यह केवल चुनावी रणनीति है, आस्था नहीं

सारी दुनिया जानती है कि वे क्रिप्टो-इस्लामी है. आखिर मुस्लिम पिता और कट्टर कैथोलिक इसाई की सन्तान हिन्दू कैसे होगा? नहीं तो बताये क्या गोत्र है?

लेकिन चुनाव क्या-क्या न करवाए. हिन्दू देवी-देवताओं में आस्था न होने के बावजूद आज दर-दर भटकते हुए मन्दिर जाना पड़ रहा है.

शो-बाज़ी के लिए ही सही, परनाना, दादी और बाप द्वारा पाले-पोसे गए प्रो-इस्लामिज्म के सेकुलरिया विचारों को पलीता लगाना पड रहा है.

इसी लिए कहता हूँ अपने धर्म-विचारों के अनुसार वोटिंग करो, देखना बड़े-बड़े कट्टर कैथलिक भी तुम्हारे देवताओं के सामने माथा टेकने आयेंगे.

गुजरात में 22 साल के बाद कांग्रेस सत्ता में आने के लिए एक नई रणनीति के साथ उतरी है. कांग्रेस जनता को लुभाने के लिए हर तरह से कोशिश में जुटी हुई है.

जी हां, हम बात कर रहे हैं चुनावों में कांग्रेस के सॉफ्ट हिंदुत्व कार्ड की. खुद राहुल गांधी इस कार्ड पर टिके हुए हैं.

इससे पता चलता है कि कांग्रेस में भाजपा के जीतने का किस तरह का भय बना हुआ है. चुनाव प्रचार के चलते राहुल गाँधी अपनी तीनों यात्राओं ने मंदिरों में ही पहुंचे.

इस यात्रा के दौरान राहुल की इस नई रणनीति से साफ अंदाज़ लगाया जा सकता है कि वो अपनी इसी रणनीति पर ही आगे बढ़ेंगे चाहे वो इलाका अल्पसंख्यक बहुल क्यों ना हो.

किसी तरह हिन्दू-वोट बैंक को भ्रमित करना हो वे करेंगे. अगर मुस्लिम एक होकर प्रो-इस्लामिज्म के लिए वोट कर सकता है तो सकारात्मक राष्ट्र निर्माण के लिए हिन्दू क्यों नहीं कर सकता?

बुधवार को राहुल गाँधी द्वारा यात्रा निकाली गई थी जो कि अल्पसंख्यक इलाके में की गई थी और इस यात्रा में भीड़ काफी बढ़ी तादाद में थी जिसमें आधे से ज्यादा संख्या अल्पसंख्यक लोगों की थी.

कांग्रेस को पहले से डर था कि कहीं गुजरात का ये चुनाव भी साम्प्रदायिक ना हो जाये और उसको ध्रुवीकरण का नुकसान ना हो. लेकिन उसकी मुश्किल ये थी कि वो पूरी तरह अल्पसंख्यक बहुल इलाके को बिना प्रचार के कैसे छोड़ दे.

इसलिये पार्टी ने एक नया तरीका निकला. इस यात्रा के चलते यह तय किया गया कि राहुल सिर्फ रोड शो करेंगे.

खास बात रही कि जम्बूसर में राहुल के मंच पर पहुंचते ही ऐलान हुआ कि इलाके के संत महंत सबसे पहले राहुल को पूजा अर्चना कराएंगे और आशीर्वाद देंगे. लेकिन दिलचस्प बात ये रही कि इस रैली में ही ज्यादा भीड़ मौजूद थी.

जैसा कि तीन यात्राओं के दौरान राहुल अब तक सिर्फ मंदिरों और नवदुर्गा पंडालों में ही गए हैं. इस बार तो अल्पसंख्यक इलाके में राहुल के रास्ते में कई मस्जिदें पड़ीं, लेकिन राहुल किसी में नहीं गए. इस बार गुजरात चुनाव में तो वो सॉफ्ट हिंदुत्व के कार्ड पर ही सवार रहने के मूड में है.

दरअसल, कांग्रेस को लगता है कि पिछले चुनावों के चलते ध्रुवीकरण का शिकार होकर गुजरात में हारती रही है. इसलिए इन चुनाव में उसने कई बड़ी इमेज-मेकिंग और पीआर कम्पनियां हायर की हैं.

उसके रणनीतिकारों ने इस बार अधिकाँश चैनलों के साथ पत्रकारों पर भी दांव लगाया है. वे राहुल की नई छवि गढ़ने का प्रयत्न करेंगे. उसमें राहुल ट्रेंड किये पेड (paid) आम लोगों/ लड़के/ लड़कियों को अपने साथ विभिन्न स्थानों पर दर्शाएंगे. जिससे जन-नेता की छवि बन सके.

इस बार कांग्रेस नई रणनीति के साथ गुजरात की जंग में कूदी है. इसके लिए उन्होंने हिंदू-मतदाताओं को रिझाने की तरकीब निकाली है कि राहुल गांधी भले ही सनातनी संस्कारों में नहीं पले-बढ़े लेकिन वे मन्दिर जाकर हिन्दू मतदाताओं में संदेश दे कर कन्फ्यूज़ करे कि वह भी हिन्दू है.

फिलहाल यह एक चुनावी-फितरत है लेकिन कांग्रेस के किसी भी केन्द्रीय नेता ने 70 साल बाद इसको दिखाया. कम से कम एक कांग्रेसी राहुल नकली सेकुलरिज्म से एक कदम आगे बढने को मजबूर हुए.

इसे हिंदुत्व की विजय ही मानिए. आज मन्दिर जा रहे, कल को छ: हजार ध्वस्त किये गये मन्दिरों के भग्नावशेषो का पुनर्निमाण भी करवाने को मजबूर होंगे. बस आप जाति-पाति, क्षेत्रीयता, वर्ग-भेद मिटाकर बड़े वोट-बैंक जैसा दिखिए.

मन्दिरों और हिन्दू देवी-देवताओं को दकियानूस और पिछड़े विचार कहकर जिस ढंग से सेकुलर, वामी, कांग्रेसी और एनजीओ-बाज़ अपमानित करते रहे है वह कभी भुलाया नहीं जा सकता.

याद करिए, तीन साल पहले बड़े से बड़ा नेता केवल टोपी पहनकर सेकुलर दिखने की कोशिश करता था या फिर रोजा-इफ्तार या क्रिसमस मना कर.

आश्चर्यजनक यह है कि कोई प्रधान-मंत्री/ मुख्यमत्री/ मंत्री खुलेआम मन्दिर जाना तो दूर कभी आवासीय पूजा-पाठ को भी समाचार-माध्यमों में जाहिर नहीं होने देता था.

उनकी दृष्टि में यह निहायत गिरी चीज थी. इन चीजो से सेकुलरिज्म प्रभावित होने लगता था. मीडिया और चैनल खुलेआम आलोचना/ निंदा करने लगते थे.

जब से मोदी आये और प्रधानमंत्री होने के बावजूद पांच-सौ चैनलों के सामने काशी-विश्वनाथ, केदार-नाथ, पशुपति नाथ जैसे तीर्थो में अभिषेक, पूजा-पाठ और दर्शन-पूजन किया तब से छद्म-सेकुलरों में तहलका मचा है.

चुनाव के दिनों में मन्दिर जाकर अपनी आस्था पूरी करना भाजपा की नीतियों में है. यह सभी पार्टियां अपनाएं तभी पन्थ-निरपेक्षता का उद्देश्य पूरा होगा.

कुल मिला कर मोदी को लाख-लाख धन्यवाद जिन्होंने अपने देवताओं की प्रतिष्ठा स्थापित की और विधर्मियों से भी पूजन-अर्चन करवा लिया. एक दिन वे भी आस्थावान हिन्दू बन ही जायेंगे. तब आप इनसे अयोध्या, मथुरा, काशी के कब्जे वाले मंदिरों को छुड़वाकर गुलामी की याद भी मिटा सकेंगे.

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