काम वासना को द्वार पर छोड़कर ही प्रवेश पा सकोगे मंदिर में

Khajuraho

बॉबी देओल अभिनीत एक फ़िल्म आई थी “बिच्छू”! .. इसमें विलेन थे आशीष विद्यार्थी .. इसमें वो एक जगह डायलॉग बोलते है कि “जब आँखों के सामने खुला पैसा और खुली औरत रहती है न तो आदमी का दिमाग काम करना बंद कर देता है, सुन्न पड़ जाता है!”
ये डायलॉग मुझे अब भी न जाने क्यों बार-बार जेहन में आते रहता है.

तो वहीं एक कवि जी ये कह गए…

“काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ |
सब परिहरि रघुबीरहि भजहूँ भजहिं जेहि संत ||”

जब इस्कूल में था तो हमारे गुरु जी एक बार बूढ़ा बाबा महादेव जी का वो प्रसंग सुना रहे थे जब उनकी तपस्या भंग करने को कामदेव और रति आते हैं.… टीवी सीरियल्स में देखा कि कामदेव और रति आते हैं और नृत्य करने लगते है फिर बाण छोड़ते हैं और महादेव जी क्रोधित हो के तीसरे नेत्र से उन्हें भस्म कर देते हैं.

लेकिन गुरु जी ने पूरा विवरण दिया वहाँ का कि क्या हुआ रहा वहाँ पर… जब कामदेव कैलाश में आते हैं तो पूरे कैलाश में ‘काम’ छा जाता है… जितने भी जीव-जंतु होते हैं सब में काम का प्रसार होने लगता है तीव्रता से.. सब व्याकुल होने लगते हैं मिलन को… शिवगण भी काम के प्रभाव में आने से नहीं बच पाते हैं… हर तरफ बस काम ही काम.. सब जोड़े एक-दूसरे में लगे हुए हैं.. !! …

पार्वती जी जो शिव जी की पूजा करने हेतु रोज कैलाश को आती थी पूरे सोलह-श्रृंगार कर के आती थी, राजकुमारी जो थी.. ! .. जब कामदेव आते हैं तो पार्वती जी भी उनके प्रभाव से बच नहीं पाती है.. मिलन के भाव तेज होने लगते हैं…और काम-रति के नृत्य के साथ-साथ ही प्रभाव और भी गहरा होते जाता है.. जब स्तिथि विकट होने लगती है तभी महादेव जी अपना तीसरा नेत्र खोलते हैं कामदेव को भस्म कर देते हैं… कामदेव भस्म हो राख के ढेर में तब्दील हो जाता है. .. कैलाश तब जा के शांत होता है… और महादेव जी जब वहाँ से उठते हैं तो पार्वती जी को राख की ओर इशारा करते हुए कहते है “हे देवी! जिस ‘काम’ के बदौलत आप हमें पाना चाहती है, देखो वो राख का ढेर बन के पड़ा हुआ है!!”

तब जा के पार्वती जी को भान होता है कि अगर महादेव को पाना है तो मुझे काम को पार करना होगा… और तब पार्वती जी सारे श्रृंगार को छोड़-छाड़ के तपस्विनी बन शिव जी की आराधना में लीन हो जाती है. और कठोर तपस्या के बाद ही शिव को पाती है.

चलिये कुछ दूसरी ओर भी चलते हैं…

जब कोई भी सत्य की तलाश में, ईश्वर की तलाश में, प्रभु की खोज में, मनोवांछित फल की तलाश में तपस्या में लीन हो ढूंढ़ने का प्रयास करता है तब-तब इंद्र को अपनी सिंहासन की चिंता सताने लगती है.. और तब-तब वह उर्वशी, मेनका, रंभा आदि अप्सराओं को भेज कर उनकी तपस्या भंग करने को भेज देता है.

अब सोचने वाली बात है कि इतनी शक्तियों का स्वामी होते हुए भी इंद्र अप्सराओं का ही सहारा क्यों लेता था? क्यों उसे अपनी शक्तियों पे भरोसा नहीं था ? उनकी देव-मंडली में तो एक से एक योद्धा थे फिर क्यों अप्सराओं का सहारा लेते थे?? क्योंकि वही कि ‘काम’ सबसे कमजोर पक्ष है. यह किसी भी शक्ति को छिन्न कर सकती है और इससे बच पाना बहुत ही मुश्किल और दुष्कर कार्य… ऋषि विश्वामित्र, आचार्य शुक्राचार्य, राजा पुरुरवा आदि-आदि भी न बच पाए इससे तो फिर अन्य का क्या सोचे!

काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार में क्रमांक में सबसे पहला नम्बर काम का ही है. .. अगर जितेंद्रिय हो, काम के ऊपर संयम है तो सत्य, ईश्वर को पाने का ये पहला सौपान होगा… काम आधार है जीवन का लेकिन काम में वासना होना नहीं माँगता… काम जब वासना में परिणत होने लगती है तब आप उतना ही कमजोर और ईश्वर से दूर होते जाते हैं.. और आसुरी शक्ति के प्रभाव में आने लगते हैं… जिनकी कमजोरी वासना रही है वो असुर ही रहे हैं.. और उनके विनाश का कारण भी यही वासना ही रही है.

भगवान, प्रभु, ईश्वर को मानते हो, उन्हें पाने की इच्छा है तो काम पर विजय और संयम होना अनिवार्य है.

अक्सर मन में ख्याल आता कि ये बड़े-बड़े मन्दिर एक दुर्गम यात्रा के बाद ही क्यों होते है ?? कुछ खास वजह इसके पीछे?

तो जब हम भगवान के दर्शन हेतु एक जगह से चलते हैं तो एकदम से तरोताजा व फ्रेश.. आस-पास हरा-भरा.. टापा-टापनी भी शुरू… कहीं न कहीं वो काम का भाव रहता ही रहता है… लेकिन जब यात्रा शुरू होती तो यात्रा के साथ-साथ काम भाव गौण होते जाता और दर्शन की इच्छा प्रबल! .. और मन्दिर पहुँचते-पहुँचते केवल और केवल दर्शन की ही अभिलाषा शेष रह जाती है… आस-पास कौन स्त्री है कौन पुरुष है कोई भाव नहीं. बस दर्शन करने है मतलब करने है.

बोला जाता कि अगर सत्य के मार्ग पे चलते हो, ईश्वर के मार्ग पे चलते हो तो उस मार्ग में बहुत ही बाधाएं आयेगी, काँटें आएंगे, अड़चन आएगी लेकिन आपको कभी विचलित नहीं होना है… लेकिन ये बाधाएं, कांटे और अड़चन कौन? .. तो सबसे प्रथम पंक्ति में काम!! .. अगर इनसे पार हुए तो बाकि के चार बाद में.

महान तपस्वियों के लिए तो इंद्र साक्षात अप्सरा ही भेज देता था, लेकिन एक आम मनुष्य के लिए जो घर-गृहस्थी के साथ-साथ ही प्रभु का ध्यान करता हो या करना चाहता हो उनके लिए क्या??

आज जितने भी प्रमुख मंदिर हैं वहाँ क्या माहौल बनता जा रहा है? .. धाम, तीर्थस्थल कम और हनीमून प्लेस ज्यादा बनता जा रहा है… मन्दिर दर्शन तो बस बहाना भर है, असल तो गर्लफ्रैंड है और मौज मस्ती. और जिनकी नहीं है वो वहाँ तलाशने जाते हैं और नयनसुख लेने. तो, भगवान दर्शन किधर को है? .. भक्ति-भाव किधर को है? अन्तःपटल में भक्ति भाव ज्यादा है या काम है? काम की अधिकता है तो दर्शन भाव ही क्यों फिर?

ये अभी का सिनारियो है… पुराने समय में इसको जरा और भी कठिन बनाया गया जो कि अब भी है… अब तो मन्दिर दर्शन कम और कुछ और ही देखने जाते हैं. .. इन मंदिरों में विभिन्न प्रकार के संभोग के आसन दिखाए गए हैं… क्यों उकेरे गए भला इसको?? …

ऊपर इसी का वर्णन है. .. एक बाधा एक अड़चन मूर्ति के माध्यम से ही सामने रख दिया गया. .. इन्हें देखकर आपके मस्तिष्क पे क्या प्रभाव पड़ा ?? काम जागृत हुई ?? .. मिलन की इच्छा जागृत हुई ?? पार्टनर की याद आने लगी ?? .. क्या हुआ ?? .. इसी काम भाव को लेकर अंदर दर्शन करने को जाएंगे आप? अंदर आप भगवान की आराधना कर रहे होंगे या आपके मन-मस्तिष्क दिलो-दिमाग में बस संभोग के वो आसन दौड़ रहे होंगे? और जल्दी से वहाँ से निकलने को मन कुलबुला रहा होगा?

खुद से ही विचार कीजियेगा .. मन्दिर के अंदर भगवान को कितना समर्पित कर पा रहे है आप??
पंच-विकार में से पहला नम्बर काम का ही है… और काम को लिए प्रभु भक्ति और प्राप्ति की अभिलाषा? भला कैसे?

कैसे विजय पाए इसके ऊपर आप?

आप डायबिटीज के पेशेंट है और मीठा आपकी बहुत बड़ी कमजोरी. .. सामने एक से एक मीठे के आइटम्स रख दे कोई तो कैसे कंट्रोल कीजियेगा आप? डायबिटीज के दवाई खाने है या डायबिटीज को बढ़ावा देना है?

भाव क्या है ? … काम भाव लिए वशीभूत हो प्रभु भक्ति?

आपके काम के ऊपर संयम की परीक्षा हेतु ही ये मूर्तियां उकेरी गई. .. एक छोटी सी बाधा क्रिएट की गई .. अगर इसके ऊपर भी आप पार नहीं हो पाते हो तो फिर किस प्रकार की भक्ति और प्रभु प्राप्ति?? .. इन मूर्तियों को देख-देख कर जब तक आप काम के ऊपर संयम या विजय न पा लो तब तक आपका दर्शन करना व्यर्थ ही है.
मूर्तियां देख कर ही विकार आने लगते मन में तो जब साक्षात कोई रंभा, मेनका, उर्वशी आ जाये तब क्या हो ??
अर्जुन अनुकरणीय है इस मामले में.
बिना जितेंद्रिय बने प्रभु प्राप्ति नहीं.

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