दलबदलुओं की तुलना विभीषण से करने से पहले कुछ सीख-समझ तो लीजिए

अभी मैं सुंदर कांड का पाठ कर रहा था तब मैंने विभीषण जी से संबन्धित प्रसंगों पर विशेष ध्यान दिया तो मन मुग्ध हो गया. अंततः विभीषण जी की कैरेक्टर में कितनी पॉज़िटिव गहराई है.

जबकि यहाँ कभी भी विरोधी दल का कोई बुरे से बुरा गलत तत्व भाजपा में प्रवेश करता है तो विद्व श्रद्धालुगण विभीषण का उदाहरण लेकर कीर्तन करने लगते हैं, मानो विभीषण रावण खेमे के गलत तत्व थे.

सर्व प्रथम देखिये विशाल लंका नगरी में विभीषण जी के घर की पहचान हनुमान जी ने किस आधार पर की,

‘रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ।
नव तुलसिका बृंद तहँ देखि हरष कपिराई॥‘

मतलब हनुमान जी ने एक घर पर अंकित राम जी के धनुष और वहाँ लगे तुलसी के पेड़ से अनुमान लगाया कि यहाँ कोई सत्पुरुष निवास करता है.

फिर हनुमान जी का संशय,

‘लंका निसिचर निकर निवासा। इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा॥
मन महुँ तरक करैं कपि लागा। तेहीं समय बिभीषनु जागा॥‘

लेकिन,

‘राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा। हृदयँ हरष कपि सज्जन चीन्हा॥‘

यानि जागते ही उन्होंने ‘राम! राम!’ ऐसा स्मरण किया, तो हनुमानजी ने पक्का किया कि यह कोई सत्पुरुष है।

और जब बात चीत हुईं तो विभीषण जी की लाचारी देखिये,

‘सुनहु पवनसुत रहनि हमारी। जिमि दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी॥

जैसे दांतों के बीच में बेचारी जीभ रहती है, ऐसे ही विभीषण इन राक्षसों के बीच अपने को अनुभव करते थे…

साथ ही विभीषण अपनी मंशा भी बिना किसी प्लान के साफ हृदय से तत्काल स्पष्ट करते हैं,

‘तात कबहुँ मोहि जानि अनाथा। करिहहिं कृपा भानुकुल नाथा॥
अब मोहि भा भरोस हनुमंता। बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता॥‘

और यही नहीं विभीषण जी ने अपना टास्क बहुत पहले ही शुरू कर दिया था. अक्षय कुमार के वध के बाद जब मेघनाद, हनुमान जी को रावण के दरबार में ले गया और हनुमान जी को मृत्युदण्ड का निर्णय लिया जा रहा था, तभी विभीषण जी ने एंट्री मारी और रावण को नीतिगत बात समझाई,

‘नाइ सीस करि बिनय बहूता। नीति बिरोध न मारिअ दूता॥
आन दंड कछु करिअ गोसाँई। सबहीं कहा मंत्र भल भाई॥‘

कहा कि यह दूत है इसलिए इसे मारना नहीं चाहिये; क्योंकि यह बात नीति के विरुद्ध है और सलाह दी, ‘हे स्वामी! इसे आप कोई दंड दे दीजिये पर मारें मत’.

और जब दंड के रूप में पूंछ में आग लगाई तब हनुमान जी ने पूरा नगर एक क्षण भर में जला दिया लेकिन विभीषण जी का घर बच गया,

‘जारा नगरु निमिष एक माहीं।
एक बिभीषन कर गृह नाहीं॥’

विभीषण जी के प्रयत्न फिर भी जारी रहे… अपने मन में विचार किया,

‘सचिव बैद गुर तीनि जौं, प्रिय बोलहिं भय आस।
राज धर्म तन तीनि कर, होइ बेगिहीं नास॥’

और अंततः रावण के दरबार में पहुँच ही गए,

‘बार बार पद लागउँ बिनय करउँ दससीस।
परिहरि मान मोह मद भजहु कोसलाधीस॥’

‘बुध पुरान श्रुति संमत बानी।
कही बिभीषन नीति बखानी॥’

लेकिन तब घमंडी रावण ने उनकी अच्छी सलाह पर उनको लात मार बाहर किया, इसके बाद विभीषण फ्री हुये,

‘रामु सत्यसंकल्प प्रभु सभा कालबस तोरि।
मैं रघुबीर सरन अब जाउँ देहु जनि खोरि॥’

और फिर,

‘अस कहि चला बिभीषनु जबहीं। आयु हीन भए सब तबहीं॥
रावन जबहिं बिभीषन त्यागा। भयउ बिभव बिनु तबहिं अभागा॥’

अब बोलिए साहब… करिए मिलान… विरोधी दल बदलुओं का विभीषण जी से…

जो व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों में राजसुख ना भोग अपने चरित्र, नीति, रीति पर दृढ़ रहता है… शत्रु पक्ष के दूत की रक्षा के लिए कानून का पाठ बलशाली, गर्वीले राजा को पढ़ाने का साहस करता है…

अपने पक्ष के गलत रास्ते पर चलने वाले घमंडी रावण जैसे नेतृत्व को बार-बार समझाने के साहसिक कर्तव्य का ध्यान रखता है, उस कैरेक्टर को ‘विभीषण कहा जा सकता है.’

पहले एक शल्य का नाम भी चला था… अधर्म पक्ष से धोखा खा कर अपने वचन की रक्षा करते हुये अधर्मियों के मनोबल को तोड़ने वाले प्रशंसनीय कैरेक्टर को तो फेसबुकिए विद्वानों ने विलेन बना ही डाला और मोदी जी के थिंक टैंक ने स्वयं मोदी जी के मुंह से ही शल्य का बखान करा, जेटली जी को कर्ण और मोदी जी को दुर्योधन बना डाला.

अब घटोत्कच का नाम आया है.

महाभारत युद्ध के धर्म अर्थात पांडव पक्ष का सबसे वरिष्ठ बलशाली पुत्र था घटोत्कच… कर्ण की अमोघ शक्ति को व्यर्थ करने के लिए उसका बलिदान दिया गया था… अभिमन्यु से कैसे भी कम नहीं था घटोत्कच का रोल…

लेकिन यहाँ विद्व जनों ने उसकी भी तुलना विपक्ष के चिटफंडिए गुंडे के सामने रख कर कर डाली…

अंततः हमारे इतिहास में धर्म पक्ष में कोई गुंडागर्दी, छल, फरेब, विश्वासघात था ही कहाँ… अपने पूर्वजों के साफ सुथरे चरित्रों की तुलना आज के समय में करी ही क्यों जाती है… आखिर क्यों बार बार अपने धर्म पक्ष को अधर्म पक्ष से जोड़ दिया जाता है.

हमारे यहाँ तो चाणक्य ने भी मुद्राराक्षस के गुणों को देख चन्द्रगुप्त का मंत्री बनाया था, लेकिन छ्ल-फरेब से दल-बदल कराके नहीं, वरन उसके स्वामी घनानन्द के खात्मे के बाद.

मैं तो एक बार फिर कहूँगा… नरेंद्र मोदी जी के थिंक टैंक और उनके समर्थक सोशल मीडिया लेखकों में भगवा ओढ़े हुये ‘लाल ध्वजा’ के ही वाहक जमे हुये हैं जिनको ना धर्म का ज्ञान है, ना धार्मिक चरित्रों को समझने की कोई बुद्धि ही उनके पास है…

ये मोदी जी के लिए वैसे ही खतरनाक सिद्ध होंगे जैसे सुधीर कुलकर्णी, जिन्होंने लालकृष्ण आडवाणी जी का बंटाधार किया था.

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