प्रखर राष्ट्रवादी विचारक आनंद राजाध्यक्ष जी के आदेश पर कल ‘महाराष्ट्र वाल्मीकि’ ग. दि. माडगूळकर जी के प्रसिद्ध समर गीत का हिंदी में भावानुवाद किया. कविता का भावानुवाद कितना कठिन काम होता है, पहली बार समझ में आया. पता नहीं कितना सफल हुआ हूँ… आप लोग भी पढ़ें.
मानवता का शत्रु खड़ा है, हम अंतिम बिगुल बजाएंगे.
धरती पाटें अरि मुंडो से, या अपना मुंड कटाएंगे..
सैनिक अडिग खड़े रहना तुम, हम सब सैनिक बन आयेंगे.
हर महिला रण चंडी होगी, बच्चे वानर सैन्य बनायेंगे..
होड़ लगी है अब आपस में, चंडी को रक्त पिलायेंगे.
धरती पाटें अरि मुंडो से, या अपना मुंड कटाएंगे..
छत्रपति ने सपना देखा, वह मानचित्र बनवायेंगे.
जान हथेली पर लेकर हम, आगे बढ़ते जायेंगे..
यह देश शिवा, लक्ष्मीबाई का, हम दुनिया को बतलायेंगे.
धरती पाटें अरि मुंडो से, या अपना मुंड कटाएंगे..
शस्त्र का उत्तर शस्त्र से देंगे, ना पीछे कदम हटायेंगे.
इंच इंच कट जाएं भले ही, पर इंच न पीछे जायेंगे..
जन्मों की सीमा के आगे, हम यह संघर्ष निभायेंगे.
धरती पाटें अरि मुंडो से, या अपना मुंड कटाएंगे..
संघर्ष निरंतर चले विजय तक, यही वसीयत लिख जाएंगे.
हानि लाभ से ऊपर उठकर, हम कर्तव्य निभायेंगे..
अंतिम विजय हमारी होगी, संकल्प यही दोहरायेंगे.
धरती पाटें अरि मुंडो से, या अपना मुंड कटाएंगे..