किसी दूसरे का हो जाना दिलो जान से
किसी दूसरे में देख लेना ख़ुदा
एक सीढ़ी है अपना हो जाने की तरफ़
एक पुल है ख़ुद से ख़ुदा हो जाने की तरफ़
कि किसी दूसरे के इतना क़रीब हो कर ही हम जान पाते हैं
दूसरा तो कोई है ही नहीं
है तो एक ही
एक प्यास, एक तिशनगी, भीतर का एक ख़ालीपन
एक अधूरापन
न जाने किसे ढूँढती रहती है नज़र
रूह कुरलाती है
गहरे से कहीं सिसकियाँ भी निकलती हैं
जन्मों का सफ़र
मिला दिल का मरहम
सब पूर्ण हुआ
प्यास बुझी
सिसकियाँ आनी बंद हुई
फिर अहसास हुआ
सब तो अपने ही अंदर था
ख़ुद में ही परिपूर्ण थे हम
अर्धनारिश्वर थे हम
पर उस चिंगारी का लगना ज़रूरी था
प्यास का समुन्दर हो जाना ज़रूरी था
किसी के मिलने से ही अपने साथ मिलना हुआ
किसी दूसरे का होना बहुत ज़रूरी है यह जानने के लिए
कि सब एक ही है
कि ख़ुद में ख़ुदा बसता है…