परिपाटी का अर्थ समझते हैं ना? इसका अर्थ होता है practice, प्रथा या ऐसी परंपरा जो पहले से चली आ रही हो. परिपाटी को मानने वाला व्यक्ति समाज में सहजता से स्वीकार्य तो होता है, परंतु बदलते समय और हालात के अनुसार यदि वह व्यक्ति अपनी सोच में परिवर्तन नहीं ला पाता है तो उसे लकीर का फकीर भी कहते हैं.
देश के लोगों ने परिपाटी को तोड़कर एक ऐसी मज़बूत राष्ट्रवादी सरकार को चुनी जिससे ये उम्मीद बँधी कि अब हम लकीर के फकीर वाले हालात से बाहर निकल आएँगे.
चलिए मान लिया, आपने केन्द्र से एक वार्ताकार श्रीनगर के लिए भेज दिया जो घाटी में शांति स्थापित करने के रास्ते ढूँढेगा, सभी पक्षकारों से बात करेगा लेकिन क्या यह काम पहली बार हो रहा है?
पिछले दो दशकों में जितने भी वार्ताकार श्रीनगर गए उनकी क्या उपलब्धि रही? शांति आई?
अटल जी से लेकर मनमोहन सिंह तक सभी ने शांति के प्रयास किए लेकिन सबसे ज्यादा तारीफ यदि किसी की हुई तो मोदीजी, वो आपकी हुई थी… जबकि आपने अब तक किसी से बात नहीं की, हुर्रियत से भी नहीं.
आपने तो सैनिकों को ही आदेश दे दिया था कि वे ही हुर्रियत के पाले हुए आतंकियों से बात करेंगे, आपने तो NIA को ही वार्ताकार की भूमिका निभाने को कहा था, जिसने हुर्रियत की कमर तोड़ कर रख दी और सस्ते में शांति स्थापित हो गई.
आपको पता है कि शांति वार्ता में यदि हुर्रियत के नेता शामिल ना हों तो वार्ता का कोई मतलब नहीं… और आप उन्हें शामिल करेंगे ये भी मुझे पता है… हुर्रियत के सभी लीडरों की मंशा क्या है, क्या पता नहीं आपको?
हुर्रियत से बात करवाने की महबूबा की ज़िद और अब्दुल्ला की नाराज़गी क्या राजनीतिक खेल भर नहीं है? हुर्रियत के नेताओं की किन बातों को आप मानेंगे? क्या कश्मीर की आज़ादी पर बात करेंगे?
क्या घाटी के लोगों में रेफरेंडम करवाने की बात मानेंगे? क्या हुर्रियत नेताओं की पाकिस्तान-परस्त मानसिकता को बदल कर भारत-परस्त कर पाएँगे? वो कौन सी तरकीब है आपके पास जिससे घाटी में पैर जमा चुके इस्लामिक कट्टरवाद को उखाड़ देंगे?
क्या पाकिस्तान आपके शांति प्रयासों को अमल में लाने देगा? क्या घाटी से सेना हटाने की उनकी माँग पर आप सहमत होंगे? क्या जेल में बंद उन आतंकवादियों को रिहा करने की शर्त मानेंगे जिन्हें वे आज़ादी के दीवाने कहतें हैं?
मुझे नहीं लगता हुर्रियत की ऐसी कोई भी शर्त मानी जाएगी. फिर शांति वार्ता की टेबल पर उन्हें बैठाकर आप आप क्या बात करेंगे?
हुर्रियत के नेताओं को शांति बनाए रखने के लिए कांग्रेसी सरकारों की तरह आप धन भी नहीं देंगे ये भी जानता हूँ.
तो क्या ये काम आप किसी के दबाव में कर रहे हैं? यदि हाँ तो किसके?… विपक्ष के दबाव में या अमेरिका के दबाव में?
यदि विपक्ष का दबाव है, फिर तो आपकी सरकार दब्बू है, और यदि अमेरिका का दबाव है तो आप अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को अपनी बात समझाने में असफल रहे हैं.
रोहिंग्या मसले पर जब बर्मा जैसा देश अंतर्राष्ट्रीय दबाव को नहीं मान रहा तो कश्मीर के मसले पर आप क्यों मानेंगे?
पिछले दो दशकों में घाटी यदि सबसे ज्यादा शांत रही है तो वो इस वक्त शांत है… ये मैं नहीं कह रहा बल्कि परसों मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने ये बयान दिया है.
ये शांति क्यों आई है, इसे देश के लोग भी जानते हैं.
ये शांति बंदूक से आई है… ये शांति आतंकियों के आकाओं की धरपकड़ और उन पर नज़र रखने से आई है… उनके यहाँ छापा डालकर उन्हें बेनकाब करने से आई है… उनके आय के स्रोतों को बंद करने से आई है.
अब वार्ता की टेबल पर उन हुर्रियत नेताओं को मत बुलाइए… उनका भाव फिर से बढ़ जाएगा… वे फिर से सिर पर बैठ जाएँगे.
यदि आपकी निगाह में राज्य में पंचायत चुनाव हैं तो, हुर्रियत नेताओं को धमकी दीजिए कि यदि कोई गड़बड़ी हुई तो उसकी सज़ा उन्हें ऐसी मिलेगी कि उनकी रूह काँप जाएगी.
2019 में तो आप ही आ रहे हैं… ये बात आप भी जानते हैं तो फिर किस बात की चिंता है?
योगीजी, जो एक भगवाधारी संत हैं, गोरखनाथ पीठ के महंत हैं… ताजमहल में झाड़ू लगा रहे हैं, अब बताइए भला… राष्ट्रपति जी कर्नाटक विधानसभा में टीपू सुल्तान को नायक बता रहे हैं… आखिर क्यों?
ये सब करने की ज़रूरत नहीं है, आप तो बस अपने ही आदर्शों पर अडिग रहें, सेक्यूलरों के बहकावे में ना आएँ… आपके पीछे देश की जनता पहले की तरह ही खड़ी है… सभी आपकी दूरदृष्टि के कायल हैं.
राज्य में निर्माण कार्य और खुशहाली के लिए फंड देकर आपने आम कश्मीरी जनता का जो दिल जीता है वो अभूतपूर्व है… सिर्फ शांति चाहने वाली आम कश्मीरी जनता से बात करें ना कि अशांति के पूजारी हुर्रियत के नेताओं से. ध्यान रहे, आप परिपाटी बदलने आए हैं ना कि लकीर का फकीर बनने.