प्रिय नरेंद्र मोदी एवं अरुण जेटली,
आगामी शब्दों में एक नई अवधारणा मौजूद है जो शायद gst की 80 प्रतिशत समस्याओं को खत्म कर देगी, आशा है आप ध्यान देंगे.
भारत के व्यापार में, 70% माल अकाउंटेड होता है. आयात या निर्माण के वक्त साबुन, तेल, डिटर्जेंट, पेकबन्द आटा, दाल, चावल, लगभग सारी दवाएं, मिलों से निकला कपड़ा, ज्यादातर ब्रांडेड जूते और कपड़े, स्टेशनरी, किताबें, इलेक्ट्रॉनिक्स, कम्प्यूटर्स, प्रिंटर्स, सीमेंट, बिजली के स्विच, तार, इलेक्ट्रिकल उत्पाद, आदि.
आप सोच कर देखिए, आपके हर महीने खर्च किये गए पैसे का 70-80% हिस्सा उन चीजों का है जो ब्रांडेड या mrp वाली हैं.
ये सभी अपने ओरिजिन से बिल से ही निकलती हैं. डिस्ट्रीब्यूटर लेवल तक बिल से ही जाती हैं.
समस्या है कि रिटेलर लेवल तक पहुंचते-पहुंचते इसका 90% हिस्सा नम्बर 2 या अनबिल्ड हो जाता है…
सरकार का उद्देश्य है कि हर चीज बिल से निकले और उपभोक्ता तक पहुंचने पर उसकी सेल प्राइस पर उसको टेक्स मिले. पर 20 लाख की छूट में 1 करोड़ का व्यापार करने वाले कम नहीं हैं.
घर के हर मेम्बर के नाम से कागजों में एक फर्म दिखा बहुत आसान काम है ये, जिसको करके लोग सेल्स टैक्स के साथ इनकम टैक्स भी चोरी कर लेते हैं…
इसका इलाज ये है कि किसी भी वस्तु के आयात या निर्माण पॉइंट पर mrp डालना अनिवार्य हो, और उस mrp पर gst वन टाइम दे दी जाए.
यानी 100 रुपये की चीज़ पर mrp 300 हो और टैक्स 18%, तो वो सप्लायर उस वस्तु पर 54 रुपये टैक्स जमा कर के ही आगे वस्तु को बेचे.
इसके बाद चाहे जितने लोग उस वस्तु को चाहे जिस कीमत जितनी बार बेचें (एमआरपी के ऊपर नहीं).
अब सवाल उठेगा कि आयातक या निर्माता ये एक्स्ट्रा लागत क्यों लगाए अपनी जेब से?
पहली बात, लगभग हर कम्पनी अपने यहां से डिस्ट्रीब्यूटर तक माल कैश में भेजती है, जो उधार भेजती हैं वो पर्याप्त सिक्योरिटी या बैंक गारंटी ऑलरेडी रखती हैं अपने पास, ब्लैंक चेक जमा रहते हैं.
सरकार को ऐसी कंपनियों को, जो एडवांस gst पे करें, टैक्स में 10% की छूट देनी चाहिए. यानी 5% टैक्स वाली चीज पर 4.50% टैक्स ले, 12% वाली पर 10.8%.
जो कम्पनी ये ऑप्शन ऑप्ट करे उसको हर हाल में यही सिस्टम रखना होगा. उसके हर प्रोडक्ट की एमआरपी पर साफ लिखा हो कि gst पेड इन एडवांस ऑन एमआरपी.
जब आगे माल खरीद कर बेचने वाले डिस्ट्रीब्यूटर, डीलर, रिटेलर को टैक्स के झंझट से छुटकारा मिलेगा तो वो खुद उन्मुख होंगे ऐसी कम्पनियों का माल बेचने के लिए जो एडवांस टैक्स भर कर माल को भेजें.
सरकार का देख भाल का झंझट खत्म. अब कोई एमआरपी पर बेचे या डिस्काउंट पर, सरकार को तो टैक्स मिल चुका. पूरे भारत मे कोई भी, कहीं भी, किसी भी चीज़ को बेच सकेगा.
अवधारणा है ये, पर काम आ सकती है अगर सरकार ध्यान दे तो. जय हिंद