अज्ञातवास के समय सर्वप्रथम युधिष्ठिर विराटराज के निजी सहायक बने और कार्य मिला सभास्तर का, विराटराज के साथ द्युतक्रीड़ा करने का.
वही युधिष्ठिर जो “बारह वर्ष” पूर्व अपना सब कुछ हारे थे द्यूत में उसी ने उन्हें अज्ञातवास के कठिन समय मे एक राजा के दरबार मे जगह दिलवाई.
एक विलासी राजा भला धर्मराज युधिष्ठिर में और क्या सदगुण ढूंढता और ढूंढ भी लेता तो युधिष्टिर पकड़े जाते.
“दुर्गुण भी कई बार सहायक बन जाते है यदि आपका लक्ष्य और निश्चय धर्मदृढ़ता हो! ”
वनवास के समय युधिष्ठिर ने एक विशेषज्ञ ऋषि से द्यूतक्रीड़ा को एक विद्या के रूप में सीखा और निपुण हो गए. इसी निपुणता ने उन्हें विराटराज के यहां वृत्ति प्राप्त करने में वरिष्ठता प्रदान की.
युधिष्टिर ने इस विद्या मे इतनी सिद्धहस्तता प्राप्त कर ली थी कि वे अब शकुनि को भी द्यूत में हराने में पूर्ण सक्षम हो गए थे.
जीवनयुद्ध का हर स्वरूप जो आपके सम्मुख है उसे आपको लड़ना ही पड़ता है और मात्र कठोर अभ्यास से तप्त निपुणता ही आपको विजय दिला सकती है.
सुना है मुकुल राय भाजपा में आ गए हैं, युधिष्टिर अब द्यूत खेलने को पूर्ण रूप से सज्ज है शकुनियों!
अब ये समझ लो कि तुम्हे तुम्हारे ही प्यादों के हाथों पीटा जाएगा.
मैं स्वागत करता हूँ मुकुल रॉय का इस युद्ध में, मैं स्वागत करता हूँ हर उस व्यक्ति का जो अधर्म के विरुद्ध धर्म के पक्ष से लड़ने को तैयार हो.
“भाजपा के चाणक्य जी! बस एक परामर्श है कि बंगाल में मुकुल रॉय भाजपा के हो जाये इसमें कोई दोष नहीं भाजपा मुकुल रॉय ना होने पाए. ”
शेष भविष्य के गर्भ में क्या है ये तो बस महादेव ही जानते हैं, फिलहाल दांव नैतिक हो ना हो निसंदेह सामरिक रूप से श्रेष्ठ है.