रंगीला राजदूत

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कुछ लोग हमेशा दूसरों का बायोडाटा हाथ में लेकर आंदोलित रहते हैं कि मोदी सरकार ने इस आदमी को कैसे इस पद पर बैठा दिया? देखो-देखो मेरे पास जिसका बायोडाटा है, वह कितना काबिल है! पकाओ मत यार. योग्य लोगों की कमी कभी रही है इस देश में? पर परंपरानुसार नियुक्तियां हमेशा अपने लोगों की ही की जाती हैं.

अनिल मथरानी की याद है? इस व्यक्ति ने सद्दाम हुसैन के साथ तेल सौदे में तत्कालीन विदेश मंत्री नटवर सिंह पर अपने रिश्तेदारों को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाया था. वैसे उस समय इराक गए कांग्रेसी प्रतिनिधिमंडल में नटवर के साथ अनिल मथरानी भी थे. घोटाला जब उजागर हुआ तो अनिल मथरानी क्रोशिया में भारत के राजदूत (दिसंबर 2004 से दिसंबर 2005) थे. नटवर तो नप गए पर मथरानी की कहीं कोई चर्चा नहीं! क्या कोई ऊपरी दबाव था?

मथरानी विदेश सेवा के अफसर नहीं थे और कांग्रेस के भी तीसरे दर्जे के नेता थे. जनाधार वाले नहीं, फिक्सर टाइप के. पर राजदूत बन बैठे. ‘नटवर-गेट’ की भेंट चढ़ने से पहले लगभग साल भर के कार्यकाल में छह महीने उन्होंने दिल्ली में गुजारे. उन्हें 40 लाख की आबादी वाले पिद्दी से देश में राजदूत का पद मामूली लगता था. वे केंद्र में मंत्री बनना चाहते थे और उसी फेर में दिल्ली आते थे.

मथरानी ने ले-दे कर छह महीने में ज़गरेब (क्रोशिया की राजधानी) में गुजारे. लेकिन इन छह महीनों में ही वे ज़गरेब में हर कूटनयिक, स्थानीय पुलिस व इंटेलीजेंस यूनिट के राडार पर आ गए थे. भारत के ये राजदूत इतने रंगीले थे कि अक्सर चौराहों पर और सस्ते बारों में वेश्याएं तलाशते दिख जाते थे और उनका क्रोशियाई ड्राइवर (Zlatko Nincevic) मोलभाव में दुभाषिए की भूमिका निभाता था.

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हद तो तब हो गई जब बतौर राजदूत ये महाशय क्रोशिया के राष्ट्रपति को अपना परिचय पत्र सौंपने पहुंचे तो उनके साथ पत्नी की जगह ऑस्ट्रिया की कोई महिला थी. कूटनयिक प्रोटोकॉल की दृष्टि से यह अविश्वसनीय घटना थी. और जितने दिन वे क्रोशिया में रहे, तमाम खूबसूरत तटीय शहरों में नित नई-नवेली महिला मित्रों के साथ भारत सरकार के खर्चे पर रंगरलियां मनाते रहे. बुरा हो कुछ दुश्मनों का जिन्होंने होटल के बिल भी निकाल लिए.

जगरेब में भारतीय राजूत के आवास पर महिलाओं का जमघट होता था. इस कदर कि महिलाओं में आपस में लड़ाई झगड़े भी हो जाते थे. और जब वे दिल्ली रहते थे तो भी राजदूत का आवास किसी कामकाजी महिला छात्रावास की तरह होता था जहां भारत सरकार के खर्चे से वे आतिथ्य सुख उठाती थीं. अपनी महिला मित्रों से मिलने मथरानी विदेश मंत्रालय को बिना बताए सरकारी झंडे वाली कार से रंगरलियां मनाने स्लोवेनिया और बोस्निया भी जाते थे. भारत का राजदूत चुपचाप दूसरे देश चला जाता है और सरकार को खबर नहीं.

इन हरकतों से नाराज़ विदेश मंत्री नटवर ने मथरानी का फोन उठाना बंद कर दिया पर किसी कार्रवाई का साहस नहीं जुटा पाए क्योंकि अफवाहें थी कि उन पर बहुत ताकतवर पते पर रहने वाली किसी महिला का वरदहस्त है.

Duska Billic; photo credit : outlookindia.com

ऑइल फॉर फ़ूड घोटाला उजागर करने के बाद मथरानी को होश आया कि अब खुद कैसे बचें. तब उन्होंने शुद्ध देशी अंदाज में क्रोशिया के उन सभी छोटे बड़े शहरों, जहां उन्होंने महिला मित्रों के साथ रात गुजारी थी, के मेयरों को फोन किया और सिफारिश की कि वे एक पुरानी तारीख का सरकारी निमंत्रण पत्र भेज दें अपने शहर में आने का ताकि लगे कि वे आधिकारिक काम से आए थे. मेड सर्वेंट (Duska Bilic) के साथ उनका बर्ताव ऐसा था कि देवयानी खोबरागडे सुनें तो अनशन पर बैठ जाएं कि यह क्यों बच निकला.

ये कांग्रेस के जमाने की नियुक्तियों का बस एक नमूना है. कोई नहीं जानता कि मथरानी राजदूत कैसे बन गए. पर सत्ता के गलियारों में अफवाहें थीं कि राजनीति में आने से पहले वे दिल्ली में बसंत बिहार में एक पंचतारा होटल में बारटेंडर थे. “त्याग की देवी” कभी-कभार इस बार में आचमन के लिए आती थीं. तो क्या बारटेंडर होना राजदूत बनने के लिए योग्यता का पैमाना है? यूपीए सरकार में जरूर रहा होगा किसी समय, क्योंकि दो-चार और बारटेंडरों की किस्मत बदलने की चर्चाएं भी रही हैं.

लरिकैयां प्रजाति के कुछ वृद्ध ज्ञानी नियुक्तियों पर सवाल उठाएं, उनका हक है. पर बताएं भी कि इस आयु में कुंठाएं इस कदर अनियंत्रित होकर किलकारी क्यों मार रही हैं?

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