वही मीडिया, वही न्यूज़ चैनल, वही पेशेवर आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक विशेषज्ञ और वही राहुल गांधी तथा कांग्रेस, जो 7-8 महीना पहले यूपी चुनाव में गला फाड़-फाड़कर चिल्ला रहे थे, दावा कर रहे थे कि यूपी में अखिलेश का काम बोल रहा है. यूपी हर क्षेत्र (शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, कृषि, उद्योग, बिजली, पानी, सड़क) में चमक दमक रहा है, अव्वल हो चुका है.
आजकल वही मीडिया, वही न्यूज़ चैनल, वही पेशेवर आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक विशेषज्ञ और वही राहुल गांधी तथा कांग्रेस यह कहकर अपनी छाती कूट रहे हैं कि गुजरात में बेरोजगारी बीमारी भुखमरी चरम पर है.
गुजरात उद्योगों का कब्रिस्तान बन चुका है. किसान तबाह होकर खेती के बजाय केवल खुदकुशी करने का काम कर रहा है. जनता बिजली पानी के अकाल से तड़प रही है. सड़कों के नाम पर गुजरात में केवल गड्ढे ही गड्ढे हैं. गुजरात में अस्पताल स्कूल लापता हैं. दवा और इलाज के अभाव में गुजराती बेमौत मर रहे हैं. स्कूलों विद्यालयों के अभाव में गुजरात अनपढ़ों का सबसे बड़ा गढ़ बन चुका है.
कुल मिलाकर इन मीडिया, न्यूज़ चैनल, पेशेवर आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक विशेषज्ञ और वही राहुल गांधी तथा कांग्रेस के अनुसार गुजरात देश का एक भिखारी भिखमंगा राज्य बन चुका है.
इन मीडिया, न्यूज़ चैनल वाले पेशेवर आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक विशेषज्ञ और राहुल गांधी तथा कांग्रेस के उपरोक्त दावे यूपी में कितने सच्चे कितने झूठे थे? इसका मुंहतोड़ जवाब 7 महीने पहले यूपी की जनता तो दे चुकी है.
अब जवाब देने की जिम्मेदारी गुजरात की जनता की है कि वो देश को बताए कि आखिर सच क्या है, वास्तविकता क्या है? क्या गुजरात पिछले 22 वर्षों में वाकई भिखारी भिखमंगा राज्य बन चुका है और हर गुजराती भिखमंगई और भुखमरी की कगार पार कर चुका है? देश प्रतीक्षा करेगा गुजरात की जनता के जवाब की.
लेकिन यह सब देख सुनकर मुझे याद आ रहा है पूर्वी उत्तरप्रदेश का वो हर गांव जहां का एक न एक निवासी रोजगार के लिए गुजरात के किसी ना किसी शहर में नौकरी कर रहा है तथा यूपी से गुजरात के लिए जानेवाली गाड़ियों में पैर रखने की जगह मिलना इसलिए मुश्किल होता है क्योंकि वो गाड़ियां रोज़गार की तलाश में यूपी से गुजरात जा रहे बेरोज़गार नौजवानों से भरी होती हैं.