सेवा में,
आदरणीय राष्ट्रपति महोदय श्रीमान रामनाथ कोविंद जी,
रायसीना हिल्स, भारत गणराज्य
दिनांक – 15- 10-2017
आदरणीय राष्ट्रपति महोदय,
जय हिंद ! भारत गणराज्य के संवैधानिक शीर्ष को सादर नमन .
महोदय ! मैं भारत का एक सामान्य नागरिक अपनी कुछ व्यथाओं एवं चिंताओं के साथ आपके समक्ष इस पत्र के माध्यम से उपस्थित हुआ हूं. श्रीमान जी! विषयान्तर्गत निवेदन है कि लंबे समय से मेरे धर्म “हिन्दुत्व” पर पूर्ण नियोजित चतुर्दिक प्रहार हो रहे हैं और इस महान धर्म को समाप्त करने के अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र किये जा रहे हैं जिसका केंद्र स्वयं भारतवर्ष बना हुआ है.
महोदय! हमारा संविधान हमें अपने धर्म के पालन, प्रसारण एवं निर्दिष्ट क्रियाकलापों के उत्साहपूर्वक संपादन का पूर्ण अधिकार प्रदान करता है किंतु लंबे समय से एक विशेष समूह द्वारा सुनियोजित तरीके से हिन्दू धर्म के विरुद्ध एक व्यापक षड्यंत्र रचा जा रहा है जिसकी सीमा में मीडिया, फिल्में, राजनीति और अब न्यायपालिका भी सम्मिलित है.
महोदय जी ! विगत कई निर्णय उच्चतम न्यायपालिका द्वारा हिंदुहितो की अकारण अवहेलना एवं द्वेष को प्रदर्शित कर रहे है, इसी क्रम में दही हांडी की ऊंचाई, कश्मीरी पंडितों के विषय में रहस्यमय मौन, गोधरा कांड के आरोपियों को रियायत, रोहिंग्या घुसपैठियों का संरक्षण एवं अब दीपावली जैसे मुख्य हिन्दू त्योहार के क्रियाकलापों यथा पटाखे विक्रय पर अविधिक एवं सामंती रोक लगाना मुख्य है.
निसंदेह पर्यावरणीय परिपेक्ष्य राष्ट्रचिन्तन का अपरिहार्य विषय है किन्तु जिस तरह से मात्र पटाखों को मुख्य अभियुक्त बनाकर दीपावली के ठीक पहले हिन्दू भावनाओं को आहत करने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है वह पूर्णतया अस्वीकार्य एवं निंदनीय है.
महोदय! मेरा आपसे हार्दिक निवेदन है कि ऐसे किसी भी विषय में निर्णय के सर्वाधिकार स्वयं हमारी धार्मिक संस्थाओं को होने चाहिए, न्यायपालिका का अनुचित हस्तक्षेप असहनीय है.
महोदय जी न्यायपालिका द्वारा तीन करोड़ से अधिक लंबित प्रकरणों को हाशिये पर रखकर इस प्रकार के धार्मिक एवं निजी विषयों पर दुराग्रहपूर्ण रोक न्यायपालिका के उच्चतम सम्मान को तिरोहित करती है जिसका प्रमाण विगत कई दिनों से सोशल मीडिया पर प्रतिबिंबित हुआ है.
“पंच परमेश्वर” का सम्मान ऐसे निर्णयों के पश्चात किन शब्दों तक पहुंच गया है उनका वर्णन आपके समक्ष करना नितांत अनुचित समझता हूं . क्या यह चिंता का विषय नहीं है कि आखिर क्यों हमारे इस महान गणतंत्र के इस महत्वपूर्ण मूल स्तम्भ के प्रति जनसामान्य में निराशा एवं आक्रोश का स्तर इस प्रकार रसातल को प्राप्त हो रहा है?
मुझे यह पतन अप्रीतिकर है महानुभव!
यह अकारण नहीं है मान्यवर! वर्षपर्यन्त हर निकाय, निगम, विभाग एवं निजीजन द्वारा पर्यावरण को अथाह क्षति पहुंचाई जाती हैं और न्यायपालिका प्रमुख हिन्दू महापर्व के ऐन पहले राजनीतिक एवं धार्मिक दुराग्रहों से प्रेरित एक छद्म भावुक याचिका की आड़ में अंग्रेजों की तरह एकतरफा तानाशाही फरमान सुना देती है बिल्कुल “रोलेट एक्ट” की तरह?
माननीय! हर क्रिया की प्रतिक्रिया होना प्राकृतिक ही है किंतु ऐसी लक्षित दुराग्रहपूर्ण षडयंत्रो की प्रतिक्रिया का विकराल होना भी सहज संभाव्य था जो आज सामने है कि अब दिल्ली की जनता प्रतिक्रिया में क्रोधवश चौगुने पटाखे चलाकर इस तानाशाही निर्णय का विरोध प्रदर्शन करना चाहती है.
इस क्षति का जिम्मेदार किसे माना जायेगा आदरणीय?
पर्वतों को देव मानने वाली, नदियों को माता, वृक्षों को देवालय, वायु को पवनदेव, भूमि को विष्णुप्रिया एवं प्रकृति को आदिशक्ति मानने वाली हिन्दू संस्कृति जो चींटी तक को दाना डालकर सहअस्तित्व का सादर अधिकार प्रस्तुत करती है, उसे पर्यावरण विरोधी सिद्ध करना दुराग्रह नहीं तो और क्या माना जाए महामहिम?
माननीय राष्ट्रपति जी! आप स्वयं भी हिन्दू है और मेरे वचनों की सत्यता को सहज ही स्वसत्यापित कर सकते हैं.
हम अपनी कुरीतियों और दोषों का परिमार्जन करने में स्वयं ही पूर्ण समर्थ है जिसका साक्षी हमारा स्वर्णिम इतिहास है.
इस समस्या के निवारण हेतु भी अपना एक सुझाव आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूं.
“महोदय जी! दिपावली पूजन में प्रकृति के प्रतिनिधि पंचतत्वों के प्रतीकात्मक सम्मानार्थ हम पंचमेवा, पंचफल, पांच मिष्ठान्नों को अपने इष्टदेव के समक्ष नैवेद्य रूप में प्रस्तुत करते है. मैं इस वर्ष समस्त हिन्दू मताबलम्बियों से यह हार्दिक निवेदन करता हूँ की वे पूजा के उपरांत पंचतत्वों के सम्मानार्थ एवं पर्यावरण के रक्षार्थ पंचपटाखो का प्रचलन प्रारंभ करें जिसके अंतर्गत एक परिवार पांच विभिन्न प्रकार के पटाखे विस्फोटित करके अपने धार्मिक उल्लास को सोत्साह संपादित करे. जिससे पर्यावरण की संरक्षा को बल प्रदान करते हुए भी संयमित आतिशबाजी का अथाह आनंद प्राप्त किया जा सके.
हे राष्ट्रप्रमुख महोदय मैं आपसे अत्यंत विनीत भाव से यह निवेदन करता हूँ कि आप कृपया न्यायालय को इस दोषपूर्ण “रोक” के लिए हिन्दू धर्ममताबलम्बियों के प्रति खेद व्यक्त करने का निर्देश देवे एवं इस अनुपयुक्त “रोक” को तत्काल अमान्य घोषित करें.
हे संविधानपालक! इस जनतंत्र में जनता के हृदय में संविधान सम्मत न्याय के प्रति प्राकृतिक सम्मान होना नितांत आवश्यक है अतः आप भविष्य में ऐसी किसी पुनरावृति की सम्भावनाओं के शमन को भी सुनिश्चित कराने का कष्ट करें.
जनता को जनार्दन मानने वाले इस लोकतंत्र के अधिष्टात्रा आप प्रथम नागरिक परिवार के मुखिया स्वरूप हम 100 करोड़ नियमबद्ध, शांतिप्रिय एवं अनुशासित हिन्दुओं की इस भावप्रण याचिका को अवश्य संज्ञान में लेवे एवं आवश्यक कार्यवाई करके अनुग्रहित करें ऐसे मनोरथ के साथ आपको दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित करता हूँ.
जय हिंद, जय भारत.
आपके परिवार का एक कनिष्ठ सदस्य
गोविन्द पुरोहित
उदयपुर, (राज.)