कैसे लेते हैं आप उनसे विदा,
जिनसे आप बेहद प्यार करते हैं,
धीरे धीरे,
विदा लेना भी एक आदत बन जाता है,
कैंसर के मरीज़ का हर माह,
अपना खून जांच करवाने के जैसा;
वो जो गया,
बना लेता है नए रिश्ते,
भूलने की हर कोशिश है वो गम पुराने,
आखिर कब तक रो सकता है कोई;
कर के कुछ कॉपियों के पन्ने काले,
पढ़ के कुछ नसीहतें,
रसालों, किताबों, अख़बारों में,
सीख जाता है,
खुद को समझाता है,
यह तो सब के साथ होता है,
मैं अकेला नहीं हूँ,
इक यूनिवर्सल ट्रुथ,
सहना आसान कर देता है,
पर्सनल ट्रुथ;
रचता है नए काम,
नए मकसद ढूँढता है,
कोई मर थोड़े ही न जाता है,
बिछुड़ के,
थोड़ा थोड़ा न जाने कब से मर रहा था.
बिछुड़ने की आशंका में;
पर टैक्सी ड्राईवर को यह कहना,
‘अलोन अगेन’
गूंजता रहता है कानों में,
तमाम उम्र,
वो फ्लाइट टेक-ऑफ होने से पहले का,
आखिरी फ़ोन,
वो जाती हुई पीठ,
वो हिलते हुए कंधे,
वो शीशे के आर पार आखिरी झलक,
गले में इकट्ठे कर देते हैं,
सब न बहे हुए आंसू;
हर कोई अपने आप में एक नीलकंठ है…….
क्या सिर्फ दो ही सच्चाईयां हैं ज़िंदगी की
जीवन और मौत…………..?