मेरे एक मित्र हैं. बड़े ही मस्त मौला फक्कड़ आदमी हैं. पेशे से सॉफ्टवेर इंजीनियर हैं.
गलत मत समझियेगा. वो ये आजकल के दुकान शोरूम नुमा किसी सड़कछाप इंजीनियरिंग कालिज के बीटेक्स (दाद खाज खुजली वाली) नहीं है बल्कि सचमुच के सॉफ्टवेर इंजीनियर हैं.
एक आम हिंदुस्तानी की तरह निम्न मध्यम वर्ग से आते हैं और आज अपने पुरुषार्थ पराक्रम से बेहद सफल हैं.
उनकी सॉफ्टवेर कंपनी में 1000 से ज़्यादा सॉफ्टवेर इंजीनियर्स काम करते हैं. मुम्बई समेत दुनिया के कई देशों में उनके ब्रांच ऑफिस हैं.
छोटी सी उम्र में ही उन्होंने शून्य से शुरू कर के एक बड़ा मुकाम हासिल किया है. आपकी एक बेटी है. अभी उसने 10वीं पास की है. इकलौती बेटी है.
मित्र ने अपनी बेटी को स्पष्ट कर दिया है. एकमात्र संतान हो, ज़ाहिर सी बात है कि मेरे बाद मेरा सब कुछ तुम्हारा ही है.
इसका ये मतलब ये कतई नहीं है कि एक दिन तुम अपनी पढ़ाई पूरी करके आओगी और कंपनी की वाईस प्रेसिडेंट या सीईओ बन के सबके सिर पर बैठ जाओगी.
इसमे कोई शक़ नहीं कि मेरे बाद कंपनी का मालिकाना हक़ तुम्हारे पास ही होगा… कंपनी के शेयर्स तुम्हारे पास होंगे, पर ऐसा नहीं होगा कि तुम इसे inherit करके यहाँ सबके ऊपर हुक्म चलाओगी.
अगर यहां काम करना होगा तो सबसे निचले स्तर से ही शुरू करोगी, जैसे बाकी सब करते हैं. ठीक वैसे ही, उसी अनुशासन से काम करोगी जैसे बाकी सब करते हैं.
तुम्हारी भी ठीक वैसे ही वेतनवृद्धि और पदोन्नति होगी जैसे बाकी सबकी होती है. अगर योग्यता होगी, कूबत होगी तो प्रमोशन होगा वरना नहीं होगा.
मेरी कंपनी को मेरे बाद, मेरा कोई बेटा बेटी या मेरा रिश्तेदार नहीं, बल्कि इस संगठन का सबसे योग्य आदमी ही चलाएगा.
पिछले दिनों भैण मायावती जी ने आज़मगढ़ में एक रैली की. मंच पे उनके साथ उनका भाई आनंद कुमार और उनका भतीजा यानि कि आनंद कुमार का बेटा मौजूद थे. मुझे उस दिन आज़मगढ़ की उस रैली में भारत का लोकतंत्र दम तोड़ता दिखा.
मान्यवर कांशी राम जी ने जब बसपा की स्थापना की तो उनका सपना था कि दलितों, शोषितों, दबे कुचले लोगों की आवाज़ बनें… उन्होंने बसपा को एक कार्यकर्ता आधारित पार्टी के रूप में खड़ा किया था.
कांशी राम जी ने पार्टी बनाई तो घर छोड़ दिया और फिर मुड़ के नहीं देखा. उन्होंने अपने लिए एक योग्य उत्तराधिकारी चुना और पार्टी उसे सौंप दी…
बसपा की शुरुआत बेशक एक कार्यकर्ता आधारित पार्टी के रूप में हुई पर मायावती ने उसे एक निजी जागीर के रूप में चलाना शुरू किया.
आज उसका भी हश्र एक परिवारवादी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के रूप में हुआ जहां उत्तराधिकारी के रूप में एक निकम्मे भाई और उसके बाद भतीजे को नामित कर दिया गया है.
मैं इसे लोकतंत्र के एक और किले के पतन के रूप में देखता हूँ. आज अगर आप भाजपा और कम्यूनिस्ट पार्टियों को छोड़ दें तो देश की सभी पार्टियां प्राइवेट लिमिटेड कंपनियां बन चुकी हैं.
कायदे से देखा जाए तो यूपी में समाजवादी पार्टी में मुल्लायम सिंह के बाद कमान शिवपाल यादव या आज़म खान जैसे किसी नेता के हाथ मे जानी चाहिए थी…
पर मुल्लायम ने अपने भाई, जिसने पहले दिन से ही तिनका-तिनका जोड़ के पार्टी खड़ी की थी, उनको लगभग धता बताते हुए सबसे पहले अपने बेटे को मुख्य मंत्री का पद सौंपा, फिर पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने दिया.
जब चुनाव आयोग में चुनाव चिह्न ‘साइकिल’ की लड़ाई शुरू हुई तो भी मुल्लायम ने चुनाव आयोग को पत्र लिख के बाकायदे चुनाव चिह्न अपने बेटे टिप्पू जादो के पक्ष में सरेंडर कर दिया और सिपाल ठगे से ताकते रह गए.
अपने निकम्मे बेटे को गद्दी सौंपने का नतीजा ये हुआ कि पार्टी के सभी वरिष्ठ नेता, जनाधार वाले नेता, अनुभवी नेता दरकिनार कर दिए गए और कमान भैया जी के चेले चिंटू, मिंटू, सिंटू, पपलू और बबलू के हाथ आ गयी.
अपरिपक्व नेतृत्व का ही कारनामा था कि टिप्पू जादो तूफान में राहुल गांधी जैसे डूबते जहाज पे सवार हो गए.
आज हालात ये हैं कि पार्टी का निष्ठावान वोटर दिग्भ्रमित हो छिन्न भिन्न हो गया है, गैर यादव ओबीसी सपा छोड़ भाजपा के पाले में चले गए हैं, मुसलमान रास्ता खोज रहे हैं पर विकल्प नहीं मिल रहा.
इन सभी परिवारवादी पार्टियों का मुकाबला भाजपा जैसी कार्यकर्ता आधारित, सचमुच की लोकतांत्रिक पार्टी से है जहां हर दो या चार साल में पार्टी का अध्यक्ष बन जाता है…
एक झोला छाप पार्टी कार्यकर्ता मुख्यमंत्री बन जाता है और एक चायवाला सामान्य सा कार्यकर्ता देश का पीएम बन जाता है, जहां चयन का पैमाना पूरी तरह योग्यता आधारित है, न कि किसी कुलविशेष में जन्म लेना…
सीधा सी बात है, समय की मार वही सह पायेगा जो धूप-घाम, पानी, पाथर से संघर्ष करके, गिरता पड़ता, ठोकर खाता, सीखता हुआ ऊपर आएगा…
भारतीय जनता पार्टी और अपने उस मित्र की कंपनी का भविष्य में सिर्फ इसलिए उज्ज्वल देखता हूँ क्योंकि इनमें वास्तविक लोकतंत्र है और इन्हें भविष्य में योग्य लोग चलाएंगे…
बाकी पार्टियां और बहुत सी कंपनियां सिर्फ इसलिए बर्बाद हो जाएंगी क्योंकि वो योग्यता को नज़रअंदाज़ कर शीर्ष नेतृत्व की निजी जागीर बन गयी हैं जिसे कोई अयोग्य, सिर्फ उनका वंशज होने के कारण चला रहा है.