सैदपुर के बगल में एक गांव है सिधौना. वहां के कुछ लोग सूद पर पैसा चलाने के लिए कुख्यात हैं.
सिधौना में बहुत छोटी छोटी राशि जैसे हज़ार-दो हज़ार रूपए या फिर पांच-दस हज़ार रूपए, लोग इनसे कर्ज़ा लेते हैं और फिर 30 दिन या 90 दिन में रोज़ाना एक निश्चित रकम दे कर वो कर्ज़ा चुका देते हैं.
ऊपर से देखने में तो इनका ब्याज 10 से 14% मासिक लगता है पर चूंकि रोज़ाना principal amount घटता जाता है इसलिए इस पूरे चक्र में ब्याज दर दरअसल 30% तक हो जाती है.
इसी तरह दिल्ली के मेरे एक मित्र बता रहे थे कि उनके मुहल्ले में लोग सब्जी विक्रेताओं को सुबह 1000 रूपए देते हैं और शाम को 1200 वसूल लेते हैं.
यानि 8 घंटे का ब्याज 20%
मोदी सरकार ने ऐसे ही लोगों को इन साहूकारों से बचाने के लिए मुद्रा योजना (MUDRA) शुरू की है.
इस योजना के अंतर्गत अब तक 7.5 करोड़ लोगों को, छोटे व्यापारियों को, पटरी फुटपाथ पर दुकान लगाने वाले लोगों को, और छोटे उद्यमियों, व्यवसायियों, व्यापारियों, को, महिला उद्यमियों को, पिछले दो साल में मोदी सरकार ने 3 लाख 55 हज़ार करोड़ रूपए का कर्ज बांटा है.
कर्ज़ भी बिना किसी सुरक्षा निधि (security) के और बिना कोई संपति गिरवी रखे. वित्तीय वर्ष 2015-16 में 1 लाख 33 हज़ार करोड़ रूपए और वर्ष 2016-17 में 1 लाख 53 हज़ार करोड़ रूपए के लोन बांटे गए हैं.
मेरे एक मित्र बैंक मेनेजर हैं. कल उनसे फोन पर इस MUDRA योजना पर लंबी चर्चा हुई.
उन्होंने बताया कि ये लोन एक प्रकार का Cash Credit (CC यानी नक़द साख) होता है. ऐसा नहीं है कि बैंक ने आपका दो लाख का लोन पास किया और आपके हाथ में धर दिया 2 लाख, कि जाओ बेटा, करो ऐश… पियो दारू और खाओ मुर्गा…
बैंक का फील्ड अफसर पहले आपके दुकान, मकान, रेहड़ी, गुमटी, आपके ठेले-ठीहे का मुआयना करेगा. संतुष्ट होगा तो आपको दुकान में माल भरने के लिए आपके खाते में दो लाख डाल देगा.
अब आप गए बनारस की थोक मंडी में और वहां से 50,000 का माल ले आये, तो बैंक मैनेजर उस थोक विक्रेता के नाम cheque काट देगा 50,000 का और फिर 4 दिन बाद आपकी दुकान में वो 50,000 का माल आया कि नहीं इसका पुष्टि करेगा.
इसके बाद कहेगा कि 15 दिन में ये 50,000 का माल बेच के बैंक में पैसा वापस जमा करो… और जाओ, बनारस जा के फिर से माल ले आओ…
इसी तरह साल में 20 बार ये सिलसिला चला… तो अगले साल Bank manager उचित समझेगा तो आपकी CC लिमिट जो अब तक 2 लाख थी उसे बढ़ा के 3 या 4 लाख कर देगा.
अब एक दुकानदार यदि इस तरह MUDRA बैंक से लोन ले के अपना बिज़नेस बढ़ाता है तो अपने साथ वो समाज में कितने अन्य लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से रोज़गार दे रहा है?
ऐसे 7.5 करोड़ लोग हैं जिनको मुद्रा बैंक ने पिछले दो साल में लोन दिया. किसी को सिर्फ 5 हज़ार दिया तो किसी को 50,000 और किसी को 5 या 10 लाख भी दिया.
मुद्रा बैंक से लोन ले के कोई सब्जी बेच रहा है, तो कोई चाय की दुकान चला रहा है तो कोई बड़ी दुकान या factory चला रहा है.
हर सफल उद्यमी, कर्मकार, मेहनतकश आदमी अपने साथ कम से कम एक आदमी को तो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रोज़गार देता ही है.
इसीलिए मोदी जी कहते हैं कि हमने रोज़गार देने की बात कही थी, नौकरी नहीं… लोग अब भी नौकरी ही खोज रहे हैं.
एक उदाहरण और लीजिये. पिछले दिनों 25 अक्टूबर को भारत सरकार ने भारत माला परियोजना की घोषणा की.
इसके अंतर्गत प्रथम चरण में, 34,800 किलोमीटर रोड बनाई जानी हैं. एक किलोमीटर रोड बनाने में 4200 मानव श्रम दिवस लगते हैं.
यानि 4200 आदमी एक दिन काम करें तो एक किलोमीटर रोड बनती है. अगले दो सालों में 34,800 किलोमीटर रोड बनाई जाएगी, यानी 34800 × 4200 यानि कि 4 लाख लोग एक साल काम करेंगे तब जा के ये सड़कें तैयार होंगी.
ये तो प्रत्यक्ष रोज़गार होगा. इस पूरी गतिविधि से जो अप्रत्यक्ष रोज़गार पैदा होगा वो अलग, जसके बाद इतनी सड़कें, देश में इतनी कनेक्टिविटी बढ़ जाने के बाद जो वृद्धि होगी उस से जो रोज़गार होगा वो अलग.
परंतु भारत के युवा को रोज़गार नहीं चाहिए बल्कि नौकरी (सरकारी) चाहिए.
भारत सरकार का आंकड़ा है कि MUDRA बैंक की 78% लाभार्थी महिलाएं हैं.
कुल 3 लाख 55 हज़ार करोड़ में से 1 लाख 78,000 करोड़ रूपए महिला कामगारों / उद्यमियों / लाभार्थियों को बांटे गए हैं.
कर्ज़ महिला ने लिया है इसलिए उसके डूबने की संभावना कम हैं. सरकार और वित्तीय संस्थानों का अनुभव है कि महिलाएं अपना कर्ज़ उतारने के मामले में ज़्यादा संजीदा होती हैं.
MUDRA बैंक की ये योजना आने वाले समय में एक नए भारत का निर्माण करेगी और साल दो साल में इसके परिणाम सामने आने लगेंगे.