बहुत भटकने लगी है तुम्हारी आँखें
आओ इन्हें काजल की लकीरों में बाँध दूं
लेकिन सुना है घनघोर बारिश में
नदियों पर बंधे बाँध भी टूट जाते हैं
और बह जाते हैं कच्ची खपरेलों के साथ
पक्के मकान भी…
फिर भी सोचती हूँ
तुम्हारी कच्ची हसरतों
और पक्के इरादों
के बाहर लगा दूं
अपनी नेमप्लेट
कि कभी तुम्हारे किसी घनघोर प्रेम में
जब बह जाएगा वो सबकुछ
जो मेरे नाम था
तब भी बची रहेगी
मेरे नाम की महक
जिसे खोजते हुए
जब तुम आओगे
तुम्हें ले जाऊंगी
उस टीले पर
जहाँ बचा कर रखा होगा मैंने
वो आख़िरी तिनका
अपने आशियाने का…
तुम्हारे हाथों से लगते ही
बंद हो जाएगा बारिश का कहर
और लौट आएँगे
डर कर उड़ चुके
प्रेम के सफ़ेद परिंदे
काली रात का ज़िक्र करते हुए
और मैं उस काली रात का टीका
तुम्हारे माथे पर लगाते हुए कहूंगी
ख़ुदा अबके बुरी नज़र से बचाए…