हनुमान गढ़ी से रामलला तक की सड़कें और सरयू के जल के लाल रंग से लिखे गए इतिहास के इस पन्ने, जिसका रक्तिम रंग जो की अब जम कर स्याह हो चुका है…
जब इस पन्ने को पलट कर देखता हूँ तो पन्नों का ये स्याह रंग आँखों को एकदम रक्तवर्णा कर देता है…
ईश्वर साक्षी है, कोई इस समय मेरी हालत देख सकता… हाथों की कंपकंपाहट से की-बोर्ड पर उंगली बार-बार भ्रमित हो रही हैं…
हृदय में मानो आग दहक रही है… अंदर का खूनी सैलाब आँखों से बाहर आते-आते पानी में बदल गया है…
लेकिन फिर भी स्मृतियों के ढेर में से मैं उस दिन के घटनाक्रम की कड़ियों को जोड़ने की कोशिश कर रहा हूँ…
मुल्लायम सिंह की अहंकार पूर्ण उक्ति ‘अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकता….’ को कार सेवक 30 अक्टूबर को ही ध्वस्त कर अयोध्या में प्रविष्ट हो गुलामी के ढांचे पर भगवा फहरा चुके थे…
14 वर्षीय राजेन्द्र यादव, वासुदेव गुप्त, रमेश पाण्डेय व कुछ अनाम रामभक्तों के बलिदान ने लाखों कारसेवकों को आक्रोशपूर्ण जोश से भर दिया था…
हजारों कार सेवक मुल्लायम के दर्प को चूर कर अयोध्या की हनुमान गढ़ी में जमा थे… वे किसी भी हालत में कारसेवा किए बिना जाने को तैयार नहीं थे…
कारसेवकों के जोश को बनाए रखने और साथ ही नियंत्रित रखने की बड़ी चुनौती विहिप और संत नेतृत्व के सामने थी…
तब 2 नवम्बर कार्तिक पूर्णिमा के दिन कारसेवकों के लिए ‘कीर्तन सत्याग्रह’ की योजना बनाई गयी…
इसके लिए कार सेवकों को बैठे ही बैठे कीर्तन करते हुये हनुमान गढ़ी से रामलला की ओर सरकते हुए बढ़ना था…
अपने को हथियार रहित दिखाने के लिए ये तालियां बजाते हुये हाथों को सर के ऊपर भी ले जाया जाना था… महिला और बुजुर्ग कार सेवकों के लिए प्रशासन ने एक अलग से गैलरी बना दी थी…
इस गैलरी से जब बुजुर्ग और महिलाएं गुजरीं तो उन्होने पुलिसकर्मियों के पाँव छूने शुरू कर दिये… पुलिसकर्मियों के हिन्दू संस्कार जागे…
उन्होंने सम्मान स्वरूप महिलाओं-बुजुर्गों को मना किया और पीछे हटने लगे… अब काफी देर से बैठे-बैठे आगे बढ़ते हुये कुछ युवा कार सेवक थक कर खड़े होकर इसी गैलरी में बने उसी स्पेस में भाग कर प्रवेश करने लगे…
कलकत्ता का राम कोठारी (23 वर्ष) उनको नियंत्रित करने की कोशिश में लग गया… उधर पुलिस ने गोली चलायी जो कि राम कोठारी के लगी…
पास ही उसके छोटे भाई शरद कोठारी (20वर्ष) ने ये देखा तो वो आकर अपने भाई को उठाने लगा कि एक गोली ने उसके भी प्राण पखेरु उड़ा दिये…
इसके बाद तो मानो पुलिस पागल हो गयी… कीर्तन सत्याग्रह स्थल घायल और हत कार सेवकों के शवों से पट गया था…
यद्यपि उस समय तमाम अंग्रेज़ी अखबार तो मानो आजकल के ‘NDTV’ ‘ABP न्यूज़’ या ‘आज तक’ बने हुये थे… लेकिन हिन्दी और भाषायी अखबार अपना दायित्व बखूबी निभा रहे थे…
अखबार ‘आज’ मानो ‘जी न्यूज़’ या ‘सुदर्शन न्यूज़’ बना हुया था… उसमें छपी रिपोर्ट आज के हालात में कोई पढ़ ले तो शायद यूपी भी 2002 का गुजरात बन सकती है… गोली से सैकड़ों कार सेवकों की मृत्यु शहर में होने के समाचार थे…
3 नवंबर के जनसत्ता में प्रथम पृष्ठ पर छपी रिपोर्ट के कुछ अंश उस दृश्य को कुछ इस प्रकार बयान करते हैं –
अयोध्या की गलियाँ और सड़कें आज कार सेवकों के खून से सन गईं. अर्धसैनिक बलों की अंधाधुंध फायरिंग से अनगिनत लोग मरे और घायल हुये हैं…
इस संवाददाता ने अपनी आँखों से तीस लाशें सड़क पर छितरी हुयी देखीं हैं… प्रशासन ने कारसेवकों पर अंधाधुंध गोलियां उस वक्त चलवाईं, जब कार सेवक सत्याग्रह के लिए सड़कों पर बैठ कर रामधुन गा रहे थे…
कुछ अखबार वालों ने यह कहते हुये मदद की और कि आप हमको गोली मार दें… हम अपना काम करेंगे.
किसी भी कार सेवक के पैर में गोली नहीं मारी गयी… गोलियां सभी के सिर और सीने पर लगीं हैं…
फैजाबाद के रामचल गुप्ता की अखंड रामधुन बंद नहीं हो रही थी, जे एस भुल्लर ने उन्हें पीछे से गोली दाग कर मार डाला…
श्री गंगा नगर का एक कार सेवक जिसका नाम पता नहीं चला, गोली लगते ही गिर पड़ा और उसने अपने खून से सड़क पर लिखा – सीताराम.
पता नहीं यह उसका नाम था या भगवान का स्मरण, मगर उसके गिरने के बाद भी CRPF की टुकड़ी ने उसकी खोपड़ी में सात गोलियां मारीं…… “
इस पूरे गोलीकांड का चश्मदीद गवाह उक्त संवाददाता ने खुद अपने को बताया था.
आज अयोध्या मामले पर ना जाने कितने स्वयंभू ठेकेदार बातचीत कराने के लिए मैदान में उतर आए हैं… और तो और भाजपा नेतृत्व इस मामले को कोर्ट के पाले में डालने का प्रयास कर पलायन का भाव दिखाती नजर आती है…
लेकिन क्या ये मामला 1990 में कोर्ट में नहीं था… और क्या उस समय बातचीत के रास्ते बंद थे जो कि सैकड़ों कार सेवकों का रक्त और जीवन यूं जाया हुआ!
और तो और सर्वाधिक वेदनापूर्ण तो ये है कि ‘1200 सालों के हिन्दू सम्राट’ का मुकुट धारण कर राजगद्दी सम्हाले राजा को रामलला की छाया से भी मानो भय लगता है…
और वो मुल्लायम, राजन के कान में बड़े अपनेपन से फुसफुसाता नज़र आता है तो बलिदानियों की आत्मा की कितनी वेदना अनुभव करती होगी.