आक्रामक हो गए कि उन्हें घर के बाहर घुमाने ले जाना पड़ा … घर के पीछे एक गार्डन है नाम भी बड़ा अच्छा है.. दादा-दादी-नाना नानी पार्क …. वहां गए तो पता चला ज्योतिर्मय जी के अन्दर भय बहुत अधिक आ गया है…. वहां पर हिलते झूले देखकर वो भय से चिल्लाने लगे… बड़ी मुश्किल से समझाकर वहां के कॉफ़ी हाउस में उनको बिठाया तरह तरह का खाना और आइसक्रीम दिखाई ताकि खाने में कुछ रूचि जागे…. वो तो मेरे साथ पूरे टाइम कॉफ़ी हाउस में बैठे रहे लेकिन गीत बाबू की शाम रोशन हो गयी…. पूरे समय झूले और तरह तरह की राइड्स का आनंद लिया..
घर आकर ज्योतिर्मय जी की फरमाइश आई मुझे तो घर का बना डोसा खाना है… उन्हें तुरंत सूजी का इंस्टेंट डोसा बनाकर खिलाया…
हड्डियों पर मांस बिलकुल नहीं बचा है…. छाती की पसलियाँ दिखने लगी है…. फल और मल्टीविटामिन्स देना शुरू कर दिए हैं…. एक दिन फिर उनकी तरफ से पहली बार फरमाइश आई मुझे तो समोसा ही खाना है और जिद पकड़कर ज़मीन पर बैठ गए कि जब तक आप समोसा नहीं दोगे मैं यहीं बैठा रहूँगा …
सब उलझन में अब क्या किया जाए… तला हुआ देना नहीं है… फिर क्या था उनके लिए तुरंत आलू उबालकर समोसे का मसाला बनाया गया… मैदे की जगह आटा गलाया गया और समोसे का आकार देकर ओवन में सेंक कर समोसे तैयार कर उनके सामने डरते डरते पेश किए गए कि कहीं तले हुए समोसे की फरमाइश न आ जाए लेकिन शुक्र है .. जनाब को समोसे पसंद आए.. . लेकिन जब तक समोसे बनकर उनके सामने नहीं आ गए वो ज़मीन पर ही बैठे रहे….
उसी रात को फरमाइश हो गयी कल मैं इडली खाऊंगा ………..
अगले दिन इडली बनाई गयी..
फिर तो उनकी फरमाइश की लिस्ट और भोजन की तलब इतनी बढ़ गयी कि हमें अब उन्हें खाने से रोकना पड़ता है… पाचन शक्ति अभी इतनी मजबूत हुई नहीं है कि हर तरह का खाना खिलाया जाए… आजकल लेकिन वो इसलिए घर को सर पर उठा लेते हैं कि हम उन्हें खाना नहीं देते ….
ऊपर से कहीं भी आने जाने के लिए बाइक और कार में बैठने से डरने लगे हैं… उन्हें बहलाते हुए पैदल गोदी में उठाकर ले जाती हूँ ध्यान बाबा पीछे से बाइक लेकर आते हैं मैं उसे बातों में बहलाते हुए बाइक पर बैठ जाती हूँ…. वो बहल जाते हैं… जब याद आता है उन्हें बाइक पर बिठा दिया गया है तो रस्ते में ही दहाड़े मार मार कर रोना शुरू…
इस बीच एक दिन एक शादी में जाना हुआ … कार में बैठने को तैयार नहीं हुए तो तय हुआ पहले मुझे और ज्योतिर्मय को विवाह स्थल पर छोड़ा जाएगा फिर गीत और बड़ी मम्मा को… हम पहले पहुंचे… लेकिन कुछ ज्यादा ही पहले पहुँच गए…. गिनती के 20-25 लोग दिख रहे थे… खाने के नाम पर केवल दाल चावल और आलू की सब्जी और रोटी… जिनके विवाह समारोह में आए थे वो सम्पन्न परिवार से नहीं है ये तो पता था लेकिन गरीब से गरीब इंसान भी एक मिठाई तो रखता है कम से कम….
खैर …. सोचा गीत और बड़ी मम्मा के आने से पहले ज्योतिर्मय को भोजन करवा देती हूँ ताकि ध्यान बाबा के साथ ही घर लौट सकूं… ज्योतिर्मय जी ने दाल के साथ गरमागरम रोटी खाई और बड़े संतुष्ट भाव से बोले आप घर में ऐसी ही दाल बनाया करो मुझे बहुत अच्छी लगी… इस बीच ध्यान बाबा को फोन लगाया उन्होंने फोन उठाकर कहा आप तुरंत बाहर आ जाइए मैंने आपको गलत जगह ड्रॉप कर दिया है… हम बाहर निकले और खूब हंसें… बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना जो हो गए थे…. हम सबलोग उसी स्थान से 10 कदम की दूरी पर चल रहे विवाह समारोह में शामिल हुए….
कहते हैं जो होता है अच्छे के लिए ही होता है… शादी का मसालेदार खाना खाने से बच जाए इसलिए ज्योतिर्मय को पहले भरपेट सादा खाना खिलवा दिया गया… ज्योतिर्मय खुद कहते हैं पहले वो नकली शादी वाली जगह पर खाना इसलिए मिला ताकि मेरे मुंह का स्वाद ठीक हो जाए… वो दाल सच में बहुत अच्छी थी…
मैं उन मेजबान का नाम तो नहीं जानती हम जिस परिवार के समारोह के मेहमान बन कर ज्योतिर्मय जी के मुंह का स्वाद ठीक कर आए थे… लेकिन मैं इतना ज़रूर जानती हूँ कि वो भोजन समारोह सिर्फ और सिर्फ ज्योतिर्मय के मुंह का स्वाद ठीक करने के लिए ही आयोजित हुआ होगा…. क्योंकि उसके बाद ज्योतिर्मय जी की जो भूख जागी है, हमारे लिए उन्हें खाने से रोकना मुश्किल हो रहा है….
धीरे धीरे सामान्य हो रहे हैं ज्योतिर्मय… लेकिन सामान्य कहा… साधारण नहीं… वो असाधारण आत्मा है…. जो मेरे बब्बा (ओशो) का आशीर्वाद है… मेरे आश्रम में रहकर संन्यास लेने के बाद प्रसाद के रूप में मिला आशीर्वाद… मन्नतों वाला बेटा ज्योतिर्मय ….
– शैफाली मम्मा (2015 में ज्योतिर्मय के बीमार होने पर लिखी फेसबुक पोस्ट्स)