अद्भुत पर्व ज्योति का है यह..
या है यह
विराट श्रृंगार , तिमिर का..?
गहन तिमिर के चरण सजी है ..
झंकृत नूपुर सी,
आलोकित यह ज्योति सुनहरी ..!
इठलाती निशा अमावस की,
यूँ थिरक रही है ..
पिय की, जैसे बज रही बंसरी ..!
उतरे हों ज्यूँ नभ से तारे,
धरा हुई है
यूँ, नभ सी जगमग झिलमिल ..!
गहराता ना तिमिर यदि तो..
छटा ज्योति की ..
यूँ दिव्य प्रखर ना होती ..!
जितनी सुंदर यह ज्योति सुनहरी ..
उतना ही
महत्व इस श्यामल तिमिर का ..!
देखो !
झिलमिल ज्योति, कह रही है
हमसे ..
मानो कुछ, आभार तिमिर का ..!!!
– सौम्या श्रीवास्तव