लक्ष्य केवल यह कि उनके प्रभावी, वर्चस्वी होने तक ग़फ़लत की नींद सोये रहें आप

जावेद अख़्तर साहब का यह वीडियो ज़बरदस्त है. इसमें यह क्लेम कर रहे हैं कि वो एथीस्ट (नास्तिक) हैं.

उन्हें बड़ी चिंता है कि आज हिन्दू असहिष्णु हो रहे हैं.

वो कह रहे हैं कि अब वो शोले फ़िल्म के भगवान शंकर की खिल्ली उड़ाने वाले सीन को वैसा लिखने की हिम्मत नहीं कर पाएंगे.

वह एक पुरानी पिक्चर के बारे में बता रहे हैं जिसमें अभिनेता हैं, दिलीप कुमार जिनका असली नाम यूसुफ़ ख़ान था.

युसूफ खान ने एक फ़िल्म में भगवान की मूर्ति को उठा कर कहा है कि…. मैं इसे नाले में फेंक दूंगा.

उन्हें इस बात का दर्द है कि अब ऐसे डायलॉग नहीं लिखे जा सकते.

उनका सुझाव है कि हमें तालिबान नहीं बनना चाहिए. हमारी संस्कृति महान है, सहिष्णु है आदि आदि…

क्या किया जाए कि उनके इस जूनियर शायर तुफ़ैल चतुर्वेदी को उनकी हर बात झूठ, बेईमानी, फ़रेब, दग़ा, इस्लामी दाँव तक़इया नज़र आ रही है.

वो ख़ुद को एथीस्ट बता रहे हैं और गॉड से इंकार करते हैं मगर उनके फूटे मुँह से उनके पूर्वजों का शब्द अल्लाह कुछ नहीं है, नहीं निकलता.

कहीं से कुछ नहीं आता को स्पष्ट रूप से मुहम्मद पैग़म्बर नहीं है… जब अल्लाह ही नहीं तो पैग़ाम कैसा? नहीं निकलता.

उन्हें अपना लिखी फ़िल्म शोले का भगवान शंकर की बेहूदगी वाला सीन याद आता है.

मगर उसी शोले की कहानी में पैबन्द की तरह ख़ामख़ा जोड़ा गया पात्र अंधा रहीम चाचा और उसकी अज़ान सुन कर बेटे की लाश पड़ी रहने पर भी “मैं चलता हूँ नमाज़ का टाइम हो गया” वाली नमाज़ की पाबंदी याद नहीं आती.

जिसमें वो अल्लाह और उसके दीन की पवित्रता चुपके से बल्कि कुटिल चालाकी के साथ स्थापित कर गए.

वो बला की ऐबदारी बरतते हुए कहते हैं कि भारत के बाद प्रजातंत्र दूर मेडिटरेनियन पर मिलता है.

इस बात को बिल्कुल गोल कर जाते हैं कि भारत के बाद प्रजातंत्र इज़राइल में है और बीच में सब मुसलमान देश हैं.

वो बराबर के देश पाकिस्तान की हालत को संकेत में ख़राब कहते हैं मगर बर्बादी के कगार पर पहुँचे विश्व की स्थिति का कारण इस्लाम है, बताने जगह वो मुँह में दही जमा लेते हैं.

ज़ाहिर है ऐसा कुछ बोलते ही दही बिगड़ जाने का ख़तरा तो होगा ही ना…

साहिबान! जावेद अख़्तर और ऐसा हर मुसलमान आपको बेवक़ूफ़ समझता है, बनाना चाहता.

इस्लाम को प्रजातांत्रिक साबित करने से ले कर स्वयं को सर्वधर्म समभाव मानने वाला, नास्तिक कुछ भी इसी धूर्त चिन्तन के कारण बताता है.

उसका लक्ष्य केवल यह है कि इस्लाम के प्रभावी, वर्चस्वी होने तक आप ग़फ़लत की नींद सोये रहें और भारत के टुकड़े तोड़े जाते रहें.

देश से अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश नोचा जा सके. जगह-जगह कश्मीर बनाये जा सकें. राष्ट्र को समाप्त किया जा सके. आइये इस धूर्त की धूर्तता देखी जाये.

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