Schindler’s List बारह ऑस्कर पुरस्कारों के लिए नामांकित हुई थी, उसमें से सात मिले भी. फिल्म के प्रसिद्ध होने का कारण इसके साथ स्टीवन स्पिल्सबर्ग का नाम जुड़ा होना भी था.
उन्होंने 1993 में इस फिल्म को ब्लैक एंड व्हाइट इसलिए बनाया ताकि कहानी समय के प्रभाव से मुक्त रहे. एक ऑस्ट्रेलियाई लेखक थॉमस केनेल्ली(Thomas Keneally) की किताब पर आधारित ये फिल्म काफी बाद में आई थी, यहूदियों के क़त्ल पर फिल्म बनाने की बात साठ के दशक से ही चल रही थी.
फिल्म की कहानी जानी पहचानी है जो ऑस्कर शिंडलर नाम के एक व्यापारी के आस पास घूमती रहती है. शिंडलर एक क्राकोव नाम के शहर में व्यापार में किस्मत चमकाने की कोशिश कर रहा होता है.
वो विश्व युद्ध का समय था और वो नाजी फ़ौज के अफसरों को रिश्वत देकर ठेके हथियाता रहता है. स्टालिन की कम्युनिस्ट सेना के साथ मिलकर नाजियों ने उसी दौर में पोलैंड पर कब्ज़ा कर लिया था. इस वजह से शहर में कई पोलैंड के यहूदी भी आते और झोपड़पट्टियों में रहते हैं.
झुग्गियों से सस्ते मजदूर और घूस देकर ठेके मिलने के कारण शिंडलर का धंधा भी अच्छा चल निकलता है. थोड़े दिन बाद जब झुग्गियों को ख़त्म करने की बारी आती है तो कई लोगों को नाज़ी गोली मार देते हैं.
यहाँ मरते लोगों की भीड़ में शिंडलर को एक लाल कोट वाली बच्ची जान बचाने की कोशिश करती दिखती है, जो शायद फिल्म का इकलौता कलर दृश्य होगा. शिंडलर के पहचान के नाज़ी अफसर यहूदियों से जैसा बर्ताव करते हैं, उसे देखकर शिंडलर धीरे धीरे चिढ़ने लगता है.
थोड़े ही समय में उसका ध्यान पैसे कमाने से ज्यादा इस बात पर होता है कि कैसे ज्यादा से ज्यादा यहूदियों को अपनी फैक्ट्री में काम देकर बचा लिया जाए.
जब नाज़ी युद्ध हारने लगते हैं और उतने यातनागृहों की जरूरत भी नहीं रह जाती तो एक कंसंट्रेशन कैंप बंद होने लगता है. वहां से शिंडलर, यहूदियों को, अपने मजदूरों के नाम पर बचा लेने की फिर से कोशिश करता है.
एक गोला-बारूद और गोलियों की फैक्ट्री के नाम पर वो उन्हें अपने पास भर्ती कर के रखने की कोशिश करता है. काफी बड़ी रिश्वत देकर वो कामयाब भी हो जाता है.
वो 850 लोगों की लिस्ट बनाते हैं, उन्हें ट्रेन में एक दूसरे शहर ले ही जाया रहा होता है मगर गलती से वो ट्रेन कहीं और पहुँच जाती है. शिंडलर को फिर हीरों की एक पोटली देकर उन लोगों को बचाना पड़ता है.
करीब 1945 में जबतक नाज़ी हारते, शिंडलर के पैसे भी ख़त्म हो चुके थे. अपने पोलैंड हमले के साथियों पर हमला करती रूस की लाल सेना नाज़ियों को चुन चुन कर मार रही होती है.
शिंडलर इतने दिनों से नाज़ी पार्टी में था इसलिए उसे भी भागकर अमेरिकी सेना के पास आत्मसमर्पण करना था. उसकी कुछ मदद हो सके इसलिए उसके यहूदी मजदूर लिखकर देते हैं कि इसने हमारी मदद की थी.
फिल्म का आखरी दृश्य फिर से रंगीन है, और शिंडलर की कब्र पर लोग फूल चढ़ा रहे होते हैं. आखरी बार जब शिंडलर को दिखाते हैं, तो वो इस बात का अफ़सोस कर रहा होता है कि कहीं जो उसके पास और पैसे होते तो वो और लोगों को बचा पाता.
इस फिल्म को देखने के साथ ही मोस्लोव हेरारकी ऑफ़ नीड्स (Maslow’s hierarchy of needs) याद कर लेनी चाहिए. ये मनोविज्ञान और कई बार मैनेजमेंट में भी पढ़ाते हैं. इसके मुताबिक सबसे निचले स्तर पर व्यक्ति की जरूरतें (needs) सुरक्षा-जीवन से जुड़ी हुई होती हैं.
रोटी, कपड़ा और मकान, फिर थोड़ा सा आराम और सुरक्षा के लिए व्यक्ति सोचेगा. फिर परिवार, उससे ऊपर सामाजिक, मित्र और मान-सम्मान की जरूरतें आती हैं.
तीसरे स्तर पर (निचले स्तर की जरूरतें पूरी होने पर) इन चीज़ों से इंसान को ज्यादा मतलब नहीं रह जाता. अब इंसान सिर्फ आत्मसंतुष्टि के लिए काम करता रहता है. इस स्तर पर व्यक्ति को कलात्मक अभिव्यक्ति, अपनी अभिरुचियों, आध्यात्मिक उन्नति जैसी चीज़ों से मतलब होगा. वो समाज में रहता तो है मगर उस से भी ऊपर उठ चुका होता है.
भगवद्गीता में जब भगवान अर्जुन को अपने भक्तों के बारे में बताते हैं तो वो भी ऐसे ही स्तरों के बारे में बता रहे होते हैं. ज्ञानविज्ञान योग नाम के सातवें अध्याय में श्री कृष्ण बताते हैं कि भक्त चार कारणों से उनके पास आते हैं :
चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन.
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ..7.16..
अर्थार्थी वो लोग हैं जो पैसे जैसी चीज़ों की जरूरत के लिए भगवान की पूजा उपासना में लगे होते हैं. टीवी पर जो श्रीयंत्र जैसी चीज़ों का प्रचार देखा होगा, वो ऐसे ही लोगों की वजह से बिकता है.
आर्त वैसे लोग हैं जो किसी गंभीर बीमारी, मृत्यु जैसे कष्ट में भगवान की शरण में पहुँचते हैं. फेथ हीलिंग जैसे मामले सुने होंगे, कभी कभी किसी को कैंसर जैसी बीमारियों में भी किसी मन्त्र का जाप करते देखा होगा.
तीसरे किस्म के लोग जिज्ञासु भक्त हैं जिनमें उद्धव का नाम आसानी से सुनाई दे देगा. उद्धव के लिए श्रीकृष्ण ने गीता दोबारा भी सुनाई थी.
चौथी श्रेणी के लोग ज्ञानी हैं, उन्हें इन सभी पिछली श्रेणियों से कोई मतलब ही नहीं होता. ग्यारहवें अध्याय का विश्वरूप याद करेंगे तो ये भी याद आ जाएगा कि भगवान का विश्वरूप एक बार हस्तिनापुर के कौरवों के दरबार में भी दिखा था.
बाकी सब जहाँ अंधे हो गए थे, वहां ज्ञानियों की श्रेणी में गिने जाने वाले दो लोग, देवव्रत भीष्म और विदुर उन्हें देखते रहे. यहाँ फिल्म के कर्ता शिंडलर का किया धरा भी इसी तरह बांटा जा सकता है.
शुरू में रोटी कपड़ा मकान, फिर सुरक्षा, फिर एक समाज, फिर मौत के मुंह से निकाल के ले आना, कोई फायदा देखकर नहीं बचा क्यों ना लें सोचकर किये जाना, फिर अंत में और पैसे होते तो और करता सोचना एक एक करके चारों स्तर पर ले जाएगा.
अक्सर भगवद्गीता का अध्ययन करने वाले लोग भक्ति से जुड़े श्लोकों के साथ तुरंत अट्ठारहवें अध्याय का संतावनवां श्लोक भी सुनाते है :
चेतसा सर्वकर्माणि मयि संन्यस्य मत्परः.
बुद्धियोगमुपाश्रित्य मच्चित्तः सततं भव..18.57..
मोटे तौर पर इस श्लोक में कहा गया है कि मन से सभी कर्म भगवान अर्पण करके, अच्छे-बुरे में समता का आश्रय लेकर निरन्तर मुझमें चित्तवाला हो जा. अट्ठारहवां अध्याय सिर्फ भक्ति योग नहीं होता उसके शुरूआती श्लोक देखें तो दसवां श्लोक भी देखने लायक है :
न द्वेष्ट्यकुशलं कर्म कुशले नानुषज्जते.
त्यागी सत्त्वसमाविष्टो मेधावी छिन्नसंशयः..18.10..
इसके लिए कह सकते हैं कि कर्म कैसा भी हो अच्छा या बुरा दोनों को ही अनासक्त भाव से करना है. अच्छा बड़े मन से और कम कुशल अनमने ढंग से करने की भी मनाही है. यानि नहाने के बाद आधे घंटे बड़े मन से बैठ कर घंटी बजा बजा कर पूजा में तो जुटे हों, मगर जिस बाथरूम से नहा कर निकले उसे गन्दा, किसी और के धोने के लिए छोड़ दिया, क्योंकि वो पूजा की तुलना में अकुशल कार्य था, ये भी नहीं चलेगा.
यहीं कहीं ये भी कहा गया है कि जैसे आग होगी तो धुआं भी होगा ही बिलकुल वैसे ही हर कर्म में दोष भी होंगे. शिंडलर लोगों को बचा रहा था अच्छा काम था, लेकिन उसके लिए वो घूस देने का गलत काम भी कर रहा था. झूठ बोलने, बेइमानी करने, खराब माल देने, उत्कोच (रिश्वत) देने जैसे धुंए से उसके भी अच्छे कर्म ढंके थे.
बाकी को खुद ही ढून्ढ के देखिये, क्योंकि ये जो हमने धोखे से पढ़ा डाला वो नर्सरी लेवल का है. पीएचडी के लिए आपको खुद पढ़ना पड़ेगा ये तो याद ही होगा?
जिस लड़की ने सिल्क स्मिता का रोल किया, उसे तो सरेआम छेड़ा जा सकता है! है न?