सांस्कृतिक नरसंहार का सबसे बड़ा शिकार भारतवर्ष रहा है.
सन 711 CE में सिंध में बिन-कासिम के आक्रमण, लूटपाट, कत्लेआम और हिन्दू मंदिरों को गिराने से मुस्लिमों का आक्रमण प्रारम्भ हुआ.
फिर तो अनेकों इस्लामिक आक्रमण हुये. सबका उद्देश्य काफिर हिंदुओं को लूटना, मंदिरों को तोड़ना, स्त्रियों और बच्चों को दास बना कर ले जाना व बचे लोगों को मुस्लिम बनाना ही था.
मुस्लिमों द्वारा मारे गए हिंदुओं की संख्या के बारे में स्वामी विवेकानंद का एक व्याख्यान, जो उन्होने अप्रैल 1899 में दिया था, का संदर्भ लेना उचित होगा.
स्वामी जी ने कहा था, “सबसे पुराने मुस्लिम इतिहासकार फ़ेरिश्ता के अनुसार जब पहली बार मुसलमान भारत आए तब यहाँ 60 करोड़ हिन्दू थे, अब हम मात्र 20 करोड़ ही है.“
अर्थात, करोडों हिंदुओं को मुस्लिम शासकों और आक्रमणकारियों ने मार डाला.
सन 1907 में स्वामी विवेकानंद की मृत्यु के बाद अविभाजित भारत के दंगों, मुस्लिम लीग के डाइरैक्ट एक्शन डे, नोआखाली, और भारत के विभाजन के दौरान लगभग 8-10 लाख हिंदुओं और सिखों का कत्लेआम कर दिया गया.
किन्तु स्वतंत्र भारत के इतिहास की पुस्तकों में से इन तथ्यों को जानबूझ कर निकाल दिया गया है. आज की पीढ़ी के बच्चों को इन तथ्यों का जरा भी ज्ञान नहीं है.
आधुनिक इतिहास में ही 1947 के पश्चात मुस्लिमों ने पूर्वी बंगाल और पश्चिमी पंजाब के सभी हिंदुओं का समूल उन्मूलन कर दिया.
प्राचीन हिन्दू मंदिरों और धरोहरों का विध्वंस कर दिया गया. आज भी बचे खुचे पाकिस्तानी और बंगलादेशी हिन्दू दहशत में जीते हैं.
हर साल 300-400 हिन्दू लड़कियों का अपहरण कर जबरन धर्म परिवर्तन करा कर मुस्लिमों से शादी करा दी जाती है.
फिलीस्तीन की गाज़ा पट्टी की छोटी-छोटी झड़पों पर भारत में विरोध मार्च निकालने वाले तथाकथित सेकुलरों ने पाकिस्तान में हिंदुओं के सामूहिक नरसंहार, बलात्कार और सांस्कृतिक विनाश पर आज तक एक शब्द भी नहीं बोला है.
वैसे ही जैसे सीरिया के यजीदी और सीरियन लोगों का इस्लामिक स्टेट द्वारा नरसंहार किए जाने पर भारत में कोई भी मार्च या सामूहिक निंदा नहीं की गयी.
जिस मुग़ल शासक को सन 1947 से अकबर महान कह कर स्वतंत्र भारत के स्कूलों में पढ़ाया जा रहा है, वह कहीं से भी अपने पूर्व के इस्लामिक धर्मान्ध शासकों से कम न था. उसने भी हिंदुओं पर अनेकों अत्याचार किए. जिसे जान बूझ कर छुपा दिया गया.
पानीपत की दूसरी लड़ाई में हेमू को हराने के बाद अकबर ने उसका कटा हुआ सिर काबुल भिजवा दिया और बाकी शरीर को दिल्ली के पुराना किले के बाहर लटकाया गया. इसके उपरांत हेमू के सिपाहियों के कटे हुए सरों से एक ‘विजय स्तंभ’ बनवाया गया.
चित्तौड़गढ़ पर विजय पाने के बाद अकबर ने 30,000 निहत्थे हिंदुओं को मौत के घाट उतरवा दिया.
मुस्लिम इतिहासकार अब्द-अल-कादिर के अनुसार 1 रजब 990 हिजरी (सन 1582) को अकबर की सेनाओं ने कंगड़ा के पास स्थित नगरकोट में 200 गायों की बलि दी, अनेकों हिन्दुओं का कत्लेआम किया व वहाँ के सबसे बड़े मंदिर को तोड़ डाला.
विशेष
चूंकि भारत में कोई केन्द्रीय सत्ता नहीं थी और छोटे राज्यों के पास अनेकों सेनाएँ थी, इस वजह से भारत को ईरान की तरह एक झटके में जीत कर इस्लामिक राष्ट्र बना देना संभव न हो सका.
हिन्दू धर्म भारत के लोगों की जीवनशैली बन चुकी थी, जिसे बदलना आसान न था. तमाम अत्याचारों, जज़िया करों, यातनाओं के बावजूद भारत के हिंदुओं का धर्म-परिवर्तन उस प्रकार नहीं हो रहा था जैसा की अन्य देशों में हुआ.
अतः भारत के तत्कालीन मुस्लिम शासकों ने अल-तकिया रणनीति के तहत सूफियों का सहारा लिया. लगभग सभी प्रमुख हिन्दू तीर्थस्थानों के आस पास इन सूफी फकीरों के मज़ार बनाए गए.
पुष्कर, त्रयंबेश्वर जैसे प्रमुख तीर्थों के साथ साथ स्थानीय महत्व के हिन्दू तीर्थों के आस पास भी सूफियों के मज़ार बनाए गए. लखनऊ के पास महादेवा नामक हिन्दू तीर्थ के पास अब देवा-शरीफ का मज़ार है. और वर्तमान में यह मज़ार पुरातन काल के शिव मंदिर से कहीं अधिक प्रसिद्ध है.
सूफी फकीरों को राजकीय संरक्षण दिया गया ताकि वे अधिक से अधिक हिंदुओं का धर्म परिवर्तन करा सकें.
उल्लेखनीय है कि भारत मुस्लिम शासक सुन्नी थे, और सुन्नी मुस्लिम सूफियों को वास्तविक मुस्लिम नहीं मानते. फिर भी हिंदुओं का धर्म-परिवर्तन कराने हेतु सूफी-फकीरों का प्रयोग किया गया. इनके प्रभाव में आ कर लाखों हिन्दूओं ने इस्लाम धर्म अपना लिया.
हालांकि यह प्रक्रिया अब बहुत धीमी है, लेकिन आज भी जारी है. सूफियों के इस अल-तकिया जिहाद ने लाखों हिंदुओं को मुसलमान बनाया. आज भारत में रह रहे मुस्लिम इन्ही परिवर्तित हिंदुओं की संताने हैं.
दिए गए चित्र का हिंदी अनुवाद
“इस्लाम के सबसे बड़े नाज़िम को पता चला है कि थत्ता, मुल्तान और विशेष रूप से बनारस में ब्राह्मण काफिरों द्वारा झूठी किताबों को उनके द्वारा स्थापित झूठे स्कूलों में पढ़ाया जाता है. शहँशाह औरंगजेब इस्लाम कायम करने को कटिबद्ध हैं और इसी क्रम में सभी रियासतों को यह हुक्म दिया जाता है कि काफिरों के स्कूलों और मंदिरों को गिरा दिया जाये, और काफिरों की तालिम और उनके मजहब को आम-ओ-खास से फौरी तौर पर हटा दिया जाए.”