पुस्तक समीक्षा : मोहन राकेश रचित ‘आषाढ़ का एक दिन’

Ashadh Ka Ek Din

मोहन राकेश रचित ‘आषाढ़ का एक दिन’ को आधुनिक युग का प्रथम नाटक भी कहा जाता है. इस नाटक का शीर्षक कालिदास की कृति मेघदूतम् की शुरुआती पंक्तियों से लिया गया है चूँकि आषाढ़ का महीना उत्तर भारत में वर्षा ऋतु का आरंभिक महीना होता है, इसलिए शीर्षक का अर्थ “वर्षा ऋतु का एक दिन” भी माना जा सकता है.

‘आषाढ़ का एक दिन’ महाकवि कालिदास के निजी जीवन पर आधारित है. ‘आषाढ़ का एक दिन’का परिवेश ऐतिहासिक है, परंतु उसमें आज की आधुनिक समस्याओं को प्रस्तुत किया गया है. प्रस्तुत नाटक में कालिदास व्रती, तपस्वी, महात्मा नहीं हैं बल्कि दुर्बल और सामान्य व्यक्ति है जो दायित्वहीन, ज्ञानशून्य, स्वार्थी, आत्मसीमित, पलायनवादी कवि के रूप में सामने आता है. मोहन राकेश ने विश्व-विख्यात कवि कालिदास को कल्पना और मिथ की सहायता से विकसित किया है जो सृजन शक्तियों का प्रतीक है.

‘आषाढ़ का एक दिन’ की कथावस्तु के अनुसार कालिदास केवल भावना के स्तर पर मल्लिका से बंधा हुआ है लेकिन भौतिक स्तर पर वह मल्लिका से बहुत दूर चला जाता है. अपनी प्रेयसी मल्लिका से विवाह किए बगैर उज्जयिनी के सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के बुलावे पर राज्याश्रय स्वीकार कर उज्जयिनी चला जाता है. वहाँ राजकुमारी प्रियंगुमंजरी से विवाह कर लेता है और उसके पश्चात काश्मीर का शासक बन जाता है.

काश्मीर जाने के मार्ग में वह मल्लिका के ग्राम-प्रदेश से गुजरता है पर उससे मिलता नहीं है. शासक के रूप में कवि कालिदास की सृजन-क्षमता अवरुद्‌ध होने लगती है. अंत में पर्वतीय-प्रकृति-प्रेमी कालिदास का शासक के रूप में जब मोह भंग होता है तब वह हताश और पराजित होकर मल्लिका के पास वापस लौटता है लेकिन मल्लिका के वर्तमान रूप को देखकर पुन: मल्लिका को छोड़कर चला जाता है.

इसके विपरीत ऐतिहासिक रूप से कालिदास का चरित्र एक आदर्श चरित्र है. कालिदास का आरंभिक जीवन उपेक्षित और अभावग्रस्त था. कालिदास को उज्जयिनी में राजकवि का सम्मान प्राप्त हुआ था. कालिदास का काश्मीर जाना, काश्मीर के सिहांसन को त्यागकर काशी में संन्यास लेना आदि तथ्य इतिहास-सम्मत हैं. दन्तकथाओं के आधार पर कवि कालिदास का विवाह राजकुमारी विद्योत्तमा से हुआ था. मोहन राकेश ने नाटक में प्रियंगुमंजरी की कल्पना विद्‌योत्त्मा से की है. नाटक में अनेक ऐसे संदर्भ हैं जो कालिदास के कुमारसंभवम्, मेघदूत, अभिज्ञान शाकुंतलम् और ऋतुसंहार के दृश्य संदर्भों को उजागर करते हैं.

कहा जा सकता है कि ‘आषाढ़ का एक दिन’नाटक के कथासूत्र तथा पात्र भले ही ऐतिहासिक हो किन्तु इसमें मोहन राकेश ने वर्तमान समय की समस्या को पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया है.

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मोहन राकेश ने एक जगह लिखा कि “मेघदूत पढ़ते हुए मुझे लगा करता था कि वह कहानी निर्वासित यक्ष की उतनी नहीं है, जितनी स्वयं अपनी आत्मा से निर्वासित उस कवि की, जिसने अपनी ही एक अपराध-अनुभूति को इस परिकल्पना में ढाल दिया है.” मोहन राकेश ने कालिदास की इसी निहित अपराध-अनुभूति को “आषाढ़ का एक दिन” का आधार बनाया.

मोहन राकेश ने कहा है – “ऐतिहासिक नाटककार इतिहास की बत्ती में कल्पना का दिया जलाकर रसानुभूति का सुंदर प्रकाश फैला देता है.’’ उनके शब्दों में “साहित्य में इतिहास अपनी यथा तथ्य घटनाओं में व्यक्त नहीं होता, घटनाओं को जोड़ने वाली कल्पनाओं में व्यक्त होता है, जो अपने ही एक नये और अलग रूप में इतिहास का निर्माण करती है.”

1959 में इसे वर्ष का सर्वश्रेष्ठ नाटक होने के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था .‘1971 में निर्देशक मणि कौल ने इस पर आधारित एक फ़िल्म बनाई जिसने आगे जाकर साल की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीत लिया.

मिलन : छठा तत्व

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