भारत से चाबहार तक माल लदा जहाज भेजना वास्तव में बहुत बड़ी घटना

परसों 30 अक्टूबर को भारत का एक जहाज भारत के कांडला बंदरगाह से सामान लेकर ईरान के चाबहार बंदरगाह की तरफ रवाना हुआ.

वहां से इसे ट्रकों से अफगानिस्तान भेजा जाएगा. भारत की ओर से अफगानिस्तान के लोगों की मदद के लिए 11 लाख टन गेहूं भेजा जाने वाला है और ये इसकी पहली खेप है.

यह खबर आपने पिछले 1-2 दिनों में पढ़ ही ली होगी. इसमें कुछ नया नहीं है और ऊपरी तौर पर इसमें कोई खास बात भी नहीं दिखती.

एक से दूसरे देश में व्यापार होना कोई नई बात नहीं है. लेकिन भारत से अफगानिस्तान में चाबहार के रास्ते माल पहुंचना वास्तव में बहुत बड़ी बात है.

आइये आज इसी विषय को देखते हैं.

अफगानिस्तान चारों तरफ से ज़मीन से घिरा हुआ देश है. इसकी सीमा कहीं भी समुद्र से नहीं लगती है. इसका अपना कोई बंदरगाह नहीं है.

दुनिया के अन्य देशों से व्यापार करना हो, तो अफगानिस्तान के पास सिर्फ एक ही विकल्प था- पाकिस्तान में कराची का बंदरगाह.

अफगानिस्तान के ट्रक वहां से माल लाद कर कराची तक लाते थे और यहां से जहाजों में भरकर वह सामान दुनिया के अन्य देशों को भेजा जाता था. इस कारण अफगानिस्तान का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पूरी तरह पाकिस्तान के नियंत्रण में था.

अफगानिस्तान का बहुत-सा व्यापार भारत के साथ होता है. उसका एक बड़ा हिस्सा अपने अमृतसर के पास वाघा सीमा से आता है. अफगान ट्रक पाकिस्तान से होते हुए भारत-पाकिस्तान की वाघा-अटारी सीमा तक आते थे और यहां से अफगानी सामान भारतीय ट्रकों में लादकर अपने देश में आता था.

लेकिन इसके बदले उन खाली ट्रकों में भारत का माल भरकर वापस अफगानिस्तान नहीं जाता था, बल्कि केवल पाकिस्तान का माल ही अफगानिस्तान जाता था. ऐसा क्यों? इसका जवाब पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच 2010 में हुए एक व्यापारिक समझौते में है.

2010 में पाकिस्तान और अफगानिस्तान ने आपस में व्यापार बढ़ाने के लिए एक द्विपक्षीय समझौता किया. इसका नाम है – अफगानिस्तान-पाकिस्तान ट्रांज़िट ट्रेड एग्रीमेंट (आप्टा).

इससे पहले 1965 में भी दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ था, लेकिन मैं इस लेख में उसकी चर्चा नहीं करूंगा क्योंकि वह 2010 में खत्म हो गया.

2010 का आप्टा समझौता वास्तव में अमरीका के दबाव में हुआ था. उस समय अमरीका का दखल अफगानिस्तान में वैसे भी बहुत ज़्यादा था, ये तो आप जानते ही हैं.

इस समझौते के अनुसार अफगानिस्तान और पाकिस्तान दोनों देश इस बात पर सहमत हुए कि वे व्यापारिक उद्देश्य के लिए एक-दूसरे को अपने बंदरगाहों, हवाई अड्डों, सड़कों और रेलमार्गों का उपयोग करने देंगे. लेकिन किसी तीसरे देश को यह सुविधा नहीं मिलेगी.

इस समझौते में इस बात का विशेष उल्लेख किया गया था कि अफगानिस्तान के ट्रक अपना सामान वाघा सीमा से भारत भेज सकते हैं, लेकिन भारत का सामान पाकिस्तान होते हुए अफगानिस्तान नहीं जाने दिया जाएगा.

इसका परिणाम ये हुआ कि अफगानिस्तान से तो भारत में बड़ी मात्रा में सामान आता था, लेकिन भारत से बहुत कम मात्रा में ही सामान भेजा जा सकता था. यह असंतुलन वास्तव में बहुत ज्यादा था.

अफगानिस्तान के कुल निर्यात का लगभग 46% सामान अकेले भारत में आता था, लेकिन अफगानिस्तान के कुल आयात में भारत की हिस्सेदारी केवल 2 प्रतिशत थी.

मतलब हम अफगानिस्तान से हर साल लगभग 14 अरब रुपये का सामान खरीदते थे, लेकिन केवल 4 अरब रुपये का माल ही अफगानिस्तान को बेच पाते थे. सबसे ज्यादा वहां ईरान, पाकिस्तान, चीन और कज़ाकिस्तान से सामान आता था.

इस समझौते से एक तरफ तो भारत और अफगानिस्तान को तो आपसी व्यापार में दिक्कत आ रही थी, लेकिन दूसरी तरफ इसके द्वारा पाकिस्तान को अफगानिस्तान के रास्ते पूरे मध्य एशिया तक जाने का रास्ता मिल गया था और पाकिस्तानी सामान अब अफगानिस्तान होते हुए ईरान, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान तक जा सकता था.

लेकिन अफगानिस्तान ने भी समझौते में यह शर्त लगा दी थी कि पाकिस्तान इन देशों को अफगानिस्तान के रास्ते अपना माल भेज तो सकेगा, लेकिन वहां से मंगवा नहीं सकेगा.

इसके अलावा भी इसमें कई और झमेले थे. दोनों देशों के बीच सामान की तस्करी को रोकने के लिए इसमें बहुत-सी शर्तें थीं, जैसे बैंक गारंटी, सामान की जीपीएस द्वारा निगरानी, माल और ट्रकों का बीमा करवाना आदि.

ये सारे नियम कभी भी ठीक से लागू नहीं किए जा सके और दोनों देशों के बीच खींचतान चलती रही. इस कारण दोनों ही देश अपने लिए अलग रास्ते खोज रहे थे.

इससे अलावा एक घटनाक्रम और भी चल रहा था. ईरान का एकमात्र समुद्री बंदरगाह पाकिस्तान की सीमा पर चाबहार में है. इसके बारे में मैं एक पूरा लेख ही लिखने वाला हूं, इसलिए यहां इसे बहुत संक्षेप में समेट रहा हूं.

इस बंदरगाह के विकास के लिए भारत और ईरान के बीच 2003 से ही चर्चा चल रही थी. लेकिन ईरान पर लगे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण बात अटकी हुई थी.

जनवरी 2016 में अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध हट गए. मई 2016 में भारतीय प्रधानमंत्री ईरान की यात्रा पर गए थे. भारत के विपक्षी दलों ने भले ही 2014 से ही विदेश यात्राओं के लिए भारतीय प्रधानमंत्री का खूब मज़ाक उड़ाया, लेकिन उन यात्राओं में क्या बातें हो रही थीं और उनसे भारत को कितना लाभ हुआ, इस पर शायद बहुत कम ही लोगों ने ध्यान दिया होगा. खैर!

मई 2016 में भारत और ईरान ने इस बंदरगाह को साथ मिलकर विकसित करने के लिए समझौता किया. इससे भारत को पूरे मध्य एशिया तक सीधे पहुंचने में मदद मिलेगी. इसके अलावा भारत से यूरोप तक माल भेजने में लगने वाला समय और खर्च भी इसके कारण आधा हो जाएगा.

लेकिन अफगानिस्तान के संदर्भ में भी इसका एक बहुत बड़ा लाभ है. कराची और अफगानिस्तान की तुलना में चाबहार और अफगानिस्तान की दूरी 800 किमी कम है. इसलिए उसी यात्रा के दौरान ईरान, भारत और अफगानिस्तान ने मिलकर यह समझौता भी किया कि भारत और अफगानिस्तान अब इसी बंदरगाह के रास्ते व्यापार करेंगे.

इससे पाकिस्तान को तगड़ा झटका लगा है. केवल कराची बंदरगाह के माध्यम से ही व्यापार होने के कारण अफगानिस्तान के व्यापार पर पूरी तरह से पाकिस्तान का नियंत्रण था. अब वह खत्म हो गया.

अफगानिस्तान भारत को माल बेचता तो था, लेकिन भारत से माल लेने में उसे दिक्कत होती थी, अब वो खत्म हो जाएगी. तीसरा उसे पाकिस्तान से माल खरीदना पड़ता था, जिसमें पाकिस्तान का फायदा और भारत का नुकसान हो रहा था.

अब भारत का माल ही अफगानिस्तान जाने लगेगा, तो वो लोग पाकिस्तान का सामान क्यों खरीदेंगे? इसलिए पाकिस्तान के लिए यह भी बड़ा नुकसान है.

इस तरह एक नया बंदरगाह बनने के कारण न सिर्फ भारत और अफगानिस्तान के बीच व्यापार बढ़ेगा, बल्कि मध्य एशिया और यूरोप तक पहुंचने के लिए भारत के लिए नए रास्ते खुलेंगे.

इसके अलावा ईरान के साथ कुछ और समझौते भी हुए हैं, जिसके कारण पाकिस्तान का महत्व भी कम हो रहा है और शक्ति भी. इन सबके अलावा चीन को भी इससे कुछ नुकसान हो रहा है. इन सब विषयों पर आगे कभी बात करेंगे. यह लेख वैसे ही बहुत लंबा हो चुका है.

लेकिन एक बात का उल्लेख करना आवश्यक है. पिछले हफ्ते अफगानिस्तान के राष्ट्रपति ने पाकिस्तान के साथ अपना यह व्यापारिक समझौता खत्म करने की भी घोषणा कर दी है!

शायद अब आप यह तो समझ ही गए होंगे कि ऊपर मैंने ऐसा क्यों कहा था कि भारत से चाबहार तक माल लादकर एक जहाज भेजना वास्तव में बहुत बड़ी घटना है, यह केवल एक देश से दूसरे देश तक सामान भेजने की कोई सामान्य घटना नहीं है!

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