कमी तो प्रधानमंत्री की है, जो उनकी नज़र ऐसे प्रतिभावान भारतीयों पर नहीं पड़ी

भारत का समाज

सन 2006 में लिवरपूल विश्वविद्यालय की मनोवैज्ञानिक रेबेका लॉसन ने कई लोगो से साइकिल की डिज़ाइन बिना साइकिल देखे बनाने को कहा.

अधिकतर लोग रोज साइकिल चलाने के बाद भी ठीक से डिज़ाइन नहीं बना पाए.

बेसिक गलतियों में लोगो ने आगे और पीछे के पहियों को चैन से जोड़ दिया, या बाइक फ़्रेम गलत बना दिया.

लॉसन ने इस प्रयोग के आधार पर एक एकैडेमिक पेपर “The science of cycology” लिखा.

इसमें उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि यद्यपि ज्यादातर लोगों को पता है कि साइकिल कैसे चलाते है, बहुत से लोगों को वास्तव में कोई जानकारी नहीं है कि साइकिलें कैसे काम करती हैं.

उनके आर्टिकल का लिंक यह है – https://www.liverpool.ac.uk/~rlawson/PDF_Files/L-M&C-2006.pdf

इसे Dunning-Kruger इफ़ेक्ट भी कहा जाता है.

Dunning-Kruger के अनुसार हम में से अधिकांश लोग अपने आप को अन्य लोगों से बुद्धिमान मानते है; 85% लोग सोचते हैं कि वे औसत ड्राइवरों से बेहतर हैं.

येल के मनोवैज्ञानिक फ्रैंक केल ने भी पाया अधिकार लोगो को पैंट या पर्स की चेन और फ्लश शौचालयों जैसे सामान्य वस्तुओं की कार्य पद्धति के बारे में कुछ भी नहीं पता.

लगभग सभी लोगों ने कहा कि वे इन वस्तुओ की कार्यपद्धति को समझा सकते हैं, लेकिन जब उनसे स्पस्ट रूप से पूछा गया तो बगले झांकने लगे.

भारत में “cycology” और Dunning-Kruger इफ़ेक्ट रोज़ दिखाई देता है.

हर व्यक्ति को लगता है कि वह अरुण जेटली से बेहतर GST की डिज़ाइन बना सकता था.

हर व्यक्ति राज्य सरकारों को दो साल की बातचीत और समझौते के बाद GST के रेट के बारे में कन्विंस कर सकता था.

इसके अलावा GST के द्वारा टैक्स की चोरी रोक सकता था, भारत सरकार और राज्य सरकारों की आय में कोई कमी नहीं आने देता.

कमी तो प्रधानमंत्री जी की है कि उनकी नज़र ऐसे प्रतिभावान भारतीयों पर नहीं पड़ी.

उन्हें ऐसे हर व्यक्ति से साइकिल का डिज़ाइन बिना साइकिल देखे बनाने को कहना चाहिए.

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