भारतीय क्रिकेट में रवि शास्त्री एक ऐसे बल्लेबाज थे जिनके जल्दी आउट होने की दुआ भारत के ही लोग करते थे. क्योंकि ये जनाब वन-डे क्रिकेट में भी ओवर की 5 गेंदें फालतू गँवा कर आख़िरी गेंद पर रन ले लेते थे और अगर 90 रन तक पहुँच गए तब तो समझिए कि आखिर के 10 रन बनाने के लिए 3-4 ओवर और 99 पर हो तो कम से कम 2-3 ओवर बर्बाद कर देते थे.
शास्त्री भयंकर दबाव में होते थे. पूरा देश इनको गालियाँ देता था. रवि शास्त्री के कारण भारत ने कई मैच हारे हैं. ये अलग बात है कि इन्होने पहले कमेंटेटर बनकर भी खूब माल बनाया और आज क्रिकेट के सबसे महँगा कोच भी हैं, क्यों हैं, पता नहीं. वैसे क्रिकेट बुक के कई अच्छे शॉट्स शास्त्री लगा लेते थे.
वहीं दूसरी ओर कृष्णमाचारी श्रीकांत और वीरेंद्र सहवाग दो खिलाड़ी ऐसे हुए हैं जिन्होंने कभी भी दबाव में क्रिकेट नहीं खेला. दोनों ही ओपनर बल्लेबाज थे और ज़्यादा देर तक बिना शॉट खेले विकेट पर टिक नहीं पाते थे.
कितना भी बड़ा या महत्वपूर्ण मैच हो, इन दोनों ने हमेशा अपना स्वाभाविक खेल ही खेला. जमकर चौके-छक्के लगाना और ज़्यादा बड़ा स्कोर न बनने के बावजूद कभी मलाल नहीं किया. हिट तो हिट, आउट तो आउट.
क्रिकेट बुक के अलावा खुद के ईजाद किये हुए शॉट्स. अपने तिहरे शतक को छक्का मारकर पूरा करने का साहस सिर्फ सहवाग के पास ही था. विराट कोहली और धोनी ऐसे बल्लेबाज़ हैं जो हालात के हिसाब से बल्लेबाजी करते हैं और अक्सर परिणाम को अपने पक्ष में कर लेते हैं.
इसी तरह भारत की राजनीति में ज़्यादातर नेता रवि शास्त्री के जैसे भयंकर दबाव में चुनाव लड़ते हैं. आखिर तक रणनीति ही तय नहीं कर पाते हैं कि करना क्या है? टुचुक टुचुक खेलते हैं और जब चुनाव परिणाम आते हैं तो कभी EVM को दोष देने लगते हैं, तो कभी अपने साथियों पर ही दोषारोपण करने लगते हैं.
केजरीवाल, अखिलेश, मायावती इन सभी ने गोवा, पंजाब, उत्तरप्रदेश के चुनाव रवि शास्त्री की तर्ज़ पर लड़े. इनके पास चुनाव लड़ने की वही चिर परिचित राजनीति की बरसों पुरानी दलीलें और नीतियाँ थीं.
वहीं अमित शाह और मोदी, धोनी और कोहली की तरह खेल की परिस्थितियों को या तो पहले से ही भाँप लेते हैं, या परिस्थितियों के हिसाब से तुरन्त परिवर्तन कर लेते हैं और अक्सर परिणाम अपने पक्ष में कर लेते हैं. जिस पर विपक्षी भाजपा को ‘सत्ता की भूखी’ पार्टी भी कहते हैं जबकि खुद भी वर्षों तक यही करते आये हैं.
श्रीकांत और सहवाग के जैसा केवल एक ही नेता इस देश में है जो कि बिना किसी दबाव के चुनाव लड़ता है, बिन्दास लड़ता है, जो मुँह में आये बोल देता है, जो करना है कर डालता है, कभी मलाल भी नहीं करता है. लेकिन शॉट्स तो खेलना ही है… और वो नेता है – राहुल गाँधी.
ऊपर से कांग्रेसियों को ही इनका बचाव अलग से करना पड़ता है, दुआ भी करते हैं कि राहुल के हाथ में चुनाव की बागडोर न हो. कई कांग्रेसी मन ही मन शास्त्री की तरह गालियाँ निकालते हैं लेकिन मनमोहन की तरह मौन रहते हैं. लेकिन इन सबसे बेख़बर राहुल गाँधी जमकर चुनावी महफ़िल जमाते हैं और शास्त्री की तरह अपनी ही पार्टी को चुनाव हरवाते जाते है. इतना साहस भी किसी और नेता के पास नहीं है.
हे राजीव-सोनिया! देश को इतना प्रतिभावान पुत्र, नेता देने के लिए देश आपका हृदय से आभारी है और आजीवन रहेगा.