प्रेम आख्यानों में जायसी की पद्मावत सबसे अनूठी है.
सूफी काव्यों में प्रियतम पर ईश्वर का आरोप प्रत्यारोप प्रेम को ईश्वर भक्ति का ही एक अंग मान लेता है. वही ईश्वर है वही मुक्ति का मार्ग भी!! प्रेम की ऐसी भावना सब भावनाओं से पवित्र है!!
2013 के एम. ए. के पाठ्यक्रम में पद्मावत के दो खंडो को ही सम्मिलित किया गया था जिनमें पहला था पद्मावती का नख शिख वर्णन तथा दूसरा था नागमती वियोग खंड.
पद्मावत में पद्मिनी के नख शिख वर्णन की अपेक्षा नागमति का विरह खंड मुझे अधिक प्रिय है.
पद्मावत में सबसे अधिक दीन पात्र नागमति ही रही.
सुंदर पत्नी के होते हुए भी जब प्रियतम किसी अन्य सुंदरी के प्रेम में विकल रहता है तो उस पत्नी की दशा अधमरे मनुष्य सी हो जाती है. उसके जीवन में कोई उद्देश्य शेष नहीं रह जाता. उसका प्रत्येक समय कष्टप्रद हो जाता है.
इस वियोग खंड में बारह मासों में किस तरह नारी अपने पति का वियोग सहती है उसकी सुंदर रचना हुई है. प्रत्येक मास पर विरहिणी की अवस्था का करूण चित्र उकेरा गया है.
रोइ गँवाए बारह मासा ।
सहस सहस दुख एक एक साँसा ॥
सावन बरस मेह अति पानी ।
भरनि परी, हौं बिरह झुरानी.|
पति को किसी दूसरी स्त्री की तरफ आकर्षित होते देख एक पत्नी के हृदय पर क्या आघात होते हैं उसे समझना वास्तव में कठिन है वो भी ऐसी स्त्री जो अनिंद्य सुंदरी हो!!
नागमति पति के विरह में कहती है.
पिउ सौ कहेहु सँदेसडा, हे भौंरा ! हे काग !
सो धनि बिरहै जरि मुई, तेहि क धुवाँ हम्ह लाग ॥
जायसी ने किसी पात्र के साथ कही कोई अन्याय नहीं किया है. उनकी यही बात नागमति को पद्ममिनी के आगे नतमस्तक नहीं करती. हर सुंदरी की एक अलग आभा होती है. उनमें कोई श्रेष्ठ या कनिष्ठ नहीं होता!! जायसी के पद्मावत की शैली गेय है यह अवधी का पहला साहित्य भी है. तुलसीदास की रामचरित मानस इसके बाद लिखी गई.
माना जाता है कि जायसी पर शीतला देवी का प्रकोप था जिससे उनकी दृष्टि दोषपूर्ण थी और चेहरा कुरूप. किंतु एक महाकाव्य उन्हें हिंदी साहित्य में सदा के लिए अजर अमर कर गया. एक कुरूप कवि किस हद तक सौंदर्य का बखान कर सकता है इसका अंदाजा पद्मावत पढ़ने पर ही हो सकता है!!
पद्मावती नख-शिख वर्णन –
सो तिल देखि कपोल पर गगन रहा धुव गाडि ।
खिनहिं उठै खिन बूडै, डोलै नहिं तिल छाँडि ॥11॥
– साधना पाण्डेय
महारानी पद्मिनी की जगह ‘पद्मावती’ को स्थापित करना, भविष्य की साज़िश!