आप को याद है कुछ साल पहले तक हम सब दिवाली के कई दिनों पहले से पटाखे चलाने लगते थे. फिर यह कम होकर धनतेरस से लेकर भाई दूज तक चलाये जाने लगे. अभी कुछ सालों से यह सीमित हो कर सिर्फ दिवाली के दिन तक ही सीमित हो गए हैं. इसके कारण कई है जिनमें एक कारण पर्यावरण भी है.
यही नहीं, अनेक कुरीतियों और समय के साथ अनावश्यक हो चुकी परम्पराओं को भी हिंदुओं ने स्वतः त्यागा. यह सेल्फ रेगुलेट होने वाला धर्म है. पूरी तरह से प्रकृति की तरह ही परिवर्तनशील. इसलिए इसे सनातन कहते हैं. इसकी यही खूबी इसे कट्टर नहीं होने देती. क्योंकि यह ना तो किसी एक किताब से नियंत्रित होता है ना ही किसी एक मानव से, चाहे फिर वो कोई भी हो.
ऐसे स्वतंत्र स्वभाव वाले समूह को क्या किसी कानून द्वारा नियंत्रित और नियमित किया जा सकता है? नहीं, कभी नहीं. उलटे वो प्रतिक्रियावादी जरूर बन जाएगा. और वही वो बन रहा है. एक मासूम सी कोमल चिड़िया को भी अगर आप किसी कॉर्नर में ले जाकर दबोचना चाहेंगे वो भी अपने चोंच से प्रतिक्रिया देगी. क्योंकि यहां उसके अस्तित्व का सवाल उत्पन्न हो जाता है. आज हिन्दू अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है.
यहां सवाल हिन्दुओं से नहीं पूछा जाना चाहिए, बल्कि उनसे किया जाना चाहिए जो हिन्दू को प्रतिक्रियावादी बनने के लिए मजबूर कर रहे हैं. क्या वे मानव का उपरोक्त स्वभाव नहीं जानते और समझते हैं? क्या समाज, इतिहास में कभी भी क़ानून से नियमित और नियंत्रित किये जा सके हैं? नहीं. इस तरह के और भी कई सवाल हैं जो मन में उठ रहे हैं.
क्या आपके मन में सवाल नहीं उठ रहे? अगर उठ रहे हैं तो उठिये और अपनी अपनी तरह से इसके जवाब ढूंढिए, क्योंकि ये आप के अस्तित्व का सवाल है. ऐसा ना हो कि कहीं देर हो जाए.
…और विपुल विजय रेगे की प्रतिक्रिया
रोहिंग्या मुसलमानों का पापा
सुप्रीम कोर्ट सही मायने में इन चालीस हजार रोहिंग्या मुसलमानों का पापा है. सरकार को कहा गया है कि 21 नवम्बर सुनवाई होने तक इनको बाहर न निकाला जाए. फिक्र इतनी है कि याचिकाकर्ता को भरोसा दिया है कि आपातकालीन परिस्थिति में वो कोर्ट की शरण मे आ सकता है.
सही समझे… सुप्रीम कोर्ट और इसके नीचे चल रहे तमाम कोर्ट देश की बेहतरी के लिए नहीं बल्कि देश को खतरे में डालने का काम कर रहे हैं. सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि वो सुप्रीम कोर्ट की मनमानी के आगे नहीं झुकेगी. सरकार के प्रवक्ता ने कहा भी है कि ये मसला सरकार को ही सुलझाने दो.
ये तो तय है कि ‘दस जनपथ’ की फेंकी हड्डियों पर दुम हिलाता न्यायालय रोहिंग्या मसले पर देश को नाना प्रकार के तनाव देने जा रहा है. खैर अपनी टुच्ची हरकतों के चलते न्यायालय देश मे सम्मान खो चुका है.
यहीं कारण है कि पटाखे न चलाने के मूर्खतापूर्ण निर्णय के खिलाफ सारा देश उठ खड़ा हुआ है. मध्यप्रदेश के इंदौर के सुदामा नगर में रात दस से सुबह छह बजे तक पटाखे न चलाने के नियम राकेट बांधकर उड़ाए जाएंगे. दम है तो आओ रोक लो.