अत्यंत भावपूर्ण वातावरण में कहीं ये भावुक शब्द गुंजायमान हो रहे… “जानते हो वत्स, राम-रावण युद्ध में वीरगति को प्राप्त योद्धाओं का क्या हुआ? समस्त वानरों एवं राम के पक्ष के हताहत योद्धाओं को स्वर्ग प्राप्त हुआ लेकिन जानते हो रावण सहित रावण के पक्ष के मृत वीरो को वैकुंठ मे भगवान का सानिध्य मिला, मोक्ष मिला, पूछो कैसे?”
– कैसे?
“वो ऐसे भावगम्य हिन्दू मूढोत्तम कि रावण सहित जो राक्षस, राम से लड़ रहे थे उनके मन में, दृष्टि में, संकल्प में राम थे और वानरों एवं राम के पक्ष के योद्धाओं के मन में, दृष्टि में संकल्प मे रावण था… आई बात समझ में?”
भावुक श्रोताओं के नेत्रों से सरयू बहने लगी, जय जय श्रीराम के नारों से परिसर कंपायमान हो उठा. अहा, आ हा हा हा हा… वाह, जय हो ऐसे कथाकार की, आप साक्षात तुलसी के अवतार है प्रभो!
हे बाबा रामदेव के भरतसम भाई, धन्वंतरि स्वरूप, कविराज बालकृष्ण जी महाराज! आप हिमालय पर संजीवनी ढूंढने का काम अवलंबित करके पहले कोई ऐसी जड़ी-बूटी ढूंढिए भगवन जिसके प्रभाव से भावतिरेकी हिन्दुओं की मूढ़मति को हरा जा सके.
कुछ भी सुनकर सत्य मानकर भजने लग जाते हैं हिन्दू… अरे मूढ़कुलभूषणो! जो योद्धा श्रीराम के पक्ष में उनके शिवसंकल्प एवं धर्म की स्थापना के लिए एक अधर्मी राक्षसराज के विरुद्ध अपना सर्वस्व अर्पण कर गए उनके हृदय में राम नहीं थे?
रावण को शत्रु के रूप में सोचने और युद्धनीति का अनुसरण करने मात्र से वे रावण के हो गये? और वे दुष्ट मानवभक्षी राक्षस जो राम से इसलिये लड़ रहे थे कि रावण उन पर प्रसन्न हो, राम मारे जाएं, सीता रावण को प्राप्त हो जाएं और सम्पूर्ण धरा पर उसका एकछत्र जंगलराज स्थापित हो जाये, ऐसे राक्षसों को मोक्ष इसलिए मिल जाये कि उनका लक्ष्य ‘राम’ रहे, उनके मारक अस्त्रों का लक्ष्य राम हों हत्या के निमित्त?
कब अपने ज्ञानचक्षु खोलोगे बंधुओं? ऊपर स्वर्ग/ नरक/ वैकुंठ/ मोक्ष का आवंटन क्या ऐसे मूर्खो के हाथ है जो उपरोक्त अवधारणाओं के अनुरूप रामभक्त बलिदानियों की गति का मंथन करेंगे?
अपने एक-एक योद्धा के शरीर से बहता रक्त नहीं दिखा होगा श्रीराम को? बल्कि यह दिखा होगा कि वह योद्धा मेरी तरफ देखकर, मुझे स्मरण करते हुए अपने शत्रु को पिछले पैरों से दुलत्ती क्यों नहीं मार देता, मैं रूष्ट हूँ जा तुझे मात्र स्वर्ग मिले?
कैसे आप लोग ऐसे छद्म जालों में फंस जाते हो भोरे कपोतों के समान?
इसी क्रम को आगे बढ़ाकर वे आपसे पूछते हैं, “चाहिए तुम्हें हजारों कारसेवकों, सैकड़ों मानव मात्र मुस्लिमों, दंगों में मारे गए निर्दोष व्यक्तियों/ बच्चों/ स्त्रियों के रक्त से सना रामजन्म मंदिर?”
और एक बार फिर भावगम्य कोमल हृदय हिन्दू द्रवित होकर कहेंगे, “नहीं! राम तो कण कण में हैं, क्षण क्षण में हैं, मेरे राम ऐसी जगह पर नहीं रह सकते, वो स्वयं भी होते तो मना कर देते?”
कभी वर्णन पढ़िएगा राम-रावण युद्ध का और सोचिएगा कि स्वयं राम ने अपनी आंखों से तब क्या-क्या देखा और वीतराग होकर आगे बढ़े होंगे कि अधर्म के नाश हेतु अपने अधिकारों की अवाप्ति हेतु संघर्ष एवं रक्तपात से नहीं बचा जा सकता अपितु मात्र श्रेष्ठतम पराक्रम शत्रु की हार को निश्चित कर इस दारुण्य दृश्य की वेदना को कम कर सकता है बस.
उठिए! आँखे खोलिए, सत्य को पहचानिए और सजग रहिये अपने अधिकारों की रक्षा कर लिए हर युग में अन्यथा अपने ही घर में भी कभी सुरक्षित नहीं रह पाएंगे.