शिक्षा के लिए कुछ सरकारी योजनाओं पर काम कर रही हूँ आजकल. जिसमें अल्प शिक्षित गरीब और जरूरतमंद बच्चों को प्रशिक्षित कर उन्हें इस काबिल बनाया जाना है कि वे स्वयं का रोजगार शुरू कर सके.
इसके लिए हल्द्वानी से करीब 25 km दूर कालाढूंगी एरिया में स्थित अपने सेण्टर तक रोज गाँव और घने जंगलों के बीच होकर मुझे जाना होता है.
चूँकि वहाँ के लोग जागरूक नहीं है और उदासीन हैं इस तरह के कोर्सेस को लेकर तो कई बार बस्तियों में अपनी टीम को भी भेजना होता है. अपने स्टाफ का मनोबल बढ़ाने के लिए मैं भी यदा कदा उनके साथ शामिल होती हूँ.
इसी क्रम में मुस्लिमों की बस्ती में जाना हुआ मेरा ( शायद पहली बार ) ! दोपहर का समय करीब सारे पुरुष बस्ती से बाहर और सिर्फ महिलाएं, या छोटे बच्चे और इधर उधर से आती “जा रिया” …….” खा रिया” की आवाजें या झगड़े टाइप वार्तालाप.
जिसने मुझे सबसे ज्यादा चौंकाया वो वजह बड़ी अजीब सी लगी…
एक घर की महिला से बातचीत हुयी. बानगी देखिये और उनके” विलक्षण” दिमागों के खेल भी.
टीम – हमारे सेण्टर में निःशुल्क ड्रेस मेकिंग का कोर्स है छः महीने का, जिसमें 18 से 40 आयु वर्ग की महिलाएं प्रवेश ले सकती हैं. साथ में 20 घंटे का कंप्यूटर सॉफ्ट स्किल कोर्स है.
लड़की – (खुश होते हुए), मैडम मेरा नाम लिख लीजिये.
लड़की की माँ – क्या बोली तू? तू जायेगी? बस्ती से कोई ना जा रिया. तू कैसे जायेगी किसके साथ जाएगी?
लड़की – अम्मी पास में तो है सेण्टर. कोई न जाए मैं जाऊंगी.
माँ – अरे जा के देख टाँगे न तुड़वा दूँ कामराज से तेरी
लड़की बेबसी से माँ की तरफ ऊँगली दिखाते हुए – “भैंस खा खा के बुद्धि भी तेरी भैंस जैसी हो राखी है…. कहीं न भेजा तूने मुझे, स्कूल तक ना जाने दिया”.
क्या बोली …..माँ चीखते हुए मारने दौड़ी बेटी को.
और हक्के बक्के हम ये भीषण वार्तालाप सुन हट गए वहां से!
तो आलम ये है कि सरकार कैसे इन्हें तरक्की से कदम मिलाते हुए चला कर दिखाए. सारा खेल मानसिकता का है उसे सरकार क्या हम क्या कोई भी नहीं बदल सकता उनके अपने बच्चे तक नहीं.
और हम बात कर रहे हैं कई मोर्चों पर { कथित रूप से } असफल सरकार की ……और स्थिति जस की तस है …
बाल विवाह ….. बेमेल निकाह ….. तलाक …..हलाला…… मेहर ……के साथ साथ क्या पनपेगा इनके बीच ….
खुद सोचिये
सिर्फ सोचिये, क्योंकि आप कुछ कर नहीं सकते!
– महिमा नागर