‘न खाने दूँगा’ की घोषणा से नाराज़ सरकारी तंत्र विफल करेगा केंद्र की योजनाएं!

झारखंड में कुछ दिन पहले एक बालिका मर गई. खबरों में बताया गया कि उसकी माँ को सरकारी योजना के तहत चावल नहीं दिया गया था. इसका कारण बताते हुए कुछ लोगों ने कहा कि उसके आधार कार्ड में कोई गड़बड़ी थी, वहीं एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक़ उसका आधार कार्ड बिलकुल दुरुस्त था, पर उसके पास राशन कार्ड ही नहीं थी.

[‘कइली के पास आधार तो था, उसका नया राशन कार्ड ही नहीं बना था’]

घटना के बाद स्वाभाविक रूप से सरकारी मशीनरी की असंवेदनशीलता पर मीडियाई कोड़े बरसाए गए और बिना कोई नाम लिए आधार कार्ड योजना को जम कर कोसा गया. चूंकि बालिका मर चुकी थी इसलिए सरकार की आलोचना के अलावा कोई भी नज़रिया स्वीकार्य नहीं था।

ऐसी कई घटनाएँ और भी होती रहेंगी. और खास कर के चुनावों के आस पास उनकी संख्या बहुत बढ़ेगी, यह अभी से लिख रखिए.

नोटबंदी में जिनका नुकसान हुआ है तथा आधार जिनकी संपत्ति को निराधार कर देगा वे यह हथकंडे अपनाएँगे ही. और एक बात है कि यह बात कभी साबित नहीं होगी क्योंकि इसमें जिस आदमी पर इसका दोष आयेगा वह बहुत छोटा आदमी होगा।

बस एक बात को सोचिएगा कि इतने छोटे व्यक्ति के केस में इतने बड़े-बड़े चैनल अचानक इतनी दिलचस्पी क्यों लेने लगे? तक्षक और इन्द्र हमेशा यज्ञ में आहूत होने से खुद को बचाते हैं यह आप को पता ही होगा।

एक बात समझ लीजिये. ‘न खाने दूँगा’ की घोषणा से सरकारी तंत्र नाराज है. काम करने का पूरा मोटिवेशन खत्म किया है मोदी जी ने. इसीलिए कर्मचारी जहां भी सरकारी योजनाओं को फेल कर सकते हैं या उनके कारण जनता को तकलीफ दे सकते हैं, वहाँ नियमों के पूरे संरक्षण में रहकर तकलीफ बेरहमी से दी जाएगी।

भावनाशून्य चेहरे से एक ही जवाब दिया जाएगा जो उस योजना का नाम होगा. सरकारी कर्मचारी मोदी जी को बुरा-भला नहीं कहेगा वह बस योजना का नाम रटता रहेगा। विरोधी खबर बनाएँगे और ऐसे माहौल बनेगा कि न जाने क्या हो रहा है.

मान लीजिये कि मानवीय भूल या फिर लापरवाही के कारण किसी की मौत हो तो समाचार बनें. आँखें खुली रखिए, कोई ऐसी घटना बनती दिखे तो मीडिया से संपर्क कीजिये. अगर आप को लगता है कि वह भी सुर्खियों में आएगी तो आप का अपेक्षा भंग हो सकता है. हो सकता है वो घटना उनके निकषों में नहीं बैठती. वे जैसी बातों को राष्ट्रीय हेडलाइन में बनाए रखते हैं, उनके ही कारण खोज लेना अपने आप में true journalism होगा।

मोदी जी ने पहले आधार का विरोध क्यों किया था और अब आधार क्यों खुद ही लागू कर रहे हैं, यह अगर दोनों समय के प्रस्तावों को देखा जाये तो खुद ही समझ आ जायेगा.

आज जो इस बात को मुद्दा बना रहे हैं उनसे प्रश्न एक ही है – क्या उन्होने दोनों समय के आधार के प्रस्तावों का अध्ययन किया है? तुलना की है? अगर ईमानदारी से करेंगे तो प्रश्न उठेगा ही नहीं. और अध्ययन करने के बात भी अगर प्रश्न उठा रहे हैं तो फिर प्रश्न उनकी ईमानदारी पर होगा.

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