परसों सुप्रीम कोर्ट में काफी हंगामा रहा.
और उसको लेकर फेसबुक पर एक खास विचारधारा के लोगों ने देश में न्यायव्यवस्था के खत्म हो जाने का विलाप किया.
सदा रुष्ट लोगों का मानना है कि दीपक मिश्रा के सुप्रीम कोर्ट का चीफ जस्टिस बनने से न्याय उसी तरह से संकट में है जैसे मोदी जी के प्रधान मंत्री बन जाने से डेमोक्रेसी संकट में है.
परसों से ही फेसबुक पर तमाम दुष्प्रचार हावी है जिसमे चीफ जस्टिस पर एक मेडिकल कालेज को रिकॉग्निशन देने की पेटिशन पर करप्शन के आरोप हैं.
यहाँ तक कहा जा रहा है कि अपने खिलाफ करप्शन के केस पर चीफ जस्टिस खुद सुनवाई कर रहे हैं.
प्रशांत भूषण जिन्होंने अदालत में पेटिशन डाली उन्होंने खुद जस्टिस मिश्रा पर कन्फ्लिक्ट ऑफ़ इंटरेस्ट का आरोप लगाया है.
इन सबकी बुनियाद सीबीआई द्वारा दर्ज के FIR है जिसमे कथित तौर पर जस्टिस मिश्रा का नाम है.
परसों जब दो जजों की पीठ ने प्रशांत भूषण की पेटिशन पर सुनवाई करने के बाद पांच सदस्यीय संविधान पीठ बनाने का आदेश दिया तो जस्टिस मिश्रा ने एक पीठ खुद बनाई और इस केस की सुनवाई के लिए टेलीफोन द्वारा प्रशांत भूषण को अदालत में अर्जेन्ट बुलवाया.
तीन बजे केस की सुनवाई शुरू हुई.
जस्टिस मिश्रा ने प्रशांत भूषण से पूछा किस FIR में उनका नाम है.
प्रशांत भूषण ने FIR को पढ़कर सुनाया. जिसके बाद जस्टिस मिश्रा ने अपना सर पकड़ लिया और वहां मौजूद तमाम सीनियर वकीलों ने प्रशांत भूषण को जमकर धिक्कारा.
FIR में कहा गया था कि ओडिसा हाई कोर्ट के एक जज ने दो करोड़ की रिश्वत ली ताकि सुप्रीम कोर्ट में एक फैसले को प्रभावित किया जा सके.
इस मेडिकल कालेज के केस की सुनवाई दीपक मिश्रा कर रहे थे.
FIR ओडिसा के जज के खिलाफ दर्ज थी. उसमें सुप्रीम कोर्ट में तत्कालीन जज दीपक मिश्रा का नाम दर्ज था. लेकिन किसी आरोपी के तौर पर नहीं. एक उद्धरण के तौर पर.
जस्टिस मिश्रा ने प्रशांत भूषण से कहा कि मैं आप पर सुप्रीम कोर्ट के कंटेम्प्ट का चार्ज लगा सकता हूँ लेकिन आप इस लायक भी नहीं हैं.
प्रशांत भूषण अपनी बात पर अड़े रहे कि उनके आरोपों को उनका सब्मिशन मानकर एक पेटिशन के तौर पर दर्ज कर लिया जाए.
ऐसा नहीं हुआ तो वो कोर्ट का बहिष्कार कर ये भुनभुनाते हुए चले गए कि मैं जा रहा हूँ अब जो चाहे कर लो.
धन्यवाद ‘द हिन्दू’ अख़बार का जिसने तफ्सील से कोर्ट का ये पूरा ड्रामा फ्रंट पेज पर दिया. अंदर के पन्नो पर दिया.
और आज एक स्पेशल रिपोर्ट छापी कि सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट में किसी जज पर बिना सुप्रीम कोर्ट के परमिशन के FIR नहीं हो सकती.
प्रशांत भूषण के आरोप बोगस हैं कि सुप्रीम कोर्ट के जज का नाम FIR में है.
वामियों के इस शाब्दिक आतंकवाद का जवाब सिर्फ हिन्दू ही दे सकता है.