भारत को भारत होने का गर्व महसूस कराना है तो बदलिये देश की शिक्षा व्यवस्था

किसी भी राष्ट्र की मूल शिक्षा ही उसकी मूल सभ्यता और संस्कृति पर गर्व महसूस करा सकती है. मूल शिक्षा का अभाव उस देश को उसकी संस्कृति और सभ्यता पर शर्म ही महसूस करायेगी जैसा कि आज भारत में होता जा रहा है.

आज देश में हर जगह एक भद्दा मज़ाक चलता है कि देश में करोड़ों केस पेंडिंग हैं लेक़िन सुप्रीम कोर्ट को जलिकट्टू, दिवाली, होली जैसे त्योहारों पर निर्णय देने से ही फ़ुर्सत नहीं है, वहीं आज वामपंथी विचारधारा के पोषित तत्व लिबरल भी हर हिन्दू संस्कृति, त्यौहार तथा प्रथाओं के विरुद्ध खड़े हैं.

आज भी देश में पढ़े लिखे लिबरल को अपने देश के प्रति गर्व का भाव प्रकट नहीं होता, आज भी देश हिन्दू राष्ट्र होने के नाम पर कतराता है. इन सभी देश विरोधी मानसिकताओं के लिये मैं भारत की शिक्षा व्यवस्था को जिम्मेदार ठहराता हूँ, क्योंकि आज भी देश वासियों को ऐसी शिक्षा नहीं दी जाती जो देश के प्रति अभिमान का भाव जगा सके.

सदियों पहले जिस देश में पढ़ने के लिये लोग विदेश से तक्षशिला और नालंदा आते थे उस देश की शिक्षा को इस तरह दूषित किया गया कि आज सही मायने में किसी भी भारतीय को प्राचीन ज्ञान और देश का इतिहास नहीं पता है.

आधुनिक शिक्षा के नाम पर भारत को अपनी संस्कृति और सभ्यता से विहीन करने का जो षड्यंत्र अंग्रेजों ने बनाया था वो आज लगभग पूर्ण हो चुका है. आधुनिक शिक्षा के षड़यंत्र को मैं पाँच चरणों में बांटता हूँ.

जिसमें पहला चरण (1784-1835) – भारतीय संस्कृति को नष्ट करने के लिये जनवरी 1784 में विलियम जोन्स और उसके साथियों ने एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना की जिसमें 1829 तक कोई भी भारतीय सदस्य नहीं था. इस संस्था का उद्देश्य भारत में बाइबिल की शिक्षाओं को फैलाना तथा पाश्चात्य संस्कृति को भारतीय संस्कृति से उच्च स्थान दिलाना था.

इस संस्था ने ही सर्वप्रथम भारतीय वेद पुराणों का अध्ययन कर उन्हें अपने मनवांछित तरीक़े से अंग्रेजी में ट्रांसलेट कर भारत की प्राचीन शिक्षा व्यवस्था को समाज के लिये हानिकारक बताया. विलियम जोन्स और उसके साथियों ने ही वेदों पुराणों औऱ स्मृतियों का अध्ययन कर, उनका ग़लत अनुवाद कर भारत में जातीय भेदभाव के बीज डाले.

द्वितीय चरण (1835-1854) – इस चरण को पश्चिमी शिक्षा का मैकाले का मिनट्स ऑन एजुकेशन (minutes on education) भी बोलते हैं. इसमें मैकाले द्वारा 2 फ़रवरी 1835 को नई शैक्षिक नीति प्रस्तुत की गई जिसमें शिक्षा कोष के समस्त धन को मात्र अँग्रेजी शिक्षा पर खर्च करना था औऱ अँग्रेजी को सरकारी भाषा बनाना था.

मैकाले जब भारत आया तो उसने देखा भारत में लोग यूरोप से ज़्यादा धनी हैं. तब मैकाले ने भारतीय समाज को अपने अनुरूप ढालने का षड्यंत्र रचा जिसमें उसने शिक्षा व्यवस्था को अपने अधीन लिया.

मैकाले मानता था कि बाइबिल आधारित अँग्रेजी शिक्षा के प्रसार से भारत में एक ऐसे समुदाय का उदय होगा जो देखने मे भारतीय होंगे परन्तु उनके विचार अंग्रेज़ो के ग़ुलाम होंगे. यह नया समुदाय न सिर्फ़ अंग्रेजी शासकों के प्रति वफ़ादार होगा बल्कि ये भारतीय परम्पराओं को नष्ट कर पश्चिमी संस्कृति भारत में लागू करेगा.

मैकाले के इस प्रस्ताव को, जिसमें अंग्रेजी को सरकारी भाषा घोषित करने का अनुदेश था, विलियम बैंटिक ने 7 मार्च 1835 को लागू किया. इस तरह भारत में अंग्रेजी अब सरकारी भाषा हो गई. मैकाले के इस उद्देश्य को पूरा करने के लिये बम्बई, बंगाल, मद्रास, इन तीन प्रेसिडेंसियों में हर जगह अँग्रेजी स्कूल औऱ कॉलेज खोले गये.

मैकाले की (downward filtration theory) व्यवस्था के अंतर्गत मात्र उच्च वर्ग (यहाँ वर्ग जातीय आधार पर न होकर आर्थिक आधार पर था) औऱ अंग्रेजों के चाटुकार लोगों को ही अंग्रेजी शिक्षा दी जाती थी. मैकाले का मानना था कि यही वर्ग अपने निम्न वर्ग को शिक्षा देगा जो आगे आकर अंग्रेजों के प्रति वफ़ादार बनेंगे.

तीसरा चरण (1854-1900) – इस शिक्षा व्यवस्था को वुड्स डिस्पैच के नाम से भी जाना जाता है. इसका उद्देश्य मैकाले की व्यवस्था (downward filtration theory) को निरस्त कर सभी समुदायों को बाइबिल आधारित शिक्षा और आधुनिक विज्ञान का ज्ञान देना था.

इसके लिये 1855 में बम्बई, बंगाल, मद्रास, पँजाब और भारत के अन्य प्रांतों में स्कूल कॉलेज और विश्व विद्यालय खोले गये तथा 1897 में इंडियन एजुकेशन सर्विस का गठन किया जिससे अब अंग्रेज़ो ने भारतीय शिक्षा पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगा दिया.

लॉर्ड रिपन ने ये कहते हुए प्रतिबन्ध लगाया कि भारतीय शिक्षा मात्र आडंबर औऱ जातीय भेदभाव को बढ़ावा देती है इसलिए भारत में मात्र अब अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था ही लागू होगी. इस अंग्रेजी व्यवस्था के वाहक कई तथाकथित समाज सुधारक भी हुए जिन्होंने भारतीय संस्कृति के हर एक पहलू को आडम्बर घोषित करते हुए नष्ट किया. ये समाज सुधारक ईसाई मिशनरियों के अनुरूप काम करते थे.

चौथा चरण (1900-1947) – इस चरण में कई नये कमीशन बैठाए गये. शिक्षा व्यवस्था में कुछ सुधार हुए तो कहीं कहीं इसका विरोध भी हुआ. जैसे लाला लाजपत राय तथा गाँधी ने इस शिक्षा व्यवस्था को राष्ट्र के विरुद्ध बताया. उन्होंने कहा अब भारत मे नई व्यवस्था लागू होनी चाहिये जो मातृभूमि के प्रति प्रेम को प्रोत्साहित करे औऱ सभी को देश के प्रति वफ़ादार बनाये परंतु यहाँ लालाजी तथा गाँधी की कोई माँग नहीं मानी गयी.

इसलिए गाँधी ने अब मौलिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये 1937 में वर्धा में एक राष्ट्रीय शिक्षा नाम से सम्मेलन किया जिसके अध्यक्ष डॉ ज़ाकिर हुसैन बनाये गये. लेक़िन इस शिक्षा व्यवस्था में भी, अंग्रेजों की शिक्षा व्यवस्था की तरह, भारत में सभी भारतीयों को गर्व करने का अनुभव नहीं मिला. गाँधी की इस व्यवस्था ने लोगों को अहिंसक भीरु औऱ कायर ज़रूर बना दिया.

पंचम चरण (आजादी के बाद से) – मैकाले ने जैसा सोचा था वही अंग्रेजी मानसिकता के ग़ुलाम अब भारत की शिक्षा व्यवस्था के तारणहार बने.

इस समय को भारतीय शिक्षा व्यवस्था का सबसे शर्मनाक समय मान सकते हैं क्योंकि इसी समय वामपंथी विचारधारा से पोषित प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू, जो अंग्रेजों के हमेशा से चहेते थे, ने मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को प्रथम एजुकेशन मिनिस्टर बनाया तथा मौलाना अबुल कलाम के सानिध्य में वामपंथी विचारकों को शिक्षा का प्रारूप तैयार करना तथा स्कूलों कॉलेजों के कोर्स डिसाइड करने का ठेका दे दिया गया.

इन अंग्रेजों के ग़ुलाम वामपंथियों ने विलियम जोन्स की तरह ही भारत के इतिहास को तोड़ मरोड़ कर देश के समक्ष पेश किया, जैसे मकदूनिया का अलेक्ज़ेंडर (सिकन्दर) झेलम नदी के तट पर पुरुवँशी पोरस से हार कर भागा था जिसे वामपंथी लेखकों ने रहमदिल सिकन्दर बताते हुए पोरस को हारा हुआ घोषित किया औऱ सिकन्दर द्वारा पुनः राज्य को पोरस को दान दे दिया बताया गया.

ऐसे ही वामपंथी लेखकों ने अकबर को महान बताने के लिये राजा हेमू (हेमचन्द्र विक्रमादित्य) को अय्याश औऱ मानसिक विकलांग घोषित किया गया.

ऐसे लाखों उदाहरण हैं जिसमें अंग्रेज़ो औऱ उनके ग़ुलाम वामपंथियों ने भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता को हमेशा से ही दोयम दर्जे का घोषित किया. जिसका परिणाम आज के लिबरल सेक्युलर समाज में देखने को मिल रहा है. आज ये लिबरल ख़ुद को भारतीय नहीं मानते.

वास्तव में देखा जाये तो भारतीय शिक्षा प्रणाली सबसे ज़्यादा ग़ुलाम रही है. सबसे पहले मुगल आक्रमणकारियों ने इसे दूषित किया. फिर जो बची उसे अंग्रेजों ने तोड़ दिया. जब यह अंग्रेज़ो के हाथ से निकली तो अँग्रेजी मानसिकता के ग़ुलाम वामपंथियों ने इसे लगभग नष्ट कर दिया.

अब जो थोड़ी सी भारतीय शिक्षा बच गयी है उसके पुनरुत्थान का समय आ गया है. अब पुनः सही इतिहास को लिखा जाये, जिससे देश को भारत होने पर गर्व हो. अगर वास्तव में मोदी सरकार आज देश को पुनः गौरव का भान कराना चाहती है और सभी देशवासियों को देश के प्रति प्रेमी बनाना चाहती है तो उन्हें जल्द ही देश की शिक्षा प्रणाली बदलनी होगी.

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