अप्प दीपो भव : यह बुद्धत्व की बकवास कब बंद होगी?

यह बुद्धत्व की बकवास कब बंद होगी? – पूछते हैं एक मित्र.

जवाब

ये वो नग़मा है जो हर साज़ पे गाया नहीं जाता, बुद्धत्व की यह बकवास किसी के लिए बकवास और किसी के लिए एक चुनौति है. इस चुनौति को स्वीकार करने की हिम्मत लाखों लोगों में से केवल एक दो व्यक्ति की ही होती है.

बुद्ध महावीर जैसे जाग्रत पुरुषों की उपस्थिति में बहुत सूक्ष्म तरंगें होती हैं जिन्हें केवल बहुत संवेदनशील मनुष्य ही महसूस कर पाते हैं और वे हजारों मील दूर से भी बुद्ध पुरुष के पास बिन बुलाये ही खिंचे चले आते हैं.

इस पृथ्वी पर सदा से ही ऐसा होता रहा है और विशेषकर भारतवर्ष में हजारों वर्ष पहले इसका बड़ा चुम्बकीय क्षेत्र कई बार निर्मित हुआ है और फिर यह श्रृंखला खो गई है.

मनुष्यों के अंतर्मन में आकाश को छूने की जिज्ञासा जन्मती है वह ज़मीन के गुरुत्वाकर्षण से कशिश से मुक्त होकर आकाश में उड़ना चाहता है और इसकी प्रेरणा उसे जाग्रत पुरुष के दर्शन से मिलते है.

दुर्भाग्य से बुद्ध पुरुष के दर्शन सभी को नहीं हो पाते अधिकतर लोगों में उन्हें पहचानने की क्षमता ही नहीं होती क्योंकि अभी उनका भाव शरीर विकसित नहीं हुआ है या वे जड़बुद्धी हैं या फिर वे अभी पाशविक वृत्तियों के शिकार हैं.

इसलिए अगर संयोग से किसी कारण उनका कभी बुद्ध पुरुष से मिलना हो भी जाता है तो वे उसका लाभ नहीं ले पाते क्योंकि उनके भीतर कोई प्यास ही नहीं है या वे किसी रूढ़िवादी परम्परा को मानते हैं स्वयं को हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, इसाई समझे हुए हैं.

बचपन से जो उन्हें सिखाया पढ़ाया गया है वे बिना सोचे समझे उसी को धर्म मानते हैं और उसके अलावा उनमें सत्य को जानने की या स्वयं को जानने की बात सुनकर वे सोचते हैं कि मैं तो खुद को जानता हूँ.

मैं ब्राह्मण हूँ या मुस्लिम हूँ, मेरा यह नाम है पता ठिकाना है भला ये गुरू जैसा आदमी कैसी उलटी फुलटी बातें करता है इस तरह वे खुद को समझा लेते हैं.

पुराने जन्मजात संस्कारों से कंडिशनिंग से छूटना बहुत मुश्किल है उस पर किसी को संदेह ही नहीं होता तो फिर उन बंधनों से मुक्त होने की कोई गुँजाइश ही नहीं.

जिस दिन बुद्धत्व की बकवास बंद होगी तो उसके बाद फिर आप सुबह उठकर अपने आसपास गली मोहल्ले में अल्ला हो अकबर अपने चारों तरफ सुनने लगेंगे. या फिर

बेकस पे करम कीजिये सरकारे मदीना.
या अल्ला हू अल्ला हू अल्लाह हू
मेरे मौला करम करना
मेरी खाली झोली भरना

इस तरह की क़व्वालियाँ आपको सुननी पड़ेगी.

और न चाहते हुए भी रोज़ा रखना पड़ेगा नमाज़ पढ़नी पडे़गी. बकरी ईद पर किसी बकरे की गर्दन पर छुरी चलाकर आपको अपनी खुशी का इज़हार करना पड़ेगा ऐसा ही पृथ्वी के छप्पन इस्लामिक देशों में हो रहा है.

आपको उन देशों में इनके ख़िलाफ़ एक भी शब्द कहने में डर लगेगा. वहाँ आप यह नहीं कह सकेंगे कि यह अल्लाह हो अकबर की बकवास कब बंद होगी? शुक्र है कि इस भारत भूमि पर हजारों वर्षों से बुद्धत्व की बकवास चलती चली आ रही है.

मुग़ल सल्तनत तो नहीं चाहती थी कि अध्यात्म का नामो निशान भी बाकी बचे. हजारों हिन्दू साधु संन्यासियों, जैन मुनियों और बौद्ध भिक्षुओं को जो बुद्धत्व को जानने के लिए इस यात्रा में संलग्न रहे उन्हें क़त्ल कर दिया गया या तलवार के बल पर ज़बरदस्ती मुसलमान बना दिया गया.

नालंदा और तक्षशिला जैसे विशाल पुस्तकालयों को जलाकर राख कर दिया गया, बौद्ध मठों और स्थानकों को और हजारों मंदिरों को नष्ट कर दिया गया और उनकी जगह मस्जिदें, ताजमहल, और कुतुबमीनार बना दी गई ताकि भविष्य में किसी को इस बात का पता भी न चल पाये कि बुद्धत्व जैसी मनुष्यों में कोई संभावना भी होती है.

औरंगज़ेब ने अपने ही भाई दारा शिकोह की गर्दन कटवा दी क्योंकि वह वेदों और उपनिषदों का अध्ययन कर के उन्हें अरबी फ़ारसी या उर्दू भाषा में अनुवाद कर रहा था.

मोहम्मद बिन क़ासिम और महमूद गौरी के बाद इस बुरी तरह एक हजार वर्ष तक भारतीय स्त्रियों का अपहरण कर के उनके साथ बलात्कार किया गया है और दूसरे देशों की मंडी में बोली लगाकर बेचा गया है.

एक एक लुटेरे मुग़ल बादशाह ने पाँच पाँच सौ स्त्रियों से बलात्कार कर के ज़बरदस्ती हजारों बच्चे पैदा किए हैं उन्हीं बलात्कारों से पैदा हुई आज भी मुसलमानों की नाजायज़ परम्परा भारत को फिर से गजवा ए हिन्द बनाने पर तुली हुई है.

इसके बावजूद भी कुछ सिरफिरे पागल इस देश में होते रहे हैं जो कृष्ण, बुद्ध, महावीर, पतंजलि, कबीर, गोरख की धरोहर को सँभालकर फिर से नव जीवन देने की कोशिश में लगे हुए हैं. रमण महर्षी, जे.कृष्णमूर्ति, और ओशो जैसे प्रज्ञा पुरुषों के सतत प्रयास से यह पागलपन की श्रृंखला अब धीरे धीरे पूरी दुनिया में फैल रही है.

फिर भी इस्लाम और इसाईयत और तथाकथित हिन्दुओं के बीच जिन्हें इसका जरा सा भी पता नहीं है जो मुस्लिम और इसाईयत की तरह उनकी नक़ल कर के अंधविश्वास के शिकार हैं ऐसे लोगों की वजह से भी बड़ी मुश्किलें आती रहती है जो बुद्धत्व को बकवास समझते हैं.

सच्चाई यह है कि वे यह नहीं कहते कि हमारी समझ में यह ध्यान साधना करने वाली बात नहीं आती, हम तो मंदिर मस्जिद और मज़ारों पर जाकर उनकी ख़ुशामद कर के मन्नत माँग कर अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति चाहते हैं.

किसी बाबा से या कहीं और किसी भी बहाने कुछ माँगना यह धर्म का निकृष्ठतम रूप है इसे धर्म कहना ही व्यर्थ है. लेकिन करोड़ों अंधे और बहरों की भीड़ इसी को धर्म मानती आई है इसलिए इस पर कोई सोच विचार या इसका विरोध भी नहीं होता पब्लिक लोभी है. इसलिए जहाँ से भी मुफ़्त में कुछ मिलने की उम्मीद होती है वहीं भागी चली जाती है.

वह फिर कौन है क्या है वहाँ की मज़ार में कौन दफ़्न किया गया है इसकी कोई खोज ही नहीं करता बस फूल चढ़ाओ चादर चढ़ाओ और जेब से निकाल कर सौ पचास रुपये दानपत्र में डाल कर माँग लो जो भी माँगना है.

आसपास के हजारों लाखों लोग भी यही कर रहे हैं और तुम्हें भरोसा दिलाने के लिए ढेर सारे मनगढ़ंत क़िस्से कहानियाँ लोगों की ज़ुबानी सुनने को मिलती रहती है. नातें, क़व्वालियाँ और ढेर सारी ऐसी ही पुस्तकें हैं जिनमें इन धर्म के नाम की बड़ी बड़ी दुकानों के और यहाँ के चमत्कार की कहानियाँ छापी गई है लोग तो लिखी हुई बात को ही प्रमाण मानते हैं.

भारतीय पुराने ग्रन्थों को मिटाया गया है उनमें बहुत कुछ काट छाँट कर के बदली की गई है इसकी भी लोगों को कुछ जानकारी नहीं है इसलिए यह गोरखधंधा खूब फल फूल रहा है. और अब तो डिजिटल सोशल मीडिया पर भी लोग ऐसे ही प्रचार प्रसार में जुटे हुए हैं.

इसलिए आपको भी बुद्धत्व जैसे शब्दों को पढ़ने का अवसर संयोग से मिल जाता है. यहाँ फेसबुक पर भी सवेरे से लेकर रात देर तक कोई न कोई ओशो के अमृत वचनों को पुस्तकों या प्रवचनों से चुन चुन कर पोस्ट करते रहते हैं. यह उनका ओशो या जे.कृष्ण मूर्ति या रमण महर्षि जैसे बुद्ध पुरुषों के प्रति प्रेम और समादर है कि उन्हें उनकी याद आती है. उनके वचनों को पढ़ने और सुनने के बाद उन्हें शेयर करने का मन होता है यह बिलकुल स्वाभाविक है.

कोई फ़िल्मों के गीत शेयर करता है कोई पोर्नोग्राफ़ी शेयर करता है हजार तरह के शौक हैं. क्रिकेट है, फुटबाल है, बहुत से मनोरंजन है, सबकी अपनी अपनी पसंद है और आपको अपनी पसंद का इज़हार करने की स्वतंत्रता है. चाहे वह दूसरों को बकवास या अर्थहीन लगे.

बुद्धत्व की बातों से जिसके हृदय में कुछ हलचल हो ऐसे लोग तो लाखों में दो चार ही होंगे इसके लिए बड़ी प्रौढ़ चित्त दशा हो तो ही किसी विरले व्यक्ति के भीतर बुद्ध पुरुषों के प्रति आकर्षण जगता है, भीड़ तो मनोरंजन में या धर्म के नाम पर भीख माँगने में उत्सुक होती है. उनके लिए तो बुद्धत्व की बात निश्चित ही बकवास है.

ओशो बँबई जैसे महानगर में बरसों रहे फिर पूना में रहे लेकिन कोई आसपास के पड़ोसी जो बड़े रईस और श्रीमंत पढ़े लिखे लोग जो राजा महाराजाओं के बंगलों में रहते थे उनमें से कोई ओशो के प्रवचन सुनने नहीं आते थे. उनकी समझ में भी बुद्धत्व पागलपन और बकवास ही लगता होगा.

ऐसे लोग घुड़दौड़ देखने के लिए ही उत्सुक रहते थे. और देश विदेश से हजारों लोग ओशो के दर्शन के लिए बहुत सी मुश्किलों का सामना कर के पूना पहुँचते थे. उन दिनों पूरे भारत में ओशो का बहुत विरोध चल रहा था बहुत से अखबार और पत्रिकाएँ भगवान श्री रजनीश की निंदा में संलग्न थी. इसके बावजूद जिनके हृदय में सत्य की प्यास थी वे बिना टिकिट के यात्रा की तकलीफ़ झेलते हुए भी बड़ी दूर से भगवान श्री के दर्शन करने संन्यास लेने पूना आ जाते थे.

जितना दमन उतना वमन : ओशो आश्रम सेक्स का अड्डा!

Comments

comments

LEAVE A REPLY