आज फेसबुक पर कहीं पढ़ा कि कांग्रेस और राहुल गांधी के डर से गुजरात भाजपा डरी सहमी हुई है.
पूरी भाजपा सड़कों पर है.
लोकसभा चुनाव 2004 में भाजपा क्यों हारी, जानते हैं?
अटल जी के शासन काल में पूरी भाजपा Comfort Zone में चली गयी थी.
भाजपा इंडिया शाइनिंग के नशे में थी. कार्यकर्ता जीत को ले के आश्वस्त थे.
कॉन्फिडेंस लेवल का तो ये आलम था कि चुनाव समय से 6 महीना पहले ही करा लिए गए.
रिजल्ट आया तो चारों खाने चित्त…
Marketing की भाषा में एक term होती है… Feet on Street अर्थात आपकी टीम के कितने लोग सड़कों पर हैं… मने कितने लोग एड़ियाँ घिस रहे हैं?
बड़े-बड़े malls और showrooms अपनी footfall गिनते हैं. घंटे दर घंटे आंकड़े जुटाते हैं. कितने लोग Store में आये? जितनी ज्यादा footfall होगी उतना ज्यादा बिज़नेस.
यदि footfall ही नहीं तो बिक्री क्या ख़ाक होगी?
मोदी और अमित शाह की एक खासियत देखी है मैंने. हर चुनाव से पहले एक बार ऐसा माहौल बनाते हैं कि हार गए… हार गए… इस बार तो हार गए…
इस बार मामला भोत टफ है… इस बार भोत तगड़ा मुकाबला है.
इस से दो काम होते हैं…
पहला ये कि संगठन सक्रिय होता है. कार्यकर्ता / समर्थक अपने Comfort Zone से बाहर निकल के सड़क पर आता है. बाज़ार में खूब चर्चा होती है. माहौल charged हो जाता है.
ऐसा माहौल बनाया जाता है कि विरोधी सब मोदी जी के खिलाफ एकजुट हो गए हैं. मुस्लिम वोट का ध्रुवीकरण (polarization) हो रहा है…
इसकी प्रतिक्रिया में मोदी समर्थक और कार्यकर्ता सक्रिय होते हैं, counter polarization होता है.
हिन्दू वोट एकजुट होता है… वोट प्रतिशत बढ़ जाता है. हार गए… हार गए के शोर की वजह से कार्यकर्ता एक-एक वोटर को निकाल के मतदान केंद्र तक ले जाता है.
ऐसा खेल हम उत्तरप्रदेश में पिछले चुनाव में देख चुके हैं. वाराणसी में ऐसा ही माहौल बनाया गया था.
हार गए… हार गए… बनारस की तो आठों सीट हार रहे हैं. मोदी जी पूरे 3 दिन बनारस में ही डटे रहे.
नतीजा ये हुआ कि भाजपा ने पूरा पूर्वांचल ही साफ़ कर दिया… रिकॉर्ड सीटें जीती.
पर इस बार गुजरात मे भाजप्पा के हालात वाकई भोत खराब हैं. कांग्रेस उफान पर है. हार गए… हार गए… इस बार तो गुजरात हार गए.