ऐसे ही रौंदे जाएंगे, अपने अस्तित्व और आस्था की रक्षा के लिए उठ खड़े नहीं होने वाले

एक औरत अपने कर्मों के कारण मारी गई. वह एक राजनीतिक पार्टी की मुखिया थी. उस की मौत का बदला उस पार्टी के सदस्यों ने 4000 मासूमों की हत्याओं से लिया. देश की अखंडता पर एक बदसूरत खरोंच लगा दी.

इस हत्याकांड को उस औरत के बेटे ने “जब एक विशाल पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है” कह कर जायज़ ठहराया. उन 4000 हत्याओं के लिए पिछले 32 सालों में किसी को एक दिन की भी सज़ा नहीं हुई.

एक ढांचा था, जो एक सौ करोड़ लोगों के धार्मिक आस्था के केंद्र को ढहा कर खड़ा किया गया था. वह 500 वर्षों तक बना रहा. बाद में एक उग्र भीड़ ने उसे गिरा दिया. ढाँचे के समर्थकों (!) ने सारे देश में दंगे किए, सैकड़ों मासूमों के क़त्ल से उस बात का बदला लेना चाहा. दशकों बाद भी उसी वाकए को आधार बना कर आतंकवादी घटनाएं और हत्याएं होती रहती है.

इस ढाँचे के गिरने का उल्लेख सदैव ‘शहीद होने’ के शब्दों में होता है.

अब देश की राजधानी में आइए. शहर के दक्षिण में, महिपालपुर जाइए. क़ुतुबमीनार नामक एक वास्तु के प्रांगण में एक विशाल, बदसूरत ढांचा है. उसका निर्माण आस पास के 27 हिन्दू और जैन मंदिरों को तोड़ कर उस की सामग्री से हुआ है. इस बात का उल्लेख बड़े गर्व के साथ उस ढाँचे के सामने पट्टिका में दर्ज है. ढांचे का नाम “हजार खम्भा मस्जिद” है, पर यहाँ कोई धार्मिक गतिविधि नहीं होती.

आश्चर्य की बात है कि यह ढांचा यूनेस्को द्वारा ‘विश्व धरोहर स्थान’ घोषित किया गया है! किस की धरोहर? किस बात की?

काशी जाइए. विश्व का सब से पुरातन शहर जो कभी उजड़ा नहीं. यहाँ द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक, शम्भु महादेव काशी विश्वनाथ जी का मंदिर है. इतना पुरातन और महत्वपूर्ण मंदिर जितना विशाल होना चाहिए, उतना नहीं है. कारण? विधर्मी शासन के दौरान इसे खण्डित कर उस की जगह एक मस्जिद बनाई गई है. अब ये दोनों धर्मस्थल (या एक धर्मस्थल और एक अधर्मस्थल कहें?) एक-दूसरे से पीठ सटाकर खड़े हैं, और देश भर से आनेवाले लाखों श्रद्धालुओं का ताँता बड़े कष्ट भोग कर दर्शन कर पाता है.

शायद ही किसी के मन में उस आक्रान्ता इमारत के प्रति उद्विग्नता, द्वेष हो!

भगवान श्रीकृष्ण के जन्मस्थान मथुरा आइए – वहां भी जन्मस्थल पर अतिक्रमण कर रही एक मस्जिद खडी है. जहां-जहां हो सके हिन्दुओं की आस्था का अपमान करना यहाँ की रीति रही है, और हिन्दुओं ने भी इसे किसी भी प्रतिक्रिया के बिना स्वीकार किया है.

इन उदाहरणों को गिनाने का कारण है.

एक औरत की हत्या का बदला 4000 निरीहों की हत्या से लिया गया.

एक अनैतिक अतिक्रमण के गिराए जाने का सोग मनाते हुए हजारों का क़त्ल किया गया, दशकों तक प्रसार माध्यमों से इसे ‘अन्याय’ बताते हुए ‘भय और असुरक्षा’ का कारण बताया गया, जब कि संविधान और शासन पूरी तरह उन्हें सुरक्षित रखने के लिए कटिबद्ध है.

छोटे छोटे से भी समूह जब अपने अस्तित्व की छाप बड़े समुदायों पर छोड़ना चाहते है, वे हमेशा निडर हो कर हिंसा और दमन का मार्ग अपनाते है. प्यार-मोहब्बत और आक्रान्ताओं का चुम्बन ले कर कोई अपने अस्तित्व और प्रभाव की लड़ाई लड़ नहीं पाया है.

बौद्ध धर्म अपना चुके म्यांमार और जापान में भी आक्रान्ताओं के प्रति बेहद कड़ाई का और छाप छोड़ने वाली हिंसा का मार्ग अपनाया, और आज वे अंतर्कलह से मुक्त है.

भारत के हिन्दू जब तक अपने अस्तित्व और आस्था की रक्षा के लिए उठ खड़े होना नहीं चाहते, वे ऐसे ही रौंदे जाएंगे. आस्था और अस्तित्व दोनों पर व्यवस्था और छोटे समूह भी हिन्दुओं को प्रताड़ित और आहत करते रहेंगे.

अतः सावधान मित्रों! अपनी ग्लानि छोडो, और आत्मरक्षा के लिए खड़े हो जाओ. यह आज की आवश्यकता है, और अगली पीढ़ियों के लिए आप का दायित्व है! प्रभु रक्षा करें! जय जय श्रीराम!

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