अभी टीवी पर देखा कि आज दिल्ली में कपिल सिब्बल कुटिल मुस्कुराहट के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चुनौती देने के अंदाज़ में पूछ रहे थे कि मई 2014 में आपने भ्रष्टाचार खत्म करने का वायदा किया था, क्या भ्रष्टाचार खत्म हुआ?
उपरोक्त सवाल पूछते हुए कपिल सिब्बल यह समझ ही नहीं पाये कि उनका सवाल भाजपा या नरेन्द्र मोदी को कठघरे में खड़ा करने के बजाय कांग्रेस के बचे खुचे कपड़े फाड़ रहा है.
कपिल सिब्बल का सवाल खुद ही इस बात का सबूत है कि मई 2014 में जब नरेन्द्र मोदी ने देश की सत्ता संभाली उस समय देश में भयंकर भ्रष्टाचार था, तभी तो नरेन्द्र मोदी ने उस भ्रष्टाचार को खत्म करने का वायदा किया था.
आज साढ़े तीन वर्ष बाद कुटिल मुस्कान के साथ चुनौती भरे अंदाज़ में कपिल सिब्बल का यह पूछना कि ‘क्या भ्रष्टाचार खत्म हुआ?’ यह भी स्पष्ट करता है कि 2014 में भयंकर भ्रष्टाचार की बात से कपिल सिब्बल भी सहमत हैं.
तब ही तो वे चुनौती देते हुए मोदी से सफाई/सबूत मांग रहे हैं कि वो सिद्ध करें कि भ्रष्टाचार को खत्म किया है.
भ्रष्टाचार के खात्मे के अपने वायदे पर प्रधानमंत्री मोदी कितना खरे उतरे, कितना नहीं, इसका सबूत गैस सिलेण्डर, मनरेगा, खाद सब्सिडी की चोरी पर रोक से देश को प्रतिवर्ष मिल रहे 60 हज़ार करोड़ रुपये एवं स्पेक्ट्रम तथा कोयले की नीलामी से देश को पिछले 3 सालों में हुई लगभग 7-8 लाख करोड़ रूपए की आय से स्पष्ट हो जाता है.
लेकिन कपिल सिब्बल के आज के सवाल से सम्बंधित मेरा सवाल यह है कि… कपिल सिब्बल ने जिस भ्रष्टाचार को खत्म नहीं कर पाने या खत्म नहीं करने का दोष प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर मढ़ने की कोशिश की, उस भ्रष्टाचार का जनक कौन है?
मई 2014 तक भ्रष्टाचार को इतने भयंकर स्तर पर किसने पहुंचा दिया था कि मई 2014 के लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा वह भयंकर भ्रष्टाचार ही बन गया था?
अतः आज जब कपिल सिब्बल को कुटिल मुस्कान के साथ इतराते इठलाते हुए चुनौती भरे अंदाज़ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भ्रष्टाचार के खात्मे को लेकर सवाल पूछते हुए देखा तो मुझे लगा कि…
अपने भ्रष्टाचार पर इतराने की ऐसी गज़ब बेशर्मी देश ने शायद पहले कभी नहीं देखी.