सारा मामला टाइमिंग का है. अभी डेढ़ महीना पहले की ही बात है. दादा जी के तेरहवीं के दिन शाम को लोग भोजन के लिए आमंत्रित थे. एक कोई कुँवर उदय सिंह आये हुए थे. मुझे अपने पास बुलाये और किसी जमींदारी रियासत का नाम लेकर बोले कि इसका नाम सुने हो, वह मेरा है.
मैंने विनम्रतापूर्वक कहा कि नहीं, मुझे नहीं पता है. फिर दंभ से बोले कि मेरा नाम तो सुने होंगे, मैं कुँवर उदय सिंह हूँ. मैंने सचमुच उनका नाम नहीं सुना था. मैंने विनम्रतापूर्वक उन्हें ये बात बता दिया. उनका तो एकदम से इगो हर्ट हो गया और गुस्से में मेरा उपहास उड़ाने की कोशिश करने लगे. मैं भीतर से तिलमिला गया. वो मेरे पिता जी का मित्र था और उस दिन अंकल का गेस्ट था, इस कारण मैं अपमान का जहर पी कर शान्त बैठा रहा.
वो मुझे अभी जलील कर ही रहा था कि वहाँ बंगला फिल्म के एक डायरेक्टर मुझसे मिलने आ गये. कुँवर साहब ये सब गौर से देख रहे थे कि तभी मेरे पिता जी के एक अरबपति मित्र राजा बाबू वहाँ पहुँच गये. कुँवर साहब दिन पर दिन जर्जर हो रही रियासत के प्रतिनिधि थे, इसलिए उनके पास सिवाय दंभ के कुछ बचा नहीं था. लेकिन राजा बाबू नव-सामंत हैं, इन बाबूसाहब को अपने बाप-दादों से विरासत में कुछ नहीं मिला था. इन्होंने अपने पुरुषार्थ से ये दमकता हुआ अरबों का साम्राज्य खड़ा किया है. इसलिए इनके आते ही मेरे परिचितों के साथ कुँवर साहब भी इनके आवभगत में लगे हुए थे. इनसे मैं पाँच साल पहले मिला था. चूंकि मैं डायरेक्टर साहब से बातें कर रहा था, इस कारण राजा बाबू से मिलने नहीं गया.
राजा बाबू खुद मेरे पास आकर मेरा हाथ पकड़ लिये और कुँवर साहब से पूछने लगे कि आप राहुल बाबू को जानते हैं कि नहीं, ये अपने स्वर्गीय नेता जी के सुपुत्र हैं और बहुत विद्वान आदमी हैं. कुँवर साहब की हालत देखने जैसी थी, जो व्यक्ति धन और सामाजिक प्रतिष्ठा में उनसे कई गुणा श्रेष्ठ है वो उसकी तारीफ कर रहा है जिसकी ये थोड़ी देर पहले उपहास उड़ा रहे थे.
भगवान का इससे भी मन नहीं भरा. उसी महत्वपूर्ण पाँच मिनटों के भीतर वहाँ बंगाल के संघ के धर्म जागरण प्रमुख विश्वनाथ साहा जी मुझसे मिलने पहुँच गए और वो जैसे ही मेरी माता जी को देखें तो बिलकुल से जमीन पर झुक कर उनके चरणस्पर्श करने लगे. अब तक कुँवर साहब का दंभ सातवें आसमान से जमीन पर आ गया था.
मैंने कुछ भी नहीं किया…… वहाँ कुछ हुआ भी नहीं…… लेकिन हम दोनों के ग्रहों के स्तर पर एक जबरदस्त जंग चल रही थी, जो कि भौतिक रूप से बिलकुल नहीं दिख रही थी. मेरे ग्रहों ने मेरा पैर उठाकर उस बदतमीज़ दंभी के सिर पर रख दिया. अब वो कभी भूलकर भी उस ऐंठन में बात नहीं कर पायेगा. हालांकि ये सब माया है. मैं इस प्रकार किसी को भी अपमानित नहीं करना चाहता, लेकिन मैं अपमानित होना भी नहीं चाहता. और जब कोई दंभी अपने मिथ्या दंभ का प्रदर्शन करता है तो यह एक जनसामान्य के लिए पीड़ादायक होता है. ऐसे दंभी का मानमर्दन सभी को एक सुखद अनुभूति प्रदान करता है.
मैं बात कर रहा था टाइमिंग का. मैं चाह कर भी कभी ऐसा टाइमिंग सेट नहीं कर सकता था कि ये तीनों दिग्गज उसी पाँच मिनट में मेरे घर में पहुँचे और कुँवर साहब के खिलाफ ऐसा विपरीत माहोल बना दें. उस समय का ग्रहों का गोचर मुझ पर मेहरबान था, इस कारण ये सेटिंग्स अपनेआप हो गयी.
अभी चार दिन पहले मेरा शनि का ढइया आरंभ हुआ है, शनि धनु राशि में केतु के नक्षत्र पर से गोचर कर रहा है और गंडमूल में होने के कारण खतरनाक है. सूर्य तुला राशि में नीच का तो है ही, ऊपर से राहु के नक्षत्र में गोचर कर रहा है. मेरा लग्नेश शुक्र बारहवें घर में नीच का चल रहा है और बारहवें का स्वामी बुध आपस में स्थान परिवर्तन करके लग्न में बैठा है.
इन सब स्थितियों ने अचानक से मानसिक टेंशन बढ़ा दिये हैं. जो गुनाह मैंने किया ही नहीं है, उसके लिए सजा सुना दी गयी है. इस बार टाइमिंग मेरे प्रतिद्वंद्वियों की तरफ से बैटिंग कर रहा है. मैं सबसे लड़ सकता हूँ लेकिन इस टाइमिंग के आगे बिलकुल असहाय हूँ. चोटिल हूँ, पर ग्रहों के मारने के स्टाइल पर फिदा हूँ. यहाँ कौन किसको मार सकता है? सभी वक्त के द्वारा मारे जा रहे हैं.