शादी को खुशगवार, तरीके से और अच्छे माहौल में सम्पन्न करवाने के लिये लड़की वाले जमकर मेहनत करते है.
पूरा ध्यान रखते है कि किसी भी बाराती को या लड़के के माँ-बाप या खास रिश्तेदारों को कोई शिकायत का मौका ना मिले.
सबकुछ ठीक ही चल रहा होता है लेकिन कुछ स्वार्थी, बेईमान और जलनखोर रिश्तेदार सबकी मेहनत पर पानी फेरते हुए सब्जी में चुपचाप ज्यादा नमक डाल दें तो उसकी भरपाई नहीं हो पाती.
भ्रष्टाचार अब सिर्फ अपराध नही है… ये हमारे समाज का नैसर्गिक आचरण बन चुका है.
70 सालों में हमने इसे ऐसे आत्मसात कर लिया है जैसे रेत में पानी मिल जाता है.
अब हमारे किसी रिश्तेदार या पड़ौसी का भ्रष्टाचार में लिप्त होकर पैसे कमाना हमें विस्मित नहीं करता.
हमें उस पर गुस्सा नहीं आता… हाँ जलन ज़रूर होती है कि हमें मौका क्योँ नहीं मिल रहा है.
बड़े और मोटे असामियों को, कस्टमर्स को मैनेजर द्वारा अपने कैबिन में बैठाकर, उन्हें चाय पिलाकर, हाथोंहाथ उनके काम कर देना बरसों से बैंकिग सँस्कृति का अभिन्न अंग है.
ये अपनापन दिवाली पर अपने चरम पर होता है… ये भी जगज़ाहिर है.
नोटबंदी में बैंक कर्मचारियों ने दो महीने जमकर मेहनत की. हर तरह से लोगों को को-ऑपरेट किया. अपने तय समय से कहीं ज्यादा देर तक ड्यूटी की.
लेकिन… लेकिन इनकी मेहनत पर पानी फेरने का काम इनके ही आकाओं ने किया. सब्जी में नमक डालने का काम तमाम शाखा प्रबंधकों ने किया.
हाँ, बैंकों से ही जमकर बेईमानी हुई नहीं तो आज नोटबंदी की तस्वीर और भी बहुत ज़्यादा साफ और शानदार होती.
कैबिन कल्चर और हमारी रगों में दौड़ रहे भ्रष्टाचार ने, कुछ बैंकर्स और बेईमान ग्राहकों ने मिलकर एक ईमानदार पहल को धता बताने और फेल करने की पूरी कोशिश की और दुख की बात ये है कि वो इसमें काफी हदतक कामयाब भी रहे.
तमाम अनुभव सुने हैं लोगों से कि कैसे उन्होंने ‘सेटिंग’ कर ली. वो तमाम बैंकर्स जिन्होंने बेईमानी की खिड़की खुली रखकर मोदीजी के प्रयासों पर पानी फेरा…
उनकी आने वाली पीढ़ियाँ भी इन्हीं मोदी की ऋणी रहेंगी कि… क्या स्वर्णिम मौका दिया था मोदीजी ने कमाई का.
अलगाववादी अभी भी करोड़ो रुपये इस उम्मीद में लेकर घूम रहे है कि RBI या किसी बैंक अधिकारी के मार्फत वो अभी भी उसे बदलवा सकते है, तो सोचिए उस समय इन्होंने कितने करोड़ रुपये बदलवाये होँगे?
आज ये दिल्ली तक आ पहुँचे है तो जम्मू-कश्मीर, बंगाल, केरल, यूपी के बैंक्स में तब क्या हुआ होगा… अंदाज़ा लगाइये और ये सब बिना बैंकर्स की मर्ज़ी से तो हुआ नहीं होगा!
‘नोटबंदी फेल हुई’ ये मत बोलिये साहब… ‘भ्रष्टाचार ने जीतने की कोशिश की’… ये बोलिये.