एक्शन फिल्मों में से एक बुक ऑफ़ एली (The Book of Eli) जनवरी 2010 में आई थी.
करीब करीब इसी दौर में अवतार और लीजन जैसी फ़िल्में भी आई थी इसलिए ये कमाई के लिहाज से थोड़ी पिछड़ी रही, फिर भी जानी मानी या प्रचलित कही जा सकती है.
इसकी कहानी महाविनाश या क़यामत जैसी किसी घटना के बाद की दुनिया पर आधारित है.
शुरू में ही पैदल चलकर कहीं जा रहे एक व्यक्ति को दिखाते हैं जो शिकार वगैरह करने में कुशल है. वो कहानी का नायक है, अच्छा योद्धा भी होता है.
रास्ते भर लूटने वाले डाकुओं के गिरोह होते हैं, जिनसे निपटता, टूटी सड़कें पार करता, वो एक आबादी वाले शहर के पास पहुँचता है.
ज्यादातर लोग मर चुके हैं, जो विनाश के बाद पैदा हुए थे उनमें से ज्यादातर अनपढ़ हैं, उन्हें पता भी नहीं कि दुनिया कभी किसी और तरह की थी.
जिस शहर में वो पहुँचता है, वो एक ख़ास किताब ढूंढ रहे आततायी किस्म के व्यक्ति, कार्नेगी के नियंत्रण में थी.
उसके पालतू मोटरसाइकिलों पर सवार आस पास के इलाकों में राहगीरों को लूट-मार कर उसके लिए वो एक किताब ढूंढते रहते हैं.
जिसे भी ये कार्नेगी उस किताब के बारे में बताता है वो आश्चर्य के साथ उसके बारे में सुनता है. ऐसी कोई किताब सचमुच होगी इस पर ज्यादातर का विश्वास ही नहीं होता.
कार्नेगी को पक्का यकीन था कि उस किताब के शब्दों से वो लोगों को अपनी बात मानने पर मजबूर कर सकता है.
किताब में लिखा क्या है ये उसे पता था, उसे फिर भी किताब के लिखे हुए शब्द ही पक्का-पक्का चाहिए थे.
शहर पहुंचे नायक की कार्नेगी के गुंडों से भिड़ंत हो जाती है और कार्नेगी को दिख जाता है कि वो किस स्तर का योद्धा है.
अब वो नायक को अपने पास ही, काम पर रख लेना चाहता है. जबरन उसे रोककर कार्नेगी, अपनी ही अंधी रखैल की बेटी, सोलारा को उसे फांसने के लिए भेजता है.
नायक को इन सब से कोई लेना देना नहीं था. वो ना अच्छे खाने-पानी के लालच में, ना सोलारा के चक्कर में रुकता है और रात में ही भाग निकलता है.
रात की बात-चीत में ही कार्नेगी समझ चुका था कि नायक पढ़ सकता है, सुबह सोलारा से पता चलता है कि वो खाना बाँट कर खा रहा था और खाने से पहले उसने “ग्रेस” पढ़ा था.
जैसे ही “ग्रेस” कान में पड़ा और “एमन” शब्द इस्तेमाल करना पड़ा, वो समझ गया कि जो बाइबिल वो ढूंढ रहा है वो ही किताब नायक के पास है. वो अपनी गुंडों की फ़ौज लेकर फौरन उसका पीछा करने निकलता है.
जिस सोलारा को रात नायक के पास भेजा गया था वो भी नायक के चरित्र से प्रभावित उसे ढूँढने निकलती है.
सोलारा को किताब से नायक का प्रेम दिख गया था तो वो भी ऐसी ख़ास किताब देखना चाहती थी.
वो भी पढ़ नहीं सकती थी तो जब नायक-एली उस किताब की बातें उसे बताता है तो वो भी आश्चर्यचकित होकर अविश्वास के साथ सुनती है.
एली को कुछ आकाशवाणी सी सुनाई दी थी कि उसे पश्चिम में जाना है. उस एक आवाज के भरोसे वो करीब तीस साल से सफ़र कर रहा था.
सोलारा इस पर और अचंभित होती है कि किसी किताब के असर से भला ऐसा कैसे हो सकता है?
पीछा करते कार्नेगी का गिरोह जब तक एली-सोलारा को पकड़ता वो लोग एक आदमखोर दम्पति के चंगुल में फंस जाते हैं. यहीं कार्नेगी की टोली भी उन्हें घेर लेती है.
गोलीबारी में एली-सोलारा हार जाते हैं. एली को गोली मारकर, उसे मरने छोड़, सोलारा और किताब को लेकर कार्नेगी वापस लौटने लगता है. मगर रास्ते में ही जान बचा कर सोलारा वापस भाग आती है.
इस क्रम में कार्नेगी के और गुंडे मारे जाते हैं, ऊपर से पेट्रोल की कमी की वजह से सोलारा का पीछा नहीं किया जा सकता था. घायल एली को ढूंढ़कर, उसे लिए सोलारा उसी दिशा में चल पड़ती है जिधर वो पहले जा रहा था.
वो लोग जिस मंजिल पर पहुँचते हैं वहां लोग दुनिया में बचे हुए संगीत, कला, साहित्य को इकठ्ठा करने की कोशिश कर रहे होते हैं, वो एली की मदद करते हैं.
यहाँ पता चलता है कि उससे बाइबिल छीनने का कोई नुकसान नहीं हुआ, किताब उसने तीस साल पढ़-पढ़ कर जबानी याद कर ली है. उसके कहे को रिकॉर्ड कर के किंग जेम्स बाइबिल दुबारा छापी जाती है.
उधर दूसरी तरफ जब किताब लेकर कार्नेगी लौटता है तो पता चलता है एली की किताब तो ब्रेल लिपि में थी क्योंकि एली अँधा था. अब वो किताब उसके किसी काम की ही नहीं होती.
उसके शहर के लोगों ने उसके आदमियों को मारा और उसे कमजोर पाकर लूट-पाट भी शुरू कर दी थी.
अंतिम दृश्य में एली बचता नहीं, उसकी मृत्यु के बाद सोलारा भी वहां नहीं रूकती. वो एली का सामान और तलवार लेकर वापस अपने शहर की ओर पैदल रवाना होती है. एली के बोलने से छापी गई बाइबिल को तोराह और कुरआन के बीच में रख देते हैं.
इस फिल्म को देखते हुए बार बार जब किताब का जिक्र होगा तो भगवद्गीता के दूसरे अध्याय का उन्तीसवां श्लोक याद आता है :
आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेनमाश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः।
आश्चर्यवच्चैनमन्यः श्रृणोति श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित्।।2.29।।
इसका मतलब है कि कोई इसे आश्चर्य के समान देखता है, कोई इसके विषय में आश्चर्य के समान कहता है, और कोई अन्य इसे आश्चर्य के समान सुनता है, और फिर कोई सुनकर भी नहीं जानता.
कोई एक किताब इतने हजारों साल जीवित रह जायेगी ये भी भगवद्गीता को आश्चर्यजनक बनाता है. इस्लामिक आक्रमणों के अलावा तो पंद्रहवीं शताब्दी के सेंट फ्रांसिस ज़ेवियर के ज़माने से ब्राह्मणों और संस्कृत की जघन्य हत्या के लिखित प्रमाण है, फिर भी भगवद्गीता का बचा होना भी एक आश्चर्य है.
इसमें जो लिखा है उसे भी बार-बार पढ़कर तीस साल तक समझने की कोशिश करते गाँधी, विनोबा, तिलक और अरबिंदो जैसे लोगों को देखकर और भी आश्चर्य होता है.
खाने-पीने की कमी और रास्ते की मुश्किलों में एली दुखी होता नहीं दिखता, उस पर आरामदेह बिस्तर, नौकरी, भोजन, लड़की आदि का भी कोई प्रभाव नहीं दिखता.
कहानी के अंत में उसकी मौत के बाद सोलारा भी आरामदायक शहर और रास्ते की मुश्किलों में अंतर करती नहीं दिखती. ये छठे अध्याय का सातवां श्लोक है :
जितात्मनः प्रशान्तस्य परमात्मा समाहितः।
शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः।।6.7।।
सर्दी-गर्मी, सुख-दुःख सभी को एक सी नज़र से देखता, कोई भेदभाव ना करता हुआ इंसान. पीछा करते दुश्मन से बचने में या सफ़र के दौरान, एली कुछ भी ना खाए ऐसा भी नहीं होता, और अकेले ही ढेर सारा, जरुरत से ज्यादा, खा रहा हो ऐसा भी नहीं होता.
वो डर के मारे लगातार जागता भी नहीं रहता, हमेशा सोते रहने का तो विकल्प ही नहीं था. भगवद्गीता के छठे अध्याय के सोलहवें श्लोक में भी ये मिल जाएगा :
नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः।
न चातिस्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन।।6.16।।
न ज्यादा खाने वाले का, न बिलकुल न खाने वाले का, न बहुत सोने वाले का, न लगातार सोने वाले का योग फलित होता है. बिलकुल मना या कहिये कि बैन्ड (banned) और हराम जैसी अवधारणाओं के लिए सनातन सिद्धांतों में कोई जगह नहीं होती.
हाँ, कर्म को सात्विक, राजसी और तामसिक में जरूर बांटा गया है, लेकिन कुछ करने या ना करने पर छाती कूटना शुरू किया जा सके, ऐसी पाबन्दी किसी चीज़ पर नहीं होती.
बाकी को खुद पढ़िए और ढूंढ के देखिये, योग और प्राणायाम शब्द पूरी भगवद्गीता में कई बार आते हैं. हर अध्याय के अंत में लिखा होता है कि ये योगशास्त्र का कौन सा अध्याय समाप्त हुआ है.
आपका अभ्यास आपको किस तरफ ले जा रहा है, या ले जाएगा ये खुद सीखिए क्योंकि ये जो हमने धोखे से पढ़ा डाला वो नर्सरी लेवल का है. पीएचडी के लिए आपको खुद पढ़ना पड़ेगा, ये तो याद ही होगा?