आज सिर्फ कुँवारी कन्याओं से बात की जाएगी. देखिये, सिन्दूर, बिन्दी, चूड़ी, बिछिये वगैरह आप पहनें या न पहनें आपकी इच्छा! पर मैं कुछ बातें आपको बताना चाहती हूँ.
महिला सशक्तिकरण!! आखिर है क्या ये सशक्तिकरण? पुरुषों पर अपनी सत्ता चलाना ही न! और अपनी शर्तों पर अपना जीवन जीना!
जो सिन्दूर, बिंदी आदि लगा कर पति की दासता स्वीकार करने का अभिनय है ना, ये बड़ा मजेदार है. वैसे ही जैसे शेर को पिंजड़े में कैद करना हो तो बकरी बांध कर शिकारी मचान पर प्रतीक्षा करता है वैसे ही! सिंदूर की दमक, चूड़ियों और पायल की छनछनाहट, बिंदी का सौंदर्य वही बकरी है. आप शिकारी हैं और आपका पति शेर…
बस थोड़ी सी प्रतीक्षा और शेर पिंजड़े में कैद! बेचारा शेर अपने शेरत्व पर मोहित ही रह जाता है और आप हो जाती हैं ring master!!
मजेदार ये है कि आपके पास अपने शेर को इच्छाधारी रूप देने की शक्ति भी होती है. जब चाहें तब ATM, जब चाहें तब सुरक्षा प्रहरी और जब चाहें तब एक प्यार करने वाला प्रेमी!!
अब उनकी बात जो पुरुष के पुरुष भरे अहम को लात मार कर स्वयं को सशक्त समझती हैं, वे आरंभ में स्वतंत्रता के प्रतिबिम्ब से प्रसन्न महिलाएं! मेरा शरीर मेरी मर्जी का नारा देती छुट्टा बकरियां कुलांचे मारतीं प्रसन्न होती जीवन के मध्यान्तर से पहले ही थोड़ी थोड़ी तमाम शेरोँ का ग्रास बनती अंत में स्वतन्त्रता के अट्टहास के बीच अकेली खड़ी होती हैं.
न सम्बन्ध बचते हैं न शरीर का वह सौंदर्य जिस पर मर्जी चलायी जा सके.
और सिन्दूर, बिंदी वाली तब भी “सुनते हो, कहाँ मर गए?” कहती हुई शक्ति प्रदर्शन का कोई मौका नहीं छोड़तीं. बच्चों के रूप में सुरक्षा प्रहरियों में वृद्धि हो चुकी होती है तो सशक्तिकरण में उत्तरोत्तर वृद्धि चलती ही रहती है.
मूल्य हर तरह की शक्ति का चुकाना पड़ता है, शक्ति अर्जित करने के लिए श्रम तो करना ही पड़ता है. आप तय कीजिये कि कौन सा श्रम पसंद करेंगी? एक लक्ष्य पर या स्वयं लक्ष्य बन कर?
It’s your choice baby!!
– ज्योति अवस्थी
कुम्हारों की मुस्कराहट और थैंक्यू दीदी में ही है मेरे 15 लाख