एक मित्र ने ऑफलाइन और ऑनलाइन रिटेलर के बारे में मेरे लेख के जवाब में लिखा कि या तो सरकारों Ecommerce पर लगाम लगानी होगी या फिर बेरोज़गारी पेंशन देनी होगी.
उन्होंने लिखा कि आने वाला समय भीषण आर्थिक अराजकता का है और निश्चित ही ये समय दस सालों के भीतर ही आएगा.
[व्यवसाय के तरीकों में बदलाव लाकर ही ऑनलाइन के सामने टिक सकेंगे ऑफलाइन रिटेलर]
वे कहते हैं कि फिर दुनिया या तो सोमालिया बनेगी और या फिर पूंजीपति बाहर होंगे.
उनका साधुवाद कि उन्होंने इस मुद्दे को एक सार्थक विस्तार दिया.
पहली बात, Ecommerce को अब नहीं रोका जा सकता. उसी प्रकार से जैसे सेल फ़ोन को प्रतिबंधित करके फिक्स्ड लाइन वाले टेलीफोन को वापस नहीं लाया जा सकता.
[डिजिटल युग यानी चौथी औद्योगिक क्रांति : बदले नहीं तो मिट जाएंगे हम]
आज हम रेल, बस और हवाई यात्रा के टिकट, होटल, टैक्सी ऑनलाइन बुक कर सकते हैं.
फोन या इंटरनेट के खर्च को छोड़कर बिना एक पैसा दिए पुस्तकें और अखबार पढ़ सकते है, टीवी, फिल्म देख सकते है, म्यूजिक सुन सकते है.
क्या फिल्म और म्यूजिक इंडस्ट्री दिवालिया हो गयी? क्या पुस्तकें छपना बंद हो गयी? क्या ओला के कारण ऑटो बंद हो गए? या, फिर दिल्ली मेट्रो के कारण रिक्शेवाले?
[मुश्किलों-चुनौतियों से भरा वर्तमान और भविष्य, सौभाग्य कि हमें मिला दूरदर्शी नेतृत्व]
रिटेल दुकानदारों को भी समय के हिसाब से तरीका अपनाना होगा.
अमेरिका में टीवी, कंप्यूटर इत्यादि की रिटेल शॉप बंद हो गए है, सिर्फ बिग बाजार जैसे एक ही कंपनी (Best Buy) के स्टोर खुले हुए है और प्रॉफिट काट रहे है.
डिजिटल कैमरे और फिल्म रोल की दुकाने बंद हो गयी. तो एक आम दूकानदार को यह सोचना होगा कि मार्किट में ऑनलाइन कम्पटीशन के बाद रिटेल में क्या बिकेगा.
आने वाले समय में जब सारी पुस्तकें, म्यूज़िक, विश्व में उपलब्ध सारी सूचनाओं का डिजिटाइज़ेशन हो जाएगा तो उसके परिणाम क्या होंगे?
सिर्फ एक कंप्यूटर ही उन सारी सूचनाओं को अपनी मेमोरी में भर लेगा. वह चिकित्सा क्षेत्र के लाखों अनुसंधान लेख को “पढ़” चुका होगा और किसी भी डॉक्टर, वैज्ञानिक या टीचर से अधिक बुद्धिमान हो जाएगा.
वह दिन दूर नहीं जब किसी कैंसर के मरीज के इलाज के लिए एक कंप्यूटर तुरंत बता देगा कि कौन सा कैंसर है और कौन सा इलाज उपयुक्त है, जो एक मानवीय डॉक्टर की क्षमता में नहीं है.
यही हालत अकाउंटेंट, वकील, शिक्षक, वास्तुकार, इंजीनियर, ड्राइवर, सेल्स क्लर्क की भी होने वाली है. सिर्फ अगले दस वर्षो में.
तो इन मित्र की बात सही है कि आने वाला समय भीषण आर्थिक अराजकता का हो सकता है. लेकिन क्या उसके लिए पूंजीवाद ही जिम्मेदार है?
क्या उसमे वैज्ञानिक, कंप्यूटर साइंटिस्ट, डॉक्टर्स, इत्यादि का कोई रोल नहीं कि उन्होंने नई तकनीकी खोज निकाली और उस तरफ लगातार काम कर रहे है?
क्या कार या प्लेन की खोज के लिए पूंजीवाद जिम्मेदार है? क्या नयी दवाइयों और उपचार को रोका जा सकता है?
मेरा कहने का तात्पर्य यह है कि कोई भी व्यक्ति तकनीकी के कदमों को नहीं रोक सकता. लेकिन उससे उत्पन्न होने वाली बेरोज़गारी से भारत जैसे देश में कैसे निपटेंगे?
मित्रवर लिखते है कि फिर बेरोज़गारी पेंशन देनी होगी.
बिलकुल ठीक लिखा है आपने. उस पेंशन का नाम होगा यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) या सार्वभौमिक बेसिक आय जो सभी नागरिको को मिलेगी.
इस वर्ष फ़िनलैंड के एक कस्बे में प्रयोग के तौर पर सभी नागरिको को UBI दी गयी. UBI के स्वरुप को सुधारने के लिए अर्थशास्त्री और समाजशास्त्री जुटे हुए है.
अंत में, मेरे कुछ प्रश्न.
क्या आज का भारत आरक्षण के बेसिस पर आने वाले समय का मुकाबला कर सकता है?
क्या आज का भारत भ्रष्ट अर्थव्यवस्था और घूसखोरी के बूते पर डिजिटल युग की चुनौतियों का सामना कर सकता है?
क्या 20वीं सदी की कर प्रणाली डिजिटल युग की अर्थव्यवस्था को सपोर्ट कर पाएगी?
क्या बिना मेक इन इंडिया के हम नए युग के जॉब क्रिएट कर पाएंगे?
क्या गन्दा, भिनभिनाता, खुले में शौच जाने वाला भारत नए युग की संरचना के अनुरूप होगा? क्या उसे स्वच्छ नहीं करना होगा?
क्या है हमारे तथाकथित युवा नेताओं का विज़न नए युग के लिए? सिर्फ ज़ात-पात के गठजोड़ या खानदानी विरासत के बल पर चुनाव जीतना?
क्या प्रधानमंत्री मोदी के अलावा कोई अन्य राजनीतिज्ञ आने वाले युग के लिए भारत और इस भूमि के युवाओं को तैयार कर रहा है?