Inception के बहाने : जानिये माण्डुक्य उपनिषद

एक रोज लगा कोई मुश्किल काम किया जाए, तो हमने इन्सेप्शन (Inception) फिल्म की कहानी लिख देने की कोशिश की. इस फिल्म की कहानी इतनी उलझी हुई सी और क्लिष्ट है कि लिखकर देखने पर लगा सारे तार उलझे हुए हैं.

फिर हमने उसे तोड़ कर टुकड़े टुकड़े कर डाला. हिंदुत्व की विचारधारा पर यकीन रखने वाले लोग ऐसे किसी बड़े काम को छोटे टुकड़ों में तोड़कर करते हुए कम ही दिखते हैं.

डिवाइड एंड रुल तो फिरंगी हुक्मरानों की पॉलिसी थी. तोड़ कर छोटे हिस्सों में करने का फायदा ये हुआ कि कहानी लिखने और लिखे हुए को पढ़ने पर थोड़ी सी आसान लगने लगी. इतना सा हिस्सा एक बार में हम खुद समझ पाते हैं.

सबसे पहले इन्सेप्शन के हीरो कोब्ब की कहानी निकाल ली. शाब्दिक तौर पर देखें तो इन्सेप्शन (Inception) एक लैटिन शब्द से आया है.

लैटिन में incipere का मतलब, शुरुआत होता है. फिल्म की कहानी क्लिष्ट इसलिए है क्योंकि ये कुछ लोगों के सपने में दूसरा सपना देखने, फिर दूसरे सपने में तीसरा सपना देखने पर चलती रहती है.

लगातार एक सपने से दूसरे सपने में जाने के कारण, कौन सा सपना है और कौन सा सच है ये तय करना मुश्किल हो जाता है. एक सपने में किसी की मृत्यु हो जाए तो उसका अवचेतन मन-मस्तिष्क भी मर चुका होगा. सपने अवचेतन मन में ही चल रहे होते हैं, इसलिए मृत के अवचेतन यानि सपने से बाहर भी नहीं आ सकते.

ऐसे किसी मृत अवचेतन, या जबरन रोक दिए गए अवचेतन में फंसा आदमी कभी सपनों की दुनिया से बाहर नहीं आ सकेगा. वो सपनों की दुनिया में ही फंसा रहेगा और सोया हुआ शरीर कोमा में चला जाएगा.

ये फिल्म की धारणाओं में से एक है. फिल्म के किरदारों को जांचना पड़ता है कि वो सपने के अन्दर बुने किसी दूसरे-तीसरे सपने में हैं, या सपनों की जहाँ शुरुआत होती, उस जागृत अवस्था में हैं?

शुरुआत की तरफ जाने की वजह से फिल्म का नाम इन्सेप्शन है. फिल्म का नायक, कोब्ब ऐसा इकलौता आदमी है, जो किसी तरह से कभी अवचेतन में फंसकर भी बाहर निकलने में कामयाब हुआ हो. शुरुआत पर उसके वापस पहुँच जाने के कारण “इन्सेप्शन”.

फिल्म में कोब्ब सपनों में घुसकर जानकारी चुराने वाला एक चोर है, जो मिलिट्री की एक प्रायोगिक तकनीक का चोरी छिपे इस्तेमाल करने वाले लोगों के साथ काम करता है.

पहले कभी उसके पास एक लीगल बिज़नस था, लेकिन अब सरकार उसे अपनी बीवी के क़त्ल के इल्जाम में ढूंढ रही होती है. भगोड़ा कोब्ब अब गिरोहों के साथ मिलकर एक व्यापारिक प्रतिद्वंदी के राज दूसरे को बेचता रहता है.

कोब्ब हत्यारा भी नहीं, लेकिन पुलिस उसकी बात नहीं मानती. अपने बच्चों को उनकी दादी के पास छोड़कर आया है, दूसरे देशों में उनके दादा से मिलकर वो बच्चों के लिए उपहार भेजता भी दिखता है.

किसी तरह वो अपने परिवार अपने बच्चों के पास लौट सके यही उसका एकमात्र मकसद होता है और इसी लालच में उस से एक जापानी व्यापारी एक लगभग नामुमकिन काम करवाना चाहता है.

फिल्म की कहानी इसी से शुरू होती है. जिन लोगों के साथ मिलकर कोब्ब अपने इस आखरी कारनामे की टीम बनाता है उनमें से ज्यादातर के साथ वो पहले काम कर चुका है, ऐसा पता चलता है मगर क्या किया था ये नहीं बताते.

कोब्ब के अवचेतन में बार बार उसकी मृत पत्नी मल्लोरी आती है. वो हिंसक है और सबको मार डालना चाहती है लेकिन कोब्ब किसी को बताता नहीं कि असली कहानी दोनों के बीच की थी क्या?

उसके अवचेतन मन में उसकी पत्नी की यादें होने के कारण अब वो उतने कठिन सपने नहीं बुन पाता. उसके पुराने साथियों आर्थर और यामेस को वो ये सच बताना भी नहीं चाहता. लोग जो उसे महान मानते थे, उनके सामने अपनी कमजोरी कबूलने में उसे शर्म आती, अहंकार को चोट लगती. कुछ गड़बड़ तो है ये जानते हुए भी लोग उसकी झूठी प्रतिष्ठा को ठेस ना पहुंचे इसलिए चुप रह जाते हैं. आखिर एक सपने के जाल में नयी लड़की एरियाडेन उसे घेरकर सच्चाई का सामना करने को मजबूर करती है. अब कोब्ब सच कबूलता है और बताता है कि असल में हुआ क्या था.

कभी पुराने दौर में कोब्ब और उसकी पत्नी मल्लोरी ने मिलकर एक सपना बुना. सपने में एक मिनट में कई साल बीत सकते हैं, इसलिए कुछ ही मिनटों में वो पचास साल का सपना जी चुके थे. इस पचास साल के सपने में जो दुनिया दोनों ने मिलकर बनाई थी, उस से मल्लोरी वापस नहीं आना चाहती थी.

कोब्ब कहता था ये सच नहीं, सपना है, इस से बाहर आना चाहिए. आखिर कोब्ब जबरन सपना तोड़ता है. दुखी और नाराज मल्लोरी सपने के टूटने पर आत्महत्या कर लेती है, वो भी कुछ ऐसे कि वो हत्या लगे और इल्जाम कोब्ब पर आये. मल्लोरी की मौत के लिए कोब्ब कहीं ना कहीं जिम्मेदार था ये कबूलते ही उसके अंतर्मन से मल्लोरी का बोझ उतर जाता है.

अब सपनों में बुरी तरह फंसे हुए कोब्ब और उसके साथी, आसानी से मल्लोरी के छलावे को मारकर बाहर आ पाते हैं. फिल्म जहाँ ख़त्म होती है वहां कोब्ब अपने बच्चों के पास आया हुआ होता है. कब वो लोग सपनों की दुनिया में हैं, कब हकीकत में – जाग रहे हैं, इसकी जांच के लिए वो एक टोटका इस्तेमाल करते थे.

कोब्ब अपनी पत्नी का टोटका, एक लट्टू इस्तेमाल करता था. वास्तविकता का एक मिनट सपनों की दुनिया का कई साल होता, इसलिए सपनों में लट्टू घूमता ही रह जाता, गिरता नहीं. कोब्ब जांच के लिए लट्टू घुमाता तो है, लेकिन वो गिरा या नहीं ये देखने के लिए रुकता नहीं वो खेलने बुला रहे बच्चों की तरफ चल देता है.

इस लम्बी सी पोस्ट को अगर पढ़ लिया हो तो बता दें कि हम कोई साइंस या मनोवैज्ञानिक फिक्शन की कहानी नहीं बता रहे थे. फिल्म की कहानी के धोखे से फिर भगवद्गीता पढ़ा दी है. मुश्किल सी फिल्म और मुश्किल हिस्सा इसलिए क्योंकि भगवद्गीता को उपनिषदों का सार कहते कभी कभी आपने किसी को सुना होगा.

ये तुलना भगवद्गीता के ध्यान श्लोक से आती है, जहाँ श्रीकृष्ण की तुलना उपनिषद को दुह कर गीतामृत निकालने वाले से की गई है. आम तौर पर उपनिषदों को जहाँ वृहदाकार माना जाता है, वहीँ वास्तविकता में कई उपनिषद बहुत छोटे भी होते हैं. ऐसे ही छोटे उपनिषदों में से एक है माण्डुक्य उपनिषद. इसमें बारह श्लोक होते हैं.

माण्डुक्य उपनिषद के इन बारह श्लोकों पर गौड़पादाचार्य यानि आदिशंकराचार्य के गुरु के गुरु ने कारिका लिखी थी. इस कारिका पर फिर आदिशंकराचार्य का भाष्य आया. अब जब उसे हिंदी अनुवाद के साथ भी देखेंगे तो ये हज़ार पन्नों की कोई मोटी किताब नहीं होती.

अभी भी दो-ढाई सौ पन्ने जैसी ही है. इन बारह श्लोकों में मन-मस्तिष्क के चार स्तर बताये गए हैं. यानि जागृत, सुप्तावस्था (जहाँ सपने आयेंगे), गहरी नींद (जहाँ सपने भी नहीं आते) और अंतिम यानि तुरीय जहाँ नींद और शरीर की अवस्था में कोई अंतर नहीं रहता.

तुरीय में ये भी भान नहीं रहेगा कि आपके पास कोई और शरीर भी है. संस्कृत के जिन शब्दों-भावों का अंग्रेजी में अनुवाद नहीं किया जा सकता, ऐसे कई शब्द भी इन बारह श्लोकों को पढ़ने में मिल जाते हैं.

भगवद्गीता में अगर आठवें अध्याय का उन्नीसवां श्लोक देखें तो वहां ब्रह्मा की नींद और जीवन मृत्यु की बात होती है. वहां ये कहा जा रहा होता है कि ब्रह्मा जब नींद से जागते हैं तो कई प्राणियों के लिए जीवन शुरू होता है. वो जब सोते हैं और नींद में, स्वप्न में जाते हैं तो वही जीव जो थोड़ी देर पहले जीवित थे वो दूसरे जगत में प्रवेश कर जाते हैं.

आठवें अध्याय का ये श्लोक अकेला भी नहीं पढ़ा जाता. अक्सर इसे बताते समय 19वें से 22वें तक पांच श्लोक बता दिए जाते हैं. एक की नींद और सपना जैसे फिल्म में दूसरे के लिए वास्तविकता हो जाता है कुछ वैसे ही यहाँ ब्रह्मा की नींद और सपनों में किसी के वास्तविकता का भान बताया गया है.

समझने में दिक्कत आ भी रही हो तो पहले फिल्म देखिये फिर कोशिश कीजिये, उतना मुश्किल भी नहीं जितने से डराया जाता है. इंसेप्शन बच्चे भी देखते हैं, आपको समझ आ जाएगी.

बाकी ये जो हमने धोखे से पढ़ा डाला वो नर्सरी लेवल का है, और पीएचडी के लिए आपको खुद पढ़ना पड़ेगा ये तो याद ही होगा?

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