Sri M -2 : अग्नि के मानस देवता को प्रणाम

sri-m-agni-ke-manas-devta
Sri M

अमृता प्रीतम की एक अद्भुत पुस्तक है जो मेरे लिए किसी ग्रन्थ से कम नहीं, मेरे और स्वामी ध्यान विनय के पिछले जन्मों के कई राज़ एमी की इन कहानियों से झलक जाते हैं. पुस्तक का नाम है “वर्जित बाग़ की गाथा.

जैसा कि नाम है, उसमें जितने भी किस्से दिए गए हैं, सब वास्तविक है लेकिन किसी की भी कल्पना के परे के, पराशक्तियों की बातें और शक्तिकणों की लीला….

कई बार पढ़ी है… एक बार तो रात को अकेले पढ़ रही थी… आग से निकलने वाले व्यक्ति के बारे में … पढ़ते हुए लगा पुस्तक यदि बंद नहीं की तो जिस व्यक्ति के बारे में पढ़ रही हूँ वो साक्षात सामने आ जाएगा… मैंने तुरंत पुस्तक बंद कर दी…

मन में शंका आना स्वाभाविक है, क्योंकि तब मेरी ध्यान विनय से सिर्फ फोन पर बातचीत होती थी, हमारी मुलाक़ात नहीं हुई थी, इसलिए मैं कोई जोखिम लेना नहीं चाहती थी.

sri-m-agni

 

 

ये केवल किसी की कहानी होती तब भी मैं इसे नज़र अंदाज़ कर देती लेकिन किताब में माइकेल क्रोनेन का नाम लेते हुए लिखा है कि ये वो किस्सा है जो उन्हें जे कृष्णमूर्ति ने खुद सुनाया था… जिसका ज़िक्र उन्होंने अपनी पुस्तक “The Kitchen Chronicles. 1001 Lunches with J. Krishnamurti” में किया है.

संक्षिप्त में किस्सा कुछ यूं है कि एक महिला का प्रेमी मर जाता है, एक दिन महिला दुखी मन से आग के सामने बैठी अपने प्रेमी को याद कर रही थी और अचानक से आग की लपटों से उठकर वो सचमुच उसके सामने खड़ा हो जाता है… और उसके साथ वो प्रेम के वशीभूत होकर सम्भोग भी करती है… लेकिन धीरे धीरे उसे लगता है कि वो उस आदमी के चंगुल में फंसती जा रही है, और वो उसे अपने हिसाब से नियंत्रित करने लगता है…

shrim-agni-devta
Sri M

वो स्त्री जे कृष्णमूर्ति के पास जाती है, वो उसे उपाय भी बताते हैं, उस छाया पुरुष से मुक्ति भी पा लेती है लेकिन अपने कमज़ोर औरा के कारण कुछ वर्षों बाद वो दोबारा उसके वश में हो जाती है…

ब्रह्माण्ड की सारी ऊर्जाएं केवल हमारे लिए ही निर्मित हैं ये हम पर निर्भर करता है कि हम उसे सकारात्मक शक्ति बनाते है या नकारात्मक… जैसे बिजली का उपयोग हम प्रकाश फैलाने के लिए भी कर सकते हैं, और किसी को करंट देकर मौत के मुंह में सुलाने के लिए भी… ब्रह्माण्ड की ऊर्जा इसी विज्ञान पर काम करती है…

बहुत वर्षों बाद अग्नि की इसी ऊर्जा को किस तरह से सकारात्मक रूप से उपयोग कर ध्यान, ज्ञान और अध्यात्म की ऊंचाइयों को प्राप्त किया जा सकता है उसका वर्णन पढ़ा मेरे गुरु श्री एम के पुस्तक “एक हिमालयवासी गुरु के साए में : एक योगी का आत्मचरित”.

पुस्तक में श्री  एम बताते हैं कि उनकी आँखों के सामने उनके गुरु जिन्हें वो बाबाजी कहकर बुलाते हैं, ने अग्नि का आह्वान किया, तो एक लपट जलती धुनी से उठाकर देवदार के वृक्ष जितनी बड़ी हुई.

sri-m-agni-devta-ma-jivan-shaifaly-making-india
Sri M

जब बाबाजी ने उसे श्री एम की नाभि को छूने का आदेश दिया तो लपट ने झुककर श्री एम की नाभि को छुआ… श्री एम ने ऊर्जा के उस स्तर को अनुभव किया जिसके लिए किसी तपस्वी को बरसों तपस्या करना पड़ती है. लेकिन यह श्री एम के पिछले जन्मों की तपस्या का ही फल था जो उन्हें इस जन्म में प्राप्त हो रहा था…

उसी अग्नि के बारे में बाबाजी बताते हैं – “यह केवल गोचर आग ही नहीं है जिसे अग्नि कहा जाता है. हर तरह का ज्वलन अग्नि है. अपचय और उपचय की प्रक्रियाएं जो हमारे शरीर का पोषण करती हैं, उन्हें भी पाचन अग्नि कहा जाता है, इसी तरह इच्छा-आकांक्षाओं की अग्नि, चाहे वह अधोमुखी हो या ऊर्ध्वमुखी.

अगर पहले तुम्हारी कोई प्रेमिका थी तो क्या तुम उसे अपनी “पुरानी लौ” नहीं कहते? “पुराना पानी” या “पुरानी वायु” कोई नहीं कहता. क्योंकि प्रेम, इच्छाएं, प्रेरणाएं ये सब एक तरह की आग हैं. कल्पना भी. इसलिए सदियों से अग्नि की पूजा होती आई है.

विश्वास करो, सारी प्रकृति की तरह अग्नि का अपना खुद का मानस है. हमारा मानस अग्नि, आग के देवता, के मानस से घनिष्ठता से जुड़ा है. यहाँ तक कि इसकी लपटें हमारी किसी भी इच्छा को पूरा कर सकती हैं.

कुछ रहस्य रहस्य ही बने रहते हैं, उन्हें व्यक्त करने के लिए शब्द पूरे नहीं पड़ते. बस इतना कह सकती हूँ कि इन गुरुओं का ही आशीर्वाद है कि मैंने अग्नि को हमेशा से देवता की तरह पूजा है, चाहे प्रेम की अग्नि हो, चिता की, दीये की, हवन की, देह की या आत्मा की.

Sri M -1 : आसमानी हवन के साथ दुनियावी सत्संग

Comments

comments

LEAVE A REPLY